जनगणना में देरी समस्या पैदा कर सकती है! भारत में हर साल 10 साल पर जनगणना होती थी। लेकिन 2021 में होने वाली जनगणना आज तक पूरी नहीं हो सकी है। सरकार ने 2021 में कोरोना काल में इसे अगले आदेश तक के लिए रोका था। लेकिन अभी तक इसे फिर से शुरू नहीं किया गया है। भारत में साल 1872 से जनगणना हो रही है। इस लंबे अंतराल में दो विश्व युद्ध भी इसे रोक नहीं पाए। लेकिन साल 2021 में होने वाली जनगणना अभी तक नहीं हो पाई है। संकेत मिल रहे हैं कि इसकी कवायद 2024 तक पूरी हो जाएगी। लेकिन इसी के साथ कुछ सवाल खड़े होते हैं। पहला सवाल तो ये उठता है कि क्या वास्तव में इसके जनगणना अभ्यास में कुछ सालों में होने वाली देरी के कुछ मायने हैं? दूसरा ये कि इसमें देरी होना ठीक है या नहीं? आइए दोनों सवालों के जवाब बारी-बारी से जानते हैं।
यह जानने के लिए कि जनगणना 10 साल में केवल एक बार होती है, यह कितनी जरूरी हो सकती है? हम भारत के महापंजीयक (RGI) और उस समय के जनगणना आयुक्त विवेक जोशी द्वारा जारी फरवरी 2020 के एक सर्कुलर को देखते हैं। जनगणना आवास की स्थिति, सुविधाओं पर बुनियादी बेंचमार्क डेटा प्रदान करने का एकमात्र स्रोत है। ग्रामीण क्षेत्रों में गांवों और शहरी क्षेत्रों में कस्बों/वार्डों तक कई प्रशासनिक स्तरों पर परिवारों और मानव संसाधन की स्थिति के लिए उपलब्ध है। केंद्र/राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों द्वारा नीतियों की योजना बनाने और तैयार करने और प्रभावी लोक प्रशासन के लिए इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है।
इसके अलावा, संसदीय क्षेत्र, विधानसभा, पंचायत और अन्य स्थानीय निकायों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन और आरक्षण के लिए जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि इस सर्कुलर में ये नहीं कहा गया है कि जनगणना बेंचमार्क डेटा का इकलौता स्रोत है। आरजीआई कोई बड़ा चढ़ा कर नहीं कह रहा है। हर जरूरी सर्वे में जनगणना का इस्तेमाल होता है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थय सर्वे को ले सकते हैं। इसके लिए जनगणना के आधार पर सैंपल तैयार किया जाता है। इसके अलावा एससी और एसटी के लिए लोकसभा या राज्य विधानसभा क्षेत्रों कितनी सीटें आरक्षित होंगी, ये भी इस बात पर निर्भर करता है कि जनगणना में वे किस अनुपात में जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार यह एक मामूली मामला होने से बहुत दूर है।
हाल ही के संदर्भ में देखा जाए तो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) का कहना है कि ग्रामीण आबादी का 75% और शहरी आबादी का 50% अधिनियम के तहत कवर किया जाएगा। इसका भी निर्धारण जनगणना के अनुमानों के आधार पर होगा। 2011 की जनगणना के अनुसार, जनसंख्या लगभग 81.5 करोड़ है, जिन्हें एनएफएसए के तहत कवर किया जा सकता है। 2021 के लिए अनुमानित जनसंख्या के आधार पर एक समान गणना उस संख्या को 92 करोड़ रखेगी। इसका मतलब है कि जनगणना में होने वाली देरी 10 करोड़ भारतीयों को मुफ्त या सब्सिडी वाले अनाज से वंचित कर सकती है।
अगर जनगणना में हो रही देरी के कारणों की बात करें तो संसद में इसके सवाल पर सरकार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘कोविड -19 महामारी के प्रकोप के कारण जनगणना 2021 और संबंधित क्षेत्र की गतिविधियों में कमी आई है। इसे अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।’ भारत अकेला देश नहीं है जिसने कोरोना की वजह से जनगणना स्थगित कर दी। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि कई देशों को ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन कितना? हमारे पड़ोसी देश नेपाल ने जून 2021 से नवंबर तक के लिए जनगणना स्थगित की थी। बांग्लादेश ने इसे जून 2022 तक स्थगित किया। शायद ये देश कोविड से उतने बुरी तरह प्रभावित नहीं हुए थे जितना भारत हुआ था। लेकिन अमेरिका ने 2020 में, ब्राजील ने 2022 में, रूस ने 2021 में, यूके ने 2021 में अपनी जनगणना की। ये सभी देश कोविड से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। अकेले एशिया में 12 देशों ने महामारी के दौरान जनगणना की है।
आप यह तर्क दे सकते हैं कि आकार भी मायने रखता है और एक बड़े देश में जनगणना नेपाल जैसे अपेक्षाकृत छोटे देशों में होने वाली जनगणना से अलग है। दुनिया के दस सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से आठ में पिछले कुछ वर्षों में जनगणना निर्धारित की गई थी, पाकिस्तान और नाइजीरिया इसके अपवाद थे। उन आठ में से अकेले भारत ने जनगणना पूरी नहीं की है। इसके अलावा अन्य सात देशों में इंडोनेशिया, ब्राजील और मैक्सिको शामिल हैं।
भले ही हम इन अंतरराष्ट्रीय तुलनाओं को नजरअंदाज कर दें, लेकिन कई सवाल हमारे सामने खड़े हैं। मार्च 2020 और दिसंबर 2022 के बीच, 12 राज्यों, पुडुचेरी के केंद्र शासित प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी में विधानसभा चुनाव हुए हैं। इन राज्यों में 2021 में भारत की अनुमानित आबादी का आधे से ज्यादा (लगभग 55%) हिस्सा है। चुनावों में रैलियों में भीड़ जुटाना शामिल है, लेकिन आधिकारिक तौर पर यह माना जाता है कि लोगों के घरों में जाकर जनगणना के लिए सवाल पूछने से कोरोना का खतरा बढ़ जाता है। इस बीच बसों, ट्रेनों, महानगरों और अन्य सार्वजनिक जगहों पर लोगों की भीड़ फिर से जुटना शुरू हो गई है, लेकिन अभी भी जनगणना की ठीक से शुरुआत नहीं की गई।
यह समझना बेहद जरूरी है कि जनगणना आबादी के अलावा हमें इस बात का पुख्ता डेटा देगी कि कितने घरों में बिजली, रसोई गैस, शौचालय और पीने का पानी नल पर है। आधिकारिक आंकड़े इन सभी मोर्चों पर हुए विकास की ओर इशारा करते हैं। सरकार क्यों नहीं चाहेगी कि जनगणना को पब्लिश किया जाए ताकि उन पर सवाल उठाने वालों को जवाब मिल सके, खासकर चुनाव नजदीक होने पर!