जोशीमठ की धरती बड़ी त्रासदी की तरफ जा रहीं हैं! उत्तराखंड के जोशीमठ में सात सौ से अधिक मकानों में दरारें आ चुकी हैं। राज्य सरकार ने क्षतिग्रस्त मकानों को खाली करा लिया है। जोशीमठ के हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। आईआईटी कानपुर के भू वैज्ञानिक प्रफेसर राजीव सिन्हा ने भी इसपर चिंता जाहिर की है। प्रफेसर राजीव सिंहा दो साल तक सर्वे का काम कर चुके हैं। उन्होने कहा कि अभी ठंड का मौसम है, तो हालात काबू में हैं। यदि इस बीच कहीं भूकंप आ गया तो बड़ी त्रासदी हो सकती है। चट्टानों के बीच होने वाले पानी के रिसाव ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। आईआईटी भू वैज्ञानिक ने कहा कि सबसे पहले आप को समझना पड़ेगा कि जोशीमठ और कर्णप्रयाग जैसे एरिया की जो भौगोलिक स्थिति क्या है। इसमें कुछ बाते महत्वपूर्ण हैं, साइजमेकली एक्टिव जोन है, यह एरिया जोन-5 में आता है। भूस्खलन यहां पर बहुत होता है। यह एरिया स्टीवटेरेन माना जाता है। टोपोग्राफी ऐसी है कि पत्थरों के गिरने की संभावना बहुत रहती है। यह पूरा ऐरिया पुराने भूस्खलन में बसा हुआ है। जितने भी डेवलपमेंट हुए हैं, सभी अनप्लान हैं। सभी बहुत ही कमजोर फाउंडेशन पर बने हुए हैं।
भू वैज्ञानिक ने कहा कि तीन ऐसी वहज हैं, जिसकी वजह से यह सारी घटनाएं हो रही हैं। बल्कि यह कहा जा सकता है कि काफी समय से यह सब हो रहा था। आज इसका असर बड़े स्केल पर हो रहा है, लेकिन इसकी शुरूआत पहले ही हो चुकी थी। आने वाले समय में इस एरिया में भूस्खलन और बढ़ेगा। एक प्रॉसेस का एक थसोल होता है। उस प्रॉसेस का थसोल क्रास कर रहे हैं, इस वक्त। इसके बढ़ने की पूरी संभावना है।
एक सबसे बड़ी समस्या है कि बहुत जगह से पानी का रिसाव शुरू हो गया है। पहाड़ों की चट्टानों में जो पानी जमा हो गया है, उसका प्रेशर काफी बढ़ गया है। प्रेशर बढ़ने से मकानों में दरारे आ रही हैं, अंदर की जमीन खिसकती जा रही है।बल्कि यह कहा जा सकता है कि काफी समय से यह सब हो रहा था। आज इसका असर बड़े स्केल पर हो रहा है, लेकिन इसकी शुरूआत पहले ही हो चुकी थी। आने वाले समय में इस एरिया में भूस्खलन और बढ़ेगा। एक प्रॉसेस का एक थसोल होता है। उस प्रॉसेस का थसोल क्रास कर रहे हैं, इस वक्त। इसके बढ़ने की पूरी संभावना है। अभी तो विंटर का सीजन चल रहा है। थोड़े दिनों बाद जब बरसात का मौसम आएगा। जब बरसात का मौसम आएगा, और इस स्थिति में यदि भूकंप आ जाता है, तो स्थिति और भी भयवहा हालात हो जाएंगे। हम लोगों ने उस एरिया में अप और डाउन स्ट्रिम में सर्वे किया था। इसके साथ ही अलखनंदा और धौली गंगा नदी है का सर्वे कर रहे थे। वहां पर एनटीपीसी का बहुत बड़ा प्रोजेक्ट आ रहा था। इसके लिए हम लोग एक मॉडल बना रहे हैं, तो उसके संबंध में हम लोग सर्वे कर रहे थे। हम लोगों ने देखा कि वहां पर जो यह घाटी है। पूरी की पूरी स्टीवटेरेन है, स्लोव बहुत हाई है। हम लोगों ने दो साल तक वहां पर सर्वे किया है। इन दो वर्षों में बहुत परिवर्तन आए हैं।
इस वक्त हमारे पास कुछ विकल्प हैं। पूरे एरिया की एक साइंटफीकली जोनिंग करनी पड़ेगी।बल्कि यह कहा जा सकता है कि काफी समय से यह सब हो रहा था। आज इसका असर बड़े स्केल पर हो रहा है, लेकिन इसकी शुरूआत पहले ही हो चुकी थी। आने वाले समय में इस एरिया में भूस्खलन और बढ़ेगा। एक प्रॉसेस का एक थसोल होता है। उस प्रॉसेस का थसोल क्रास कर रहे हैं, इस वक्त। इसके बढ़ने की पूरी संभावना है। वहां पर डिस्जास्टर पॉइंट ऑफ जोनिंग की क्या स्थिति है। एक बफर जोन क्रिएट करना पड़ेगा।बल्कि यह कहा जा सकता है कि काफी समय से यह सब हो रहा था। आज इसका असर बड़े स्केल पर हो रहा है, लेकिन इसकी शुरूआत पहले ही हो चुकी थी। आने वाले समय में इस एरिया में भूस्खलन और बढ़ेगा। एक प्रॉसेस का एक थसोल होता है। उस प्रॉसेस का थसोल क्रास कर रहे हैं, इस वक्त। इसके बढ़ने की पूरी संभावना है। उस बफर जोन के हिसाब से क्या वहां पर डिजायरबल लैंड यूज होनी चाहिए। किस एरिया में क्या डेवलपमेंट होना चाहिए। उसके लिए एक पॉलिसी बनानी पड़ेगी। जैसे यह मामला शांत होगा, लोग वहां पर वापस जाना शुरू करेंगे। इससे पहले ही इस पॉलिसी की शुरूआत हो जानी चाहिए।