वर्तमान में बीजेपी स्वार विधानसभा सीट जीत पाती है या नहीं यह सबसे बड़ा सवाल है! उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक बार फिर चुनावी माहौल बनने लगा है। स्वार विधानसभा सीट से विधायक रहे अब्दुल्ला आजम की सदस्यता समाप्त होने के बाद विधानसभा क्षेत्र में उप चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। साथ ही, राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी दावेदारी भी शुरू हो गई है। एक तरफ रामपुर में आजम खान की प्रतिष्ठा एक बार फिर दांव पर लग गई है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी आजम खान की साख को रामपुर में खत्म करने की कोशिशों में जुट गई है। माना जा रहा है कि भाजपा इस सीट पर ऐसे उम्मीदवार दे सकती है, जो चुनावी मैदान में जीत दर्ज कर सकें। यूपी चुनाव 2022 में स्वार विधानसभा सीट गठबंधन के तहत अपना दल एस को गई थी। ऐसे में अगर नवाब परिवार को इस सीट से दूर रखा गया तो स्वार सीट पर भाजपा का सूखा नवेद मियां बढ़ा सकते हैं। हालांकि, 27 साल पहले यहां भाजपा ने जीत दर्ज की थी। अपना दल एस ने यूपी में 2014 के बाद पहली बार एक अल्पसंख्यक उम्मीदवार उतारा। रामपुर के नवाब परिवार से संबद्ध हैदर अली खान उर्फ हमजा अली को उम्मीदवार बनाया गया है। हमजा अली नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां के बेटे हैं। हालांकि, चुनावी मैदान में अब्दुल्लाह आजम ने हमजा को 61,103 वोटों के बड़े अंतर से हराया। यूपी चुनाव 2022 में अब्दुल्ला आजम को योगी लहर के बाद भी 1,26,162 वोट मिले थे। वहीं, एनडीए समर्थित अपना दल एस उम्मीदवार हैदर अली खान को 65,059 वोट ही मिल पाए। बसपा उम्मीदवार अध्यापक शंकर लाल सैनी 15,035 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। इसी से समझा जा सकता है कि स्वार में मुकाबला आमने-सामने का हुआ था।
स्वार टांडा से 27 साल पहले भाजपा ने जीत दर्ज की थी। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनाव में शिव बहादुर सक्सेना ने जीत दर्ज की थी। शिव बहादुर सक्सेना ने 59,477 वोट हासिल किया था। उन्होंने सपा के अब्दुल गफूर को हराया था। अब्दुल गफूर को 51,984 वोट मिले थे। इस प्रकार भाजपा उम्मीदवार ने 7493 वोटों से जीत दर्ज की। इसके बाद से पार्टी को इस सीट पर जीत नसीब नहीं हुई है। ऐसे में अब सभी निगाहें नवेद मियां की तरफ ही टिकी दिख रही हैं।
स्वार विधानसभा सीट नवेद मियां का कार्यक्षेत्र रहा है। यहां से वे कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जीत करते रहे थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पहली बार अब्दुल्ला आजम ने इस सीट से चुनाव लड़ा और बड़े अंतर से जीत दर्ज की। वर्ष 2019 में फर्जी प्रमाण पत्र मामले में उनकी विधायकी चली गई। मामला कोर्ट में खिंचता रहा। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर अब्दुल्ला ने इस सीट पर कब्जा जमाया। इस बार उनके सामने नवेद मियां के बेटे हमजा थे। हमजा को हराकर अब्दुल्ला ने आजम खान और नवेद मियां की अदावत को विस्तार दिया।
अब नवेद मियां रामपुर में अपनी खोई प्रतिष्ठा को दोबारा हासिल करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी आजम खान को जिले से उखाड़ फेंकने की तैयारी में लगे हैं। रामपुर सदर विधानसभा सीट पर आजम खान की सदस्यता जाने के बाद भाजपा को जीत दिलाने में उनकी बड़ी भूमिका थी। अब स्वार विधानसभा सीट पर भी उलटफेर में उनकी बड़ी भूमिका होने वाली है। हालांकि, अगर भाजपा ने उन्हें नजरअंदाज किया तो वह पार्टी का खेल भी खराब कर सकते हैं।
स्वार विधानसभा सीट पर 16 साल बाद उप चुनाव होगा। वर्ष 2007 में नवेद मियां के इस्तीफे के कारण यह सीट खाली हुई थी। यूपी चुनाव 2007 में नवेद मियां समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे। स्वार विधानसभा सीट से जीत दर्ज की। लेकिन, प्रदेश में मायावती पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई। नवेद मियां ने स्वार सीट से इस्तीफा दे दिया। बसपा में शामिल हो गए। इसके बाद उप चुनाव में उन्होंने बसपा उम्मीदवार के तौर दावेदारी पेश की। जीत दर्ज की।
छजलैट प्रकरण केस में मुरादाबाद कोर्ट ने स्वार विधायक अब्दुल्ला आजम को दोषी करार दिया। उन्हें दो साल की सजा सुनाई। इसके बाद जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत अब्दुल्ला आजम की सदस्यता चली गई। विधानसभा सचिवालय की ओर से स्वार विधानसभा सीट को रिक्त घोषित कर दिया गया है। अब यहां पर उप चुनाव कराए जाने की तैयारी की जा रही है। इस प्रकार 16 साल बाद एक बार फिर यहां पर उप चुनाव का बिगुल बजेगा।
स्वार विधानसभा सीट के लिए उप चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि निर्वाचन आयोग कर्नाटक विधानसभा चुनाव के साथ स्वार सीट पर उप चुनाव करा सकती है। कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल मई में समाप्त हो रहा है। प्रदेश में अप्रैल-मई में उप चुनाव कराए जाएंगे। हालांकि, विधानसभा सीट के खाली होने के साथ ही राजनीतिक चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। जीत के दावे और समीकरण समझाए जाने लगे हैं। हर दल अपनी जीत के दावे कर रही है।
अब्दुल्ला आजम की विधायकी खत्म होने के बाद उनके विधायक निधि के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई है। सरकार की ओर से विधायकों को 3 करोड़ रुपए विधायक निधि के तौर आवंटन मिला था। इसको लेकर विधायक की ओर से 2.50 करोड़ रुपए की विकास योजनाओं का प्रस्ताव तैयार कराकर भेजा गया था। विधायकी समाप्त होने के बाद इन योजनाओं को राशि आवंटन पर रोक लगा दी गई है। माना जा रहा है कि चुनाव होने के बाद नए विधायक के बनने पर योजनाओं का आवंटन किया जाएगा।