यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या अब जातिगत पॉलिटिक्स चल पाएगी! देश में नव बौद्ध आंदोलन की सुगबुगाहट हो रही है। एक वर्ग खुद को जाति व्यवस्था के विरोधी और संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को अपना मार्गदर्शक होने का दावा कर रहा है। इस वर्ग की दलीलों से प्रभावित होने वाले लोग धर्मांतरण करके बौद्ध बन रहे हैं। यह वर्ग जिन बुराइयों को गिनाकर हिंदू समाज के खिलाफ खुलकर बोलता है, लेकिन मुस्लिम समुदाय की उन्हीं या उनसे भी बड़ी बुराइयों का दबी जुबां से बचाव करता है। यह भीम-मीम के गठजोड़ का सपना देखता है। भीम मतलब डॉ. भीमराव आंबेडकर को मानने वाले और मीम मतलब मुस्लिम समुदाय। इसकी चाहत है कि दलितों-पिछड़ों का मुसलमानों से राजनीतिक गठजोड़ हो जाए ताकि दोनों मिलकर देश में नई सियासत की नींव डाल सकें। भीम-मीम के गठजोड़ का सपना काफी पुराना है, जिसे पूरा करने की जीतोड़ कोशिशें होती रही हैं, लेकिन यह शायद ही सिरे चढ़ पाता है। ऐसा क्यों? इसका जवाब डॉ. आंबेडकर के विचारों में ही ढूंढा जा सकता है। बाबा साहब ने पाकिस्तान आंदोलन पर एक किताब लिखी है जिसका नाम है- पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन। इस पुस्तक में उन्होंने यह विस्तार से बताया है कि आखिर हिंदू-मुसलमान के बीच एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना घर कर गई तो क्यों। उन्होंने इतिहास में मुस्लिम आंक्राताओं के अत्याचार का गहराई से विश्लेषण किया और तथ्यों के साथ उदाहरण पर उदाहरण दिए। ‘पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ पुस्तक के चौथे अध्याय ‘एकता का विघटन’ में डॉ. आंबेडकर ने अतीत में हिंदू जनता पर मुस्लिम आंक्राताओं के किए अत्याचार का गहराई से लेखा-जोखा पेश किया है। बाबा साहब लिखते हैं कि 711 ई. में शुरू हुए मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले सदियों तक होते रहे। इस दौरान विदेशी खूंखार आक्रांताओं ने न केवल मंदिरों और आम जनता की दौलत लूटी बल्कि धार्मिक अत्याचार भी किए।
वो लिखते हैं, ‘भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण अरबों ने मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में सन् 711 में किया और उसने सिंध पर विजय प्राप्त की थी… इसके बाद सन् 1001 ई. में गजनी के मुहम्मद के भीषण आक्रमणों का तांता लग गया। मुहम्मद की मृत्यु 1030 ई. में हो गई परंतु तीस वर्ष की अल्पावधि में ही उसने भारत पर सत्रह बार आक्रमण किया। उसके बाद 1173 ई. में मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण किया। वह 1206 ई. में मारा गया। तीस साल तक गजनी के मुहम्मद ने भारत को रौंदा और तीस साल तक उसी तरह मुहम्मद गोरी भी इस देश को रौंदता रहा। उसके बाद आक्रांता चंगेज खान के मंगोल झुंडों ने 1221 ई. में धावे बोले… इन हमलों में से सबसे भीषण हमला 1398 में तैमूर लंग के नेतृत्व में हुआ। उसके बाद बाबर के रूप में उभरे एक नए आक्रांता ने 1526 ई. में भारत पर हमला किया। दो और आक्रमण भी हुए। आक्रांता (1738 ई.) नादिर शाह के नेतृत्व में पंजाब पर चढ़ाई कर दी। उसके बाद 1761 ई. में भारत पर अहमदशाह अब्दाली ने हमला किया।’
बाबा साहेब ने कहा कि मुस्लिम आक्रमणकारी हिंदुओं के खिलाफ घृणा से भरे हुए थे। उन्होंने लिखा, ‘आक्रांताओं ने जो हथकंडे अपनाए थे, वे अपने पीछे भविष्य में आने वाले परिणाम छोड़ते गए। उनमें से ही एक हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की कटुता है, जो उन उपायों की देन है। पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन’ पुस्तक के चौथे अध्याय ‘एकता का विघटन’ में डॉ. आंबेडकर ने अतीत में हिंदू जनता पर मुस्लिम आंक्राताओं के किए अत्याचार का गहराई से लेखा-जोखा पेश किया है। बाबा साहब लिखते हैं कि 711 ई. में शुरू हुए मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले सदियों तक होते रहे। इस दौरान विदेशी खूंखार आक्रांताओं ने न केवल मंदिरों और आम जनता की दौलत लूटी बल्कि धार्मिक अत्याचार भी किए।दोनों के बीच यह कटुता इतनी गहराई से पैठी हुई है कि एक शताब्दी का राजनीतिक जीवन इसे न शांत कर पाने में सफल हुआ है और न ही लोग उस कटुता को भुला पाए हैं। दरअसल, इन हमलों के साथ ही मंदिरों का विध्वंस, जबरन धर्मांतरण, संपत्ति की तबाही, संहार और गुलामी तथा औरतों-मर्दों और लड़कियों का अपमान हुआ था। ऐसे में क्या यह कोई आश्चर्यजनक बात है कि ये हमले सदैव याद बने रहे हैं? ये मुसलमानों के गर्व का स्रोत बने तो हिंदुओं के लिए शर्म का… मुस्लिम आक्रांता निःसंदेह हिंदुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थे।’