Monday, December 23, 2024
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जब इनामी डकैत पहुंचा पटना!

एक समय ऐसा था जब एक चंबल का इनामी डकैत पटना पहुंच गया! कहते हैं कि राजनीति का रास्ता मौकापरस्ती से होकर गुजरता है। वक्त के हिसाब से किसी के लिए भी दरवाजे खुल जाते हैं। नैतिकता और सरोकार से राजनीति कब की दूर हो गई। राजनीति के गुलदस्ते ने अपने अंदर बीहड़ों के बदनाम फूल से लेकर बाहुबलियों और रंगदारों तक को समेटा। सभी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा किया। संसद की पवित्र सीढ़ियों पर राजनीति के रास्ते कुछ ऐसे लोग भी पहुंचे, जो कभी दुर्दांत और हत्यारे में गिने जाते थे। फूलन देवी से लेकर ददुआ जैसे डकैतों के राजनीतिक संबंधों की चर्चा होती है। फूलन देवी बकायदा बीहड़ों से निकलकर संसद तक पहुंची। बीहड़ों की बदनाम और दहशत भरी दुनिया में राजनीतिक महात्कांक्षा की पौध पैदा लेती थी। समय रहते कुछ पौधे सूख जाते थे। कई पौधे समाज की मुख्यधारा से जुड़ जाते थे। हम जो कहानी आपको बताने जा रहे हैं। ये 1970 के दशक की कहानी है। जब चंबल के बीहड़ों में बंदूक लगातार गरजती थी। डकैत सरकार के लिए सिरदर्द साबित हो रहे थे। उस दौरान जेपी देश के सर्वमान्य चेहरे थे। डकैतों की नजर से जेपी की लोकप्रियता छुपी नहीं थी। डकैतों को लगता था कि उनकी आवाज कोई एक शख्स सुन सकता है, तो वो सिर्फ लोकनायक जय प्रकाश नारायण हैं।

बिहार विधान परिषद की पत्रिका ‘साक्ष्य’ ने वर्ष 2016 में जेपी के संस्मरणों पर केंद्रीत अंक का प्रकाशन किया। इस अंक में जेपी से जुड़े कुछ ऐसे अनसुने किस्सों की चर्चा है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। उन्हीं संस्मरणों में से कुछ रोचक कहानी चुनकर आपके सामने रख रहे हैं। जो आपको रहस्य और रोमांच से भर देगी। तारीख 1 अक्टूबर 1971 की थी। अचानक एक लंबा-चौड़ा कद काठी का शख्स जेपी के कदमकुंआ स्थित सचिव सच्चिदाबाबू के निवास पर आकर आग्रह करने लगा। उस शख्स ने कहा कि मेरा नाम राम सिंह है। मैं मध्य प्रदेश से आया हूं। जंगल का ठेकेदार हूं। जयप्रकाश जी से मिलना चाहता हूं। जेपी के सचिव सच्चिदाबाबू आगंतुक से पूछते हैं कि आप जेपी से क्यों मिलना चाहते हैं? उसके बाद राम सिंह की ओर से जवाब आता है कि मैं उनका दर्शन करना चाहता हूं। उसके बाद उसे जवाब मिलता है कि आप कल जेपी निवास आइए। उसके अगले दिन राम सिंह जेपी के निवास स्थान महिला चर्खा समिति पहुंचता है। जेपी के सचिव सच्चिदाबाबू उसका परिचय करवाते हैं। वे कहते हैं कि ये राम सिंह हैं। मध्य प्रदेश से आये हैं। आपसे मिलना चाहते हैं।

राम सिंह से जेपी पूछते हैं कि कहिए क्या काम है? राम सिंह की ओर से जवाब मिलता है कि मैं चंबल घाटी के जंगल का ठेकेदार हूं। वहां के डाकुओं की तरफ से आपके नाम एक संदेश लेकर आया हूं। जेपी ने पूछा कि क्या संदेश है? उसके बाद राम सिंह ने कहा कि चंबल के बागी आपके सामने आकर आत्म समर्पण करना चाहते हैं। जेपी अपने हाथ खड़े कर लेते हैं और कहते हैं कि आप इसके लिए विनोबाजी के पास जाइए। उसके बाद राम सिंह अपनी बात पर अड़ जाता है। राम सिंह जेपी से कहता है कि बाबूजी, मेरी बात तो सुन लीजिए। इस बार दस-बारह नहीं बल्कि उधर के सभी बागी आत्मसमर्पण कर देंगे। पूरे क्षेत्र की समस्या समाप्त हो जाएगी। ‘साक्ष्य’ पत्रिका के चंबल के डाकुओं वाले संस्मरण में इस बात को स्पष्ट किया गया है कि जेपी राम सिंह की बात को टाल देते हैं। वो दोबारा कहते हैं कि मैं ये जिम्मेदारी नहीं उठा सकूंगा। आप विनोबा जी के पास जाइए। राम सिंह बताता है कि बाबूजी, हमलोगों ने विनोबाजी से मुलाकात की थी। उन्होंने हमे आपके पास भेजा है। अचानक राम सिंह के तेवर बदल जाते हैं। वो जेपी के सामने तनकर खड़ा हो जाता है। वो कहता है कि बाबूजी मैं खुद ही माधो सिंह हूं। जिस नाटकीय ढंग से राम सिंह ठेकेदार माधो सिंह डाकू के रूप में प्रकट हो गया। जेपी और उनके सचिव स्तब्ध रह गये। उसके बाद जेपी ने कहा कि आपके ऊपर डेढ़ लाख का इनाम है, फिर भी आपने मेरे पास आने का खतरा क्यों उठाया!

चंबल के बीहड़ों में दहशत का सम्राज्य कायम करने वाले। देश के खूंखार डकैत ने जिस तरह जेपी को जवाब दिया। वो प्रसंग आज भी जेपी के मानवतावादी चिंतन वाले रूप को दर्शाता है। डकैत माधो सिंह ने कहा कि बाबूजी, आपके पास इसलिए आया हूं क्योंकि हमलोगों को आप पर पूरा विश्वास है। उसके बाद जेपी को महसूस हुआ कि उनके ऊपर एक बड़ी जिम्मेदारी का बोझ आ पड़ा है। जेपी ने आखिरकार ये काम स्वीकार कर लिया। उसके तुरंत बाद माधो सिंह ने जेपी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। माधो सिंह को लेकर जेपी चिंतित हो गये। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर माधो सिंह को वो पुलिस से कैसे बचाकर रखें। जब तक राज्य और केंद्र सरकार से इस संबंध में पक्की बातचीत न हो जाए। ‘साक्ष्य’ के प्रसंग में आगे चर्चा है कि जेपी ने ये बात सरकार से छुपा ली। माधो सिंह जेपी के संरक्षण में है ये बात उनकी पत्नी प्रभावती और सचिव सच्चिदाबाबू के अलावा किसी को पता नहीं चली। माधो सिंह को राम सिंह के नाम से कुछ दिन पटना के कुर्जी अस्पताल में रोगी के रूप में रखा गया। बाद में सोखोदेवरा आश्रम में माधो सिंह को छुपाकर रखने की व्यवस्था की गई।

माधो सिंह की व्यवस्था करने के बाद एक दिन जेपी ने उससे पूछा। जेपी ने कहा कि विनोबा जी बहुत बड़े संत हैं। मैं एक अदना सा आदमी हूं। एक सेवक हूं। मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी तभी उठा सकूंगा जब आप मुझे सही जानकारी देंगे। आपकी क्या मांग है और क्या अपेक्षाएं हैं? डकैत माधो सिंह ने उस समय अपना मुंह खोला और जेपी से कहा कि हम यही चाहते हैं कि आत्म समर्पण करने वाले बागियों को सजा चाहे जितनी लंबी दी जाए। फांसी की सजा किसी को न दी जाए। जब तक हम जेल में रहें। हमारे बाल-बच्चों की जिम्मेदारी सरकार की ओर से उठाई जाए। जेपी ने माधो सिंह के इस शर्त को वाजिब शर्त बताया। उसके बाद जेपी एक्शन में आए। उन्होंने केंद्र सरकार के गृह मंत्री और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों से संपर्क किया। सभी का जवाब काफी सकारात्मक रहा। उसके बाद जेपी ने चंबल घाटी में जाकर शांति मिशन की स्थापना कर डाली। 15 दिसंबर 1971 को जेपी ने चंबल के बागियों के लिए एक अपील जारी की। उन्होंने उसकी हजारों प्रतियां छपवाकर चंबल घाटी में बंटवा दिया। बाद में बागियों से संपर्क किया गया। इस काम में जेपी को स्थानीय पुलिस कदम-कदम पर सहयोग कर रही थी। इस शांति क्षेत्र में बागियों से मिलने-जुलने और उन्हें समझाने के लिए शांति मिशन को काफी सुविधा दी गई।

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