नैनीताल की एक सड़क खतरे के निशान पर है आज हम उसका इतिहास जानेंगे! उत्तराखंड में तालों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नैनीताल, जो ब्रिटिश काल में अंग्रेजों की पहली पसंद हुआ करता था, आज भूधंसाव की चपेट में आ रहा है। नैनीताल की लोअर माल रोड, जो अंग्रेजों ने भारतीयों के अलग से बनवायी थी, में पिछले एक सप्ताह से दरारें दिख रही हैं जो धीरे-धीरे बढ़ रही हैं। इधर पर्यटन सीजन की तैयारी चल रही है उधर शहर की प्रसिद्ध माल रोड में आ रही दरारें कारोबारियों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच रही हैं।1841 में पीटर बैरन द्वारा बसाये गए इस नैनीताल शहर ने अपनी स्थापना के बाद से कई स्वरूप बदले। इस लंबे अंतराल में नैनीताल एकदम बदल चुका है। कई अच्छे-बुरे अनुभवों से यह शहर गुजरा है। बताते हैं कि बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में जब मोतीलाल नेहरू नैनीताल आए थे तब उन्हें भारतीय होने के कारण तालाब में बोटिंग करने की अनुमति नहीं दी गयी थी। तब उन्होंने वायसरॉय से शिकायत की और भारतीयों को यह अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष भी किया जिसमें उन्हें सफलता मिली थी।
ब्रिटिश शासकों ने इस शहर को एकदम यूरोपीय शैली में अपने प्रवासी घर की तरह बेहद आत्मीयता के साथ विकसित किया था। नैनीताल के डिप्टी कमिश्नर रहे जेएम क्ले ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि ‘नैनीताल का हिल स्टेशन ब्रिटिश प्रशासकों की रचना है। इसलिए 1841 में कैप्टेन पीटर बैरन की खोज से पहले इसका कोई इतिहास नहीं है। 1845 में नैनीताल में म्युनिसिपल बोर्ड का गठन हुआ जो भारत की पहली नगर पालिका थी। पीटर बैरन ने तो अपना मकान तालाब की सतह से अधिक ऊंचाई पर नहीं बनाया मगर तमाम दूसरे अंग्रेजों ने अपने बंगले पहाड़ की ऊंचाइयों पर बनवाए थे। तालाब के दक्षिण-पश्चिमी किनारे पर कुछ हिन्दुस्तानी व्यापारियों को बसाया गया जो अंगेजों के लिए रसद, कपड़े, मांस, सब्जी, घोड़े, टट्टू आदि की व्यवस्था करते थे। इस छोर को हिंदुस्तानी व्यापारियों ने मल्लीताल नाम दिया और दूसरे छोर को तल्लीताल। तालाब के इन दोनों किनारों को जोड़नेवाली पूर्वी सड़क का नाम अंग्रेजों ने मालरोड रखा और पश्चिमी सड़क का हिंदुस्तानियों की सड़क।
मालरोड से लगभग 5 से 6 फीट नीचे की ओर बनी ठंडी सड़क के समानांतर अंग्रेजों ने एक और सड़क बनवायी थी जिसमें जिसमें अंग्रेज पुरुषों और युवाओं को ही घूमने की अनुमति थी। अंग्रेज इस रोड पर बेतहाशा घोड़े दौड़ाते थे और किनारों पर चलते हुए हिन्दुस्तानियों को उन्हें फर्शी सलाम करना पड़ता था। नैनीताल के सबसे ऊंचे शिखर चीना पीक से लेकर तालाब किनारे की मालरोड तक तालाब को घेरती हुई सड़कों का निर्माण किया गया था। 17 वीं शताब्दी में मॉल शब्द एक सैर वाली जगह, सड़क को कहा जाता था। जहां लोग छुट्टियों के दिनों में घूमना-फिरना पसंद करते थे। 18वीं सदी के भारत में मॉल रोड सैनिकों का घर हुआ करता था। नैनीताल आने वालों के लिए मॉल रोड की शॉपिंग खासी अहमियत रखती है। यह इस पर्यटन नगरी का एक अहम हिस्सा है। यहां पर आपातकालीन वाहनों को छोड़कर किसी अन्य वाहनों को जाने की अनुमति नहीं है।
नैनीताल की ठंडी सड़क अपने शांत माहौल और वातावरण की वजह से पर्यटकों की पसंदीदा जगह है। झील के किनारे तल्लीताल से मल्लीताल को जोड़ती यह सड़क पेड़ों से घिरी है। पर्यावरणविद डॉ अजय रावत ने बताया कि साल 1890 तक नैनीताल का नगरीकरण हो गया था और यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी जाना जाने लगा था। उस समय तक नैनीताल की माल रोड की स्थापना हो गई थी। तब अंग्रेजों ने नैनीताल में कम भीड़ वाली जगह बनाने के बारे में सोचा। सुबह लोग उस क्षेत्र में जाएं, मॉर्निंग वॉक और एक्सरसाइज करें। जिसके बाद इस वजह से ठंडी सड़क का निर्माण किया गया। यह सड़क बनाई गयी जो बाद में भी अंग्रेजों के मानकों के अनुकूल साबित हुई।
ठंडी सड़क का इलाका काफी संवेदनशील है। यहां 1945 में पहली बार भूस्खलन हुआ था। 24 1998 को इस क्षेत्र में दूसरा भूस्खलन देखने को मिला था। 2021 में इस सड़क पर एक बार फिर भूस्खलन हुआ था जिसका सारा मलबा झील में गिरा था। तब उस सड़क को आवाजाही के लिए बंद कर दिया गया। भूस्खलन को रोकने के लिए उस जगह पर शार्ट टर्म ट्रीटमेंट भी किया गया लेकिन बारिश की वजह से यहां पर फिर से भूस्खलन हुआ। जिसके बाद इस क्षेत्र में आवाजाही बंद कर दी गयी थी।