आप ने हाल ही में पीएम मोदी के ऊपर बनी डॉक्यूमेंट्री के बारे में तो सुना ही होगा! 2002 के गुजरात दंगे को लेकर पीएम मोदी पर बनाई गई बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर विवाद हो रहा है। इस डॉक्यूमेंट्री की रिलीज पर भारत सरकार ने सवाल खड़े किए गए हैं और इस एक प्रोपेगेंडा करार दिया है। ऐसे में जब इस दंगों की जांच पूरी हो चुकी है और सर्वोच्च अदालत अपना फैसला भी दे चुकी है। तब इस डॉक्यूमेंट की रिलीज और इसके निष्कर्ष के क्या मायने हैं। क्या वाकई में डॉक्यूमेंट्री के जरिए कोई प्राेपेगेंडा फैलाया जा रहा है। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री-इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ के बारे गुजरात के लोग क्या सोचते हैं। ऐसे में जब गुजरात में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने सबसे बड़ी जीत हासिल की। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यहां तक कहा कि गुजरात ने जातिवाद की तोड़ने की शुरुआत की है तब इस डॉक्यूमेंट्री पर लोगों का क्या सोचना है। गुजरात दंगों की आयोग, कोर्ट और दूसरी एजेंसियां जांच कर चुकी हैं। अंतिम फैसला आ चुका है। अब इतने सालों बाद डॉक्यूमेंट्री की रिलीज क्यों? क्या कोई एजेंडा है? पंडित कहते हैं अगर कोई ये सोचता है कि इससे मोदी की छवि खराब होगी। तो मैं इससे सहमत नहीं हूं ऐसा सोचने वाले लोग फिर गलत साबित होंगे। पहले भी ऐसी कोशिशें हुई हैं। हर बार मोदी मजबूत होकर निकलें हैं। गुजरात हो या फिर भारत दोनों अब काफी आगे निकल चुके हैं। यही वजह है इस डॉक्यूमेंट्री की एक वर्ग के इतर चर्चा भी नहीं हो रही है। डॉक्यूमेंट्री का वही पार्ट ज्यादा वायरल हो रहा है। जब पीएम मोदी ब्रिटिश पत्रकार को मानव अधिकार के विषय में जमकर लताड़ लगाते हैं।
यह डॉक्यूमेंट्री कोई निष्कर्ष कैसे दे सकती है। क्या कोई लॉ इंफोर्समेंट एजेंसी है। जब देश की अदालत की निगरानी में सालों जांच हुई और इसके बाद फैसला आया तो इस डॉक्यूमेंट्री का कोई मतलब नहीं है। शाह सवाल उठाते हैं कि जब इस देश की अखंडता को लेकर आरएसएस और पीएम मोदी की तरफ से मुस्लिमों को जोड़ने की पहल हो रही है तभी ये डॉक्युमेंट्री क्यों आई? कौन है जो देश की अमन-शांति नहीं चाहता है। शाह कहते हैं कि यह डॉक्युमेंट्री की आड़ में प्रोपैगैंडा है। गुजरात में लंबे समय से पत्रकारिता करते आए और राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गाेहिल करते हैं कि इस डॉक्युमेंट्री का अब रिलीज होने का कोई मतलब नहीं है। अहमदाबाद जहां मैं रहता हूं वहां लोग इन मुद्दे से आगे बढ़ चुके हैं। 2002 में जो हुआ था। उसे छोड़कर आगे निकल चुके हैं। मैं चाहूंगा कि कोई भी इस डॉक्यूमेंट्री के आधार पर अपनी राय नहीं बनाए। देश की अदालत ने जो फैसला दिया है। उसी को अंतिम माना जाना चाहिए।
सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। अतीत में सीता मां को परीक्षा देनी पड़ी थी। गुजरात के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई को एक लंबी अग्निपरीक्षा देनी पड़ी है।शाह सवाल उठाते हैं कि जब इस देश की अखंडता को लेकर आरएसएस और पीएम मोदी की तरफ से मुस्लिमों को जोड़ने की पहल हो रही है तभी ये डॉक्युमेंट्री क्यों आई? कौन है जो देश की अमन-शांति नहीं चाहता है। शाह कहते हैं कि यह डॉक्युमेंट्री की आड़ में प्रोपैगैंडा है। गुजरात में लंबे समय से पत्रकारिता करते आए और राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गाेहिल करते हैं कि इस डॉक्युमेंट्री का अब रिलीज होने का कोई मतलब नहीं है। वे आखिर में निर्दोष निकले, ऐसे में कोई डॉक्यूमेंट्री क्या निष्कर्ष देती है। इसके कोई मायने नहीं है। मुझे लगता है कि बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई जिस तरह से लोकप्रियता बढ़ी है और बढ़ रही है।
उसे खराब करने की दिशा एक सोची समझी साजिश है।शाह सवाल उठाते हैं कि जब इस देश की अखंडता को लेकर आरएसएस और पीएम मोदी की तरफ से मुस्लिमों को जोड़ने की पहल हो रही है तभी ये डॉक्युमेंट्री क्यों आई? कौन है जो देश की अमन-शांति नहीं चाहता है। शाह कहते हैं कि यह डॉक्युमेंट्री की आड़ में प्रोपैगैंडा है। गुजरात में लंबे समय से पत्रकारिता करते आए और राजनीतिक विश्लेषक दिलीप गाेहिल करते हैं कि इस डॉक्युमेंट्री का अब रिलीज होने का कोई मतलब नहीं है। गुजरात के वरिष्ठ टीवी पत्रकारों में एक धीमंत पुरोहित कहते हैं कि मैंने यह डॉक्यूमेंट्री देखी नहीं है, लेकिन जो मीडिया रिपोर्ट हैं उसके हिसाब से डॉक्यूमेंट्री में पीएम नरेंद्र मोदी के ऊपर सवाल खड़े किए गए हैं। इन सवालों से खुद ब्रिटेन प्रधानमंत्री ऋषि सुनक सहमत नहीं है। बीबीसी की पत्रकारिता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग तरह से देखा जाता है, लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि कई बार बीबीसी की रिपोर्ट एजेंडा ड्रिवेन होती हैं।