आज हम आपको बाहुबली रमेश कालिया की कहानी सुनाने जा रहे हैं! नब्बे का दशक था। उत्तर प्रदेश की राजधानी गैंगवारों से आहत थी। इसी दौर का एक अपराधी था रमेश यादव वर्चस्व के विवाद में मारे गए बाबा की हत्या का बदला लेने के लिए जरायम की दुनिया में उतरा तो विपक्षियों के सात भाइयों में पांच को एक-एक कर मौत की घाट उतार दिया या उतरवा दिया। हिम्मती इतना कि अपने दौर के बाहुबली एमएलसी अजीत सिंह को घेर लिया। जान बचाने के लिए अजीत को एक पेट्रोल पंप में शरण लेनी पड़ी थी। कोई उसे शातिर अपराधी कहता था, तो कोई टॉप का शूटर। चूंकि उसका रंग काला था, इसलिए यूपी पुलिस में रमेश कालिया के नाम से कुख्यात हुआ। रमेश यादव उर्फ रमेश कालिया का परिवार लखनऊ के नीलमथा (कैंट) में रहता था। पढ़ाई में मन नहीं लगने की वजह से दस साल की उम्र में ही रमेश को उसके पिता के फूफा अयोध्या प्रसाद यादव अपने साथ बाघामऊ (चिनहट) ले आए थे। यहां भी वह छठी तक ही पढ़ पाया। बाघामऊ यादव बाहुल्य गांव था, जहां वर्चस्व को लेकर अयोध्या प्रसाद की अपने ही गांव के रघुनाथ यादव उर्फ रघुनाथ प्रधान से अदावत चलती थी। रघुनाथ को महानगर के यादव भवन का संरक्षण था। साथ ही चढ़ाई का पुरवा निवासी अर्जुन प्रधान उसका रिश्तेदार था। इसी के बल पर उसने अयोध्या प्रसाद यादव की हत्या करवा दी। यहीं से दोनों परिवारों के बीच शुरू हुई खूनी रंजिश। अयोध्या यादव की हत्या के बाद उसके परिवार का गांव में रहना दूभर हो गया और उनका पुत्र शिवराज यादव अपने भाइयों और परिवार के साथ गांव छोड़कर गोमतीनगर (डिगडिगा) आ गया। गांव छोड़ने के बाद भी शिवराज पर हमला हुआ। लेकिन, वह बच गया। इसके जवाब में रघुनाथ प्रधान पर फायरिंग की गई, हालांकि वह भी बच गया। इस हमले में पहली बार शिवराज के साथ रमेश यादव भी नामजद हुआ। इसके बाद रमेश यादव उर्फ रमेश कालिया पर मुकदमे लिखने का सिलसिला शुरू हुआ, तो आंकड़ा पचास पार कर गया।
रघुनाथ प्रधान पर हमले के मामले में रमेश और शिवराज जेल गए। वहां उनकी मुलाकात चढ़ाई का पुरवा निवासी सूरजपाल यादव से हुई। दुश्मन का दुश्मन दोस्त, वाली कहावत यहां चरितार्थ हुई। दोनों में दोस्ती हो गई। रिटायर्ड आईपीएस राजेश पाण्डेय बताते हैं कि बदला लेने के लिए इन लोगों ने अपराध की दुनिया में उभर रहे गोरखपुर के श्रीप्रकाश शुक्ला से संपर्क साधा और रघुनाथ के भाई शंभू यादव की सुपारी दी। सुपारी एक एके 47 रायफल और तीन लाख रुपये पर तय हुई। श्रीप्रकाश को एके 47 पहले ही मुहैया करवा दी गई थी। श्रीप्रकाश ने सत्ते और आनंद पाण्डेय के साथ मल्हौर रोड पर पशुपालन विभाग के दफ्तर के सामने शंभू को भून दिया। यह पहली घटना थी, जब लखनऊ में एके 47 गूंजी, लेकिन पुलिस रेकॉर्ड में इसका जिक्र नहीं हुआ।
जेल से छूटने के बाद रमेश यादव उर्फ रमेश कालिया ने सूरज पाल का साथ पकड़ लिया। 29 अक्टूबर 1995 को रमेश कालिया ने सूरजपाल और चंद्रपाल के साथ मिल कर हजरतगंज के जियामऊ में पूर्व मंत्री लक्ष्मी शंकर यादव को गोलियों से भून डाला। इस मामले में सूरजपाल, चंद्रपाल, रमेश कालिया के साथ तत्कालीन मंत्री अंगद यादव भी नामजद हुए। पूर्व डीजीपी बृजलाल बताते हैं कि फरारी के दौरान 1997 में सूरजपाल की मामा के दोस्त राम शुक्ल की हत्या हो गई। इसका बदला लेने के लिए रमेश कालिया ने अक्टूबर 1997 में एक ही दिन में दो घटनाओं को अंजाम दिया। दोपहर में नरही के बद्री प्रसाद यादव पर फायरिंग की। लेकिन, वह बच गया। यहां से रमेश कालिया सीधे गोमतीनगर पहुंचा और नीलकंठ स्वीट्स के सामने बाइक मैकेनिक की हत्या कर दी। मैकेनिक ने राम शुक्ल की हत्या के लिए बाइक मुहैया करवाई थी, जबकि हत्या की साजिश बद्री की थी। जनवरी 1998 में गोसाईंगंज के अहिमामऊ पुलिस चौकी के पास हुए शूटआउट में सूरज पाल के साथ रमेश कालिया भी था।
मई 1998 में सूरज पाल पुलिस मुठभेड़ में मारा गया और गैंग की पूरी कमान रमेश कालिया ने संभाल ली। अब उसके ऊपर रायबरेली के बाहुबली नेता का हाथ आ गया था। जिसके इशारे पर भी रमेश कालिया ने आधा दर्जन से अधिक हत्याओं को अंजाम दिया। रिटायर्ड आईपीएस बृजलाल बताते हैं कि यह वह दौर था, जब सुलतानपुर और रायबरेली रोड का तेजी से विकास हो रहा था। ऐसे में वहां काम करने के इच्छुक बिल्डर्स से लेकर ठेकेदारों तक को रमेश कालिया का प्रोटेक्शन मनी देनी पड़ती थी। रमेश कालिया का आतंक इतना था उसके पीडब्ल्यूडी दफ्तर आने की खबर से ही जूनियर इंजिनियर से लेकर चीफ इंजिनियर तक सीट से खिसक जाते थे। वरिष्ठ पत्रकार विष्णु मोहन के मुताबिक, रमेश कालिया यामाहा बाइक से चलता था। पुलिस रेकार्ड में उसके पास कारबाइन जैसे असलहे तक थे। लेकिन, वह हमेशा 315 बोर के दो तमंचे लगा कर चलता था। 28 अक्टूबर 2002 को उसने सफेदाबाद क्रॉसिंग के पास रघुनाथ यादव (बीडीसी मेंबर) समेत तीन को गोलियों से भून दिया था।
2003 का विधान परिषद (स्थानीय निकाय क्षेत्र) का चुनाव था। बाहुबली माफिया अजीत सिंह सपा के टिकट पर लखनऊ-उन्नाव सीट से चुनाव लड़ रहा था। रमेश कालिया ने अजीत सिंह के खिलाफ अपनी पत्नी रीता यादव को मैदान में उतारा था। एक दिन उन्नाव से चुनाव प्रचार कर अजीत सिंह अकेले लखनऊ लौट रहा था। रास्ते में सोहरामऊ थाना क्षेत्र में रमेश कालिया ने उसका पीछा कर लिया। खतरा देख अजीत सिंह सई नदी पार करने के बाद एक पेट्रोल पंप में जा छिपा और तब तक छिपा रहा जब तक उसके साथी नहीं पहुंच गए। हालांकि, इससे पहले ही रमेश कालिया वहां से जा चुका था। सितंबर 2004 में अजीत सिंह की उन्नाव में गोली लगने से मौत के मामले में भी रमेश कालिया नामजद हुआ था।
तीन दर्जन से अधिक हत्याओं का अंजाम देने वाला रमेश कालिया 12 फरवरी 2005 को पुलिस की गोली से मारा गया। दावा किया गया कि पुलिस बारात के रूप में उसके घर पहुंची और मार गिराया। हालांकि मुठभेड़ के पीछे बड़ी साजिश थी। वरिष्ठ पत्रकार राकेश वर्मा के अनुसार तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी के लखनऊ जिलाध्यक्ष (अब दिवंगत हो चुके) मुठभेड़ के दो दिन बाद एक सहयोगी दल के मंत्री से मिलने आए थे। बताया कि रमेश कालिया ने उस दिन अपने घर के बाहर पुलिस देखी, तो उन्हें फोन किया। उन्होंने पुलिस के एक बड़े अधिकारी से बात की और उनके कहने पर सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री को भी फोन किया। इसके बाद पुलिस के अधिकारी ने आश्वस्त किया कि रमेश कालिया से कह दें कि आत्म समर्पण कर दे। उनके कहने पर ही रमेश आत्मसमर्पण के लिए बाहर निकला था और मुठभेड़ दिखा उसे मार दिया गया। उसके दो साथी भी पुलिस की गोली का शिकार हुए। दावा था कि उनके बयान की पुष्टि कॉल डिटेल्स से हो सकता है। मुठभेड़ की वजह, लखनऊ के एक बड़े बिल्डर से वसूली थी, जिसे सरकार के वरिष्ठ मंत्री का संरक्षण प्राप्त था।