नीतीश कुमार को कई बार झूठ बोलते हुए पकड़ा गया है! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार में आने के बाद से ही आलोचकों के निशाने पर हैं। उनके बारे में कहा जा रहा है कि कई मौकों पर नीतीश अपना आपा खो बैठते हैं। सदन (विधानसभा) से लेकर से लेकर आम बातचीत के दौरान ये महसूस भी किया जा रहा है। नीतीश इससे पहले ऐसे नहीं थे, उनकी बातचीत में शालीनता होती थी। लेकिन महागठबंधन सरकार बनने के बाद नीतीश की भाषा में वो कमी महसूस की जा रही है। और तो और सीएम नीतीश ऐसी बातें कह रहे हैं, जो वक्त के हिसाब से तौले जाने पर साफ झूठ लग रही हैं। मधुबनी में जब नीतीश कुमार से इस खबर पर सवाल पूछा गया कि क्या उपेंद्र कुशवाहा उप मुख्यमंत्री बनने वाले हैं तो उनका जवाब ये था। नीतीश ने कहा कि ‘फालतू का चीज है,
अरे वो तो पिछली बार दो उपमुख्यमंत्री वही लोग किए। अरे वही लोग उनलोग के साथ थे, हम तो बनना नहीं चाहते थे। बड़ी एकदम ई करके हमको कि नहीं आप बनिए और दू गो बनाए।’ एक तरह से नीतीश ये कहना चाह रहे थे कि पिछली सरकार में उन पर बीजेपी का दबाव था, इसीलिए वो दो उप मुख्यमंत्री की बात मान गए। लेकिन सवाल ये कि क्या वाकई नीतीश बीजेपी के दबाव में थे? उस वक्त के हालात से तो ऐसा नहीं लगता।
जब नीतीश कुमार NDA के साथ सरकार चला रहे थे तो बीजेपी के किसी विधायक की हिम्मत नहीं थी कि उनकी बात को काट दे। तब बीजेपी कोटे से विधानसभा स्पीकर थे विजय कुमार सिन्हा, उन्होंने सिर्फ लॉ एंड ऑर्डर को लेकर लखीसराय के पुलिस कप्तान पर सवालउठाया था। इसके बाद तमतमाए सीएम नीतीश ने भरी विधानसभा में उन्हें क्या-क्या नहीं कहा, ये सबने देखा और सुना। उसके बाद भी बीजेपी का आलाकमान बिल्कुल चुप रहा। मीडिया में भी कोई बयानबाजी नहीं, जबकि विजय कुमार सिन्हा को इससे काफी आघात तक लगा।
जब नीतीश बीजेपी के साथ NDA सरकार चला रहे थे तब भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री हुआ करते थे रामसूरत राय। ये विभाग बीजेपी के कोटे में था। इस बात को ज्यादा समय नहीं हुआ जब रामसूरत राय ने जून में अपने विभाग के सीओ की ट्रांसफर-पोस्टिंग की लिस्ट जारी की। लेकिन ये लिस्ट नीतीश की नजर में गई और उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग में तबादलों पर रोक लगा दी।तब बीजेपी कोटे से विधानसभा स्पीकर थे विजय कुमार सिन्हा, उन्होंने सिर्फ लॉ एंड ऑर्डर को लेकर लखीसराय के पुलिस कप्तान पर सवालउठाया था। इसके बाद तमतमाए सीएम नीतीश ने भरी विधानसभा में उन्हें क्या-क्या नहीं कहा, ये सबने देखा और सुना। उसके बाद भी बीजेपी का आलाकमान बिल्कुल चुप रहा। मीडिया में भी कोई बयानबाजी नहीं, जबकि विजय कुमार सिन्हा को इससे काफी आघात तक लगा। रामसूरत राय ने शुरू में तो थोड़ा प्रतिरोध जताया लेकिन बाद में सरेंडर बोल गए। खैर, इसके बाद तो बिहार में NDA सरकार ही गिर गई।
उदाहरण तो और भी कई हैं, जिनसे साफ पता चलता है कि जब नीतीश एनडीए में थे तो बीजेपी कोटे के किसी मंत्री, विधायक में उन्हें चुनौती देने की कूबत तक नहीं थी।तब बीजेपी कोटे से विधानसभा स्पीकर थे विजय कुमार सिन्हा, उन्होंने सिर्फ लॉ एंड ऑर्डर को लेकर लखीसराय के पुलिस कप्तान पर सवालउठाया था। इसके बाद तमतमाए सीएम नीतीश ने भरी विधानसभा में उन्हें क्या-क्या नहीं कहा, ये सबने देखा और सुना। उसके बाद भी बीजेपी का आलाकमान बिल्कुल चुप रहा।
मीडिया में भी कोई बयानबाजी नहीं, जबकि विजय कुमार सिन्हा को इससे काफी आघात तक लगा।तब बीजेपी कोटे से विधानसभा स्पीकर थे विजय कुमार सिन्हा, उन्होंने सिर्फ लॉ एंड ऑर्डर को लेकर लखीसराय के पुलिस कप्तान पर सवालउठाया था। इसके बाद तमतमाए सीएम नीतीश ने भरी विधानसभा में उन्हें क्या-क्या नहीं कहा, ये सबने देखा और सुना। उसके बाद भी बीजेपी का आलाकमान बिल्कुल चुप रहा। मीडिया में भी कोई बयानबाजी नहीं, जबकि विजय कुमार सिन्हा को इससे काफी आघात तक लगा। चुनौती तो छोड़ दीजिए, बीजेपी का कोई विधायक, मंत्री नीतीश के सामने चुनौती का ‘चूं’ तक नहीं बोल पाता था। फिर नीतीश आखिर किस तरह से बीजेपी के दबाव में सरकार चला रहे थे, ये तो समझ से बाहर की बात है।