Sunday, December 22, 2024
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क्या महिलाओं को पीरियड्स के लिए मिलेगी छुट्टी?

सुप्रीम कोर्ट के पास एक नया केस आया है, महिलाओं को अब पीरियड के लिए छुट्टी चाहिए! अगर आपको दुकान से पैड लाने के लिए कहा जाए तो हो सकता है आप हिचकिचाएं। ऑनलाइन ऑर्डर करें या फिर गली के कोने वाली दुकान में जाएं और वो भी तब जब भीड़ न हो। क्यों? सैनिटरी पैड लेना क्या गलत बात है? इसमें शर्म कैसी? शरीर की एक स्वाभाविक स्थिति को हमने टैबू बना दिया है। कोई उस पर बात करना नहीं चाहता। क्यों? हमारे समाज में ये इस कदर हावी है कि आप घर में, चर्चाओं में मासिक धर्म यानी पीरियड का जिक्र होते कभी नहीं सुनेंगे। हाल यह है कि टीवी पर विज्ञापन आता है तो लोग चैनल बदल देते हैं या इधर-उधर देखने लगते हैं। क्यों? इसकी वजह हमारी सोच में है। वक्त बदल चुका है लेकिन हम पुराने ढर्रे पर ही चले जा रहे हैं। जबकि इसकी बात सुप्रीम कोर्ट में हो रही है। जी हां, माहवारी के समय महिलाओं को छुट्टी देने की मांग करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत में याचिका दायर की गई है। विस्तार से समझते हैं कि आखिर इस याचिका में क्या कहा गया है और माहवारी में ऐसा क्या होता है कि महिलाओं को छुट्टी देने की बात हो रही है। SC में जनहित याचिका एडवोकेट शैलेंद्रमणि त्रिपाठी ने दाखिल की है। इसमें मांग की गई है कि फीमेल स्टूडेंट्स और कामकाजी महिलाओं को पीरियड के समय छुट्टी दी जाए। उन्होंने लंदन की एक स्टडी का हवाला देते हुए कहा है कि 4-5 दिनों में महिलाओं को काफी दर्द होता है। कुछ महिलाओं को हार्ट अटैक के बराबर का दर्द होता है। इस दर्द के चलते ऑफिस जाने वाली या दूसरी कामकाजी महिलाओं के काम की क्षमता भी प्रभावित होती है। सुप्रीम कोर्ट से कहा गया है कि कई कंपनियां पेड पीरियड लीव देती हैं। कई स्टेट भी माहवारी छुट्टी देते हैं लेकिन इस पर स्पष्ट निर्देश होना चाहिए।

PIL में कहा गया है कि महिलाओं को इस पीरियड में छुट्टी नहीं मिलना समानता के अधिकार का उल्लंघन है। कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने कुछ साल पहले वीमेन्स सेक्सुअल रिप्रोडक्टिव एंड मेंस्ट्रूअल राइट्स बिल पेश किया था। इसमें मांग की गई थी कि महिलाओं को फ्री में सेनेटरी पैड उपलब्ध कराए जाएं। कोर्ट के समक्ष कहा गया है कि पीरियड के समय छुट्टी के लिए भारत में कोई कानून नहीं है जबकि यूके, चीन, जापान, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया जैसे दुनिया के कई देशों में पीरियड के समय अलग-अलग नाम से छुट्टी दी जाती है।

यह तो बात हुई सुप्रीम कोर्ट में दाखिल मामले की, लेकिन सरकार और कानून से पहले हमें खुद बदलना होगा। कैसे? इसे समझने के लिए सिर्फ एक उदाहरण काफी है। जो लोग माहवारी यानी पीरियड पर बात करने से कतराते हैं या फिर पीरियड पेन को नहीं समझते हैं यह उन सभी के लिए है। कोच्चि, गुरुग्राम, इंदौर जैसे देश के कई शहरों में कुछ महीने पहले पुरुषों को पीरियड पेन समझाने के लिए एक एक्सपेरिमेंट किया गया। हां, इस पहल को प्रयोग ही समझिए। 18 से 50 साल की उम्र के पुरुषों को जब तकनीक की मदद से पीरियड पेन का एहसास कराया गया तो वे दर्द से कराह उठे। कुछ लोगों की आंखों से आंसू निकल पड़े। वे कुर्सी से उछल पड़े।

पीरियड पेन सिमुलेटर की मदद से यह प्रयोग किया गया। इस गैजेट को पुरुषों के शरीर से अटैच करने के बाद उन्हें मेन्स्ट्रुअल क्रैंप का एहसास कराना संभव हुआ। जो लोग नहीं समझते उन्हें जानना चाहिए कि महिलाओं को पीरियड से पहले और उस समय पीठ के निचले हिस्से और जांघों में दर्द होता है। सिमुलेटर से इलेक्ट्रिक करेंट जैसे ही पुरुषों को लगा, दर्द के उस लेवल का पता चला जिससे महिलाएं दो चार होती हैं।

हार्मोन के चलते शरीर में होने वाले बदलाव के कारण गर्भाशय से स्राव होता है और उसे ही मासिक धर्म कहा जाता है। यह प्रक्रिया हर 25-30 दिन पर होती है। कुछ लोग इसका जिक्र होने पर ‘महिलाओं का बहाना’ मान लेते हैं। रिपोर्ट बताती है कि 90 प्रतिशत महिलाओं को पीरियड के दौरान दर्द होता है फिर भी वे अपना काम सामान्य तरीके से करती हैं और पूरी जिम्मेदारी निभाती हैं। लेकिन उनका आत्मविश्वास कमजोर पड़ जाता है। उन्हें एक अलग तरह की सहानुभूति के एहसास की जरूरत होती है। इसे ऐसे समझिए जिस पेन की हार्ट अटैक से तुलना हो रही है, उसमें बहनों, बेटियों और माताओं को किस तरह की तकलीफ होती होगी।

कोच्चि के एक पुरुष ने पीरियड पेन के अनुभव पर कहा कि पहले तो ऐसे लगा जैसे कोई पेट को निचोड़ रहा हो और जैसे ही दर्द बढ़ा, मैं चिल्ला पड़ा। बहुत लोगों को इस पेन में काम करने की महिलाओं की बात समझ में ही नहीं आती, इसके लिए पीरियड पेन का एहसास कराते हुए कुछ पुरुषों से लिखने को कहा गया। यकीन मानिए, वे एक लाइन भी नहीं लिख पाए और रोने लगे। लोग खुद कहने लगे कि बाप रे, पांच दिन महिलाएं कैसे काटती होंगी।

अब नजरें सुप्रीम कोर्ट की तरफ हैं। क्या महिलाओं के उन मुश्किल दिनों में कुछ राहत मिल पाएगी? क्या हमारा समाज महिलाओं के पीरियड पर बात करने, उसे समझने और तवज्जो देने के लिए तैयार है?

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