आखिर कहां मिला होली का सामान?

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आज हम आपको बताएंगे कि दिल्ली में कहां-कहां मिला होली का सामान! दिल्ली के होलसेल मार्केट, जैसे- सदर बाजार, तेलीवाड़ा, लाहौरी गेट, खारी बावली और तिलक बाजार में शाम के वक्त पैर रखने की जगह नहीं है। यहां पैकिंग के साथ खुले में भी रंग-गुलाल मिल रहे हैं। मार्केट में खूब भीड़ उमड़ रही है। दुकानदार भी अपने स्टॉक खाली करने में जुट गए हैं। अब रिटेल का मार्केट बूम पकड़ेगा। बाजार में बैठे व्यापारियों का कहना है कि दो साल बाद होली के पर्व पर कोरोना महामारी कोई असर नहीं है। महंगाई होने के बावजूद जमकर व्यापार हो रहा है। बाजार, स्कूल, कॉलेज, इंस्टीट्यूट, फैक्ट्री, सामाजिक संस्थाएं, आरडब्ल्यूए, कर्मचारी संगठन सब मिलजुल कर होली मना रहे हैं। बाजार में रंग और गुलाल की सेल जोरों पर पहुंच रही है। दिल्ली के बाजारों में होली के अवसर पर करीब 2,000 टन गुलाल की बिक्री होती है। एक अनुमान के मुताबिक होली के अवसर पर सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में 400 से 500 टन गुलाल की खपत है। यहां से काफी माल दूसरे राज्यों में भी सप्लाई होता है। इस बार कारोबार नॉर्मल रहने के आसार हैं। मार्केट में खुले गुलाल के बजाए ब्रैंडिंड पैक की मांग बढ़ी है। इस बार रेट भी अधिक हुए हैं। अरारोट का प्राइस घटता-बढ़ता है, जिसका असर गुलाल के रेट पर दिखता है।

यहां भी अरारोट का गुलाल बनता है। बाजार में अरारोट की मशीन से पिसाई और हाथ से पिसाई दोनों तरह के गुलाल मौजूद है। मशीन का गुलाल बारीक होगा, जिसमें रंग और खुशबू ऑटोमैटिक मिल जाती है। मगर, हाथ से पिसे अरारोट का गुलाल थोड़ा मोटा होता है। इसमें बड़े हिसाब से रंग, पानी और खुशबू डाली जाती है। किसी तरह का कैमिकल यूज नहीं होता है। अब सदर बाजार में गुलाल और रंगों के रिटेल खरीदारों ने आना शुरू कर दिया है। अब तक थोक खरीदार मार्केट में पहुंच रहे थे। होली में कभी गुलाल का काम नहीं पिटेगा, भले नए तरह के रंग, स्प्रे, सिल्वर, गोल्डन पेस्ट आ जाए। गुलाल का उपयोग पूजा में भी किया जाता है। गाजियाबाद, मेरठ, अलीगढ़, फरीदाबाद, गुरुग्राम, रोहतक, बागपत और मथुरा भी लोग गुलाल, रंग-पिचकारी लेने लोग दिल्ली आते हैं।

वह तिलक बाजार में होली और दीपावली से पहले काम करते हैं। होली से 15 दिन पहले गुलाल और दीपावली से महीने 15 दिन पहले रंगोली बेचते हैं। अपना ही गुलाल बनाते हैं, जिसमें मिलावट की गुंजाइश नहीं है। अरारोट का गुलाल जनरल किराना स्टोर पर भी मिल जाता है। उनका कहना है कि अब तो गुलाल से खेलने का प्रचलन भी कम हो रहा है। लोग कहते हैं कि कपड़े और घर खराब हो जाएगा। कौन सफाई करेगा? हाई राइज सोसायटी और बिल्डिंग फ्लैट का कल्चर बढ़ा है। घर में होली खेलने की जगह कम होती है। अब चंदन तिलक लगाकर होली मन रही है।

सस्ता होने की वजह से लोग भूलवश इसे खरीद लेते हैं। प्रदीप गुप्ता का कहना है कि असली-नकली गुलाल की पहचान आसानी से हो सकती है। नकली गुलाल थोड़ा भारी होता है, जबकि अरारोट से बना गुलाल हल्का होता है। ये कपड़े और हाथों पर ठहरता भी नहीं है यानी इसे कपड़े खराब नहीं होते। ये आराम से झड़ जाते हैं। नकली गुलाल में खड़िया मिट्टी और मारबल के पाउडर का यूज होता है। ये शरीर के लिए नुकसानदायक होता है। दोनों गुलाल को हाथ में लेगें, तो अंतर साफ महसूस होगा। असली गुलाल हल्का होने के साथ सॉफ्ट भी होगा।

हाथों में रंग मलकर किसी के चेहरे पर लगाने वाले कलर पूरी तरह केमिकल पर आधारित होते हैं। इन्हें पानी में घोलकर किसी के ऊपर फैंक भी सकते हैं। इसका अधिकतर प्रोडक्शन गुजरात में होता है। केमिकल रंगों को इस तरह बनाया जाता है, जिससे त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचे। होलसेल में रंग 300 से 400 रुपये किलो और गुलाल 90 से 100 रुपये किलो बिक रहा है।

होली में गुलाल और रंग अहम हैं। इसका मेन मैन्यूफैक्चरिंग सेंटर हाथरस, मथुरा और प्रतापगढ़ है। कई बड़े ब्रांड के गुलाल वहीं तैयार होते हैं। इसका अधिकतर प्रोडक्शन गुजरात में होता है। केमिकल रंगों को इस तरह बनाया जाता है, जिससे त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचे। होलसेल में रंग 300 से 400 रुपये किलो और गुलाल 90 से 100 रुपये किलो बिक रहा है।यहां काफी कारीगर महीनों तक गुलाल का प्रोडक्शन करते हैं। दीपावली के बाद से जनवरी तक गुलाल बनाया जाता है। फरवरी से होली तक गुलाल की ट्रेडिंग होती है। फैक्ट्रियों से माल थोक मार्केट और उसके बाद रिटेल मार्केट तक पहुंचता है। दिल्ली में नया बाजार और सदर बाजार में गुलाल की होलसेल खरीद-बिक्री होती है।