व्हेल मछली अपने साथी के लिए सुसाइड कर सकती है! इंसानों को सामाजिक प्राणी कहा जाता है लेकिन जानवर भी सोशल होते हैं। जी हां, इतने सोशल कि अपने समुदाय के लिए अपनी जान पर खेल जाते हैं। समंदर के किनारे बीच पर कभी-कभी व्हेल्स के बहकर आने की तस्वीरें आपने भी देखी होंगी। ऐसी ही एक विशालकाय मछली पायलट व्हेल्स होती है। इसके बारे में कहा जाता है कि अगर इनके समूह में कोई बीमार हो जाए या चोट लग जाए तो ये उसका साथ कभी नहीं छोड़ती हैं। समंदर की गहराई में यह अटूट रिश्तों की गजब कहानी है। ये पायलट व्हेल्स अपने बीमार साथी की देखरेख में किनारे तक आ जाती हैं। आपको लगता होगा कि किनारे आने में क्या अलग है? जी नहीं, व्हेल्स के जिंदा रहने के लिए पानी बहुत जरूरी है। लेकिन जरा सोचिए बीमार साथी को बचाने की हरसंभव कोशिश करने वाली साथी पायलट व्हेल्स किनारे आकर अपनी जान भी दे देती हैं। इसे व्हेल्स का ‘सुसाइड मिशन’ भी कह सकते हैं। जब बड़ी संख्या में व्हेल्स समंदर के किनारे पाई जाने लगीं तो रिसर्च शुरू हुआ। पायलट व्हेल्स के रवैये पर शोध हुए। समंदर की गहराई में जाकर समझने की कोशिश हुई तब पता चला कि ये पायलट व्हेल्स फैमिली के लिए क्या सोचती हैं। हालांकि इनके ‘सुसाइड’ की कोई एक वजह स्पष्ट नहीं है। दरअसल, चोट लगने या बीमार होने पर व्हेल मछली ठीक से पानी में मूवमेंट नहीं कर पाती। ऐसे में बाकी व्हेल्स उसके साथ आकर रुक जाती हैं। ये कम पानी वाले इलाके में व्हेल को लेकर आती हैं जिससे उसे ज्यादा मूवमेंट करने की जरूरत ही न पड़े। लेकिन यह क्षेत्र पूरे समूह के लिए जानलेवा हो सकता है।
वैसे, कम पानी वाले क्षेत्र में आने के फायदे हैं लेकिन वहां व्हेल्स फंस भी सकती हैं। ऐसे में और ज्यादा चोट लगने का खतरा बना रहता है। वजन ज्यादा होने के कारण आंतरिक रूप से जख्म हो सकते हैं। इसकी वजह यह है कि व्हेल्स पानी में घूमने के लिए बनी हैं, उनका शरीर जमीन पर नहीं रह सकता है। ऐसे में दोस्त को बचाने के चक्कर में पूरा समूह दम तोड़ देता है। वास्तव में, इस निष्कर्ष तक पहुंचना आसान नहीं था। रिसर्चर को समझ में नहीं आ रहा था कि बीमार या चोटिल व्हेल के साथ बड़ी संख्या में दूसरी पायलट व्हेल्स की मौत कैसे हो गई। तब एक सवाल खड़ा हुआ क्या व्हेल्स ने जानबूझकर ऐसा किया? व्हेल्स का व्यवहार थोड़ा अलग लग सकता है पर सच्चाई यही है।
पिछले 20-25 साल में कई टेक्नॉलजी आने से किनारे पर फंसी ऐसी व्हेल्स को वापस पानी में भेजने पर काम किया जाने लगा है।पिछले 20-25 साल में कई टेक्नॉलजी आने से किनारे पर फंसी ऐसी व्हेल्स को वापस पानी में भेजने पर काम किया जाने लगा है। ऐसे में दोस्त को बचाने के चक्कर में पूरा समूह दम तोड़ देता है। वास्तव में, इस निष्कर्ष तक पहुंचना आसान नहीं था। रिसर्चर को समझ में नहीं आ रहा था कि बीमार या चोटिल व्हेल के साथ बड़ी संख्या में दूसरी पायलट व्हेल्स की मौत कैसे हो गई। तब एक सवाल खड़ा हुआ क्या व्हेल्स ने जानबूझकर ऐसा किया? व्हेल्स का व्यवहार थोड़ा अलग लग सकता है पर सच्चाई यही है।हालांकि इसमें स्थानीय लोगों की मदद की जरूरत होती है, जिससे जल्दी से संबंधित लोगों तक जानकारी पहुंच सके। श्रीलंका के मछुआरों की तारीफ करनी चाहिए। 11 फरवरी को बड़ी संख्या में पायलट व्हेल्स तट पर आ गई थीं। कुडावा क्षेत्र में व्हेल्स को फंसा देख मछुआरे समझ गए।ऐसे में दोस्त को बचाने के चक्कर में पूरा समूह दम तोड़ देता है। वास्तव में, इस निष्कर्ष तक पहुंचना आसान नहीं था। रिसर्चर को समझ में नहीं आ रहा था कि बीमार या चोटिल व्हेल के साथ बड़ी संख्या में दूसरी पायलट व्हेल्स की मौत कैसे हो गई। तब एक सवाल खड़ा हुआ क्या व्हेल्स ने जानबूझकर ऐसा किया? व्हेल्स का व्यवहार थोड़ा अलग लग सकता है पर सच्चाई यही है।
अधिकारियों ने बताया कि 11 पायलट व्हेल्स तट पर पहुंच गई थीं। मछुआरों की मदद से उन्हें वापस पानी में पहुंचा दिया गया हालांकि इसमें स्थानीय लोगों की मदद की जरूरत होती है, जिससे जल्दी से संबंधित लोगों तक जानकारी पहुंच सके। श्रीलंका के मछुआरों की तारीफ करनी चाहिए। 11 फरवरी को बड़ी संख्या में पायलट व्हेल्स तट पर आ गई थीं। कुडावा क्षेत्र में व्हेल्स को फंसा देख मछुआरे समझ गए। अधिकारियों ने बताया कि 11 पायलट व्हेल्स तट पर पहुंच गई थीं। मछुआरों की मदद से उन्हें वापस पानी में पहुंचा दिया गया!