जानिए लालकृष्ण आडवाणी के जरिए बीजेपी की कहानी!

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आज हम आपको लालकृष्ण आडवाणी के जरिए बीजेपी की कहानी बताने जा रहे हैं! भारतीय जनता पार्टी बीजेपी के उदय के बाद उसे दो सीटें मिलने की कहानी तो सभी जानते हैं लेकिन उस 2 सीट के बाद उस दौर की इस नई-नवेली पार्टी पर क्या गुजरी थी उसे जान चौंक जाएंगे। तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की 1984 में हत्या कर दी जाती है। इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस सहानुभूति की लहर पर सवार होकर उतरी थी और इसका सबसे बड़ा शिकार बीजेपी को होना पड़ा था। 542 सांसदों के चुनाव में भगवा दल को महज 2 सीटों पर ही जीत मिली थी। यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव हार गए थे। इस हार का दर्द बीजेपी के लिए बहुत मुश्किल वाला था। बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी किताब ‘मेरा देश, मेरा जीवन’ में इस हार के दर्द का जिक्र किया है। अपनी आत्मकथा में आडवाणी लिखते हैं कि हमारी पार्टी को सबसे बड़ा धक्का 1984 में लगा । 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की उनके आवास पर हत्या कर दी जाती है। इंदिरा गांधी का अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था कि राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 31 अक्टूबर की शाम को इंदिरा के बड़े पुत्र राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी। राजीव 40 की उम्र में देश के सबसे युवा पीएम बन गए। सहानुभूति लहर का लाभ उठाने के लिए लोकसभा ही भंग कर दी गई और 45 दिनों के भीतर नए चुनाव कराने की घोषणा कर दी गई। बीजेपी महज 2 सीटें ही जीत पाई। पार्टी के कार्यकर्ता परेशान थे। तत्कालीन अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी इस्तीफे की पेशकश कर रहे थे। पार्टी बेहाल थी।

आडवाणी ने अपनी किताब में लिखा है कि 1984 के लोकसभा चुनावों में इस सहानुभूति लहर का सबसे बड़ा शिकार बीजेपी हुई। उन्होंने लिखा है, ‘हमारी पार्टी 542 सदस्यीय सदन में केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों एक गुजरात और एक आंध्र प्रदेश से ही जीत सकी। अविश्वसनीय रूप से अटलजी भी हार गए। कांग्रेस को 401 सीटें मिलीं, जो इंदिरा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के पीएम रहने के समय से भी अधिक थीं।

बीजेपी की बड़ी हार ने पार्टी को अंदर तक हिला दिया था। आडवाणी ने किताब में लिखा है कि 1985 में कलकत्ता में हुई पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी की हार पर विचार किया गया। पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अटल बिहारी ने कहा था, ‘मैं लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं और खुशी से जो भी दंड पार्टी निर्णय करे, भुगतने को तैयार हूं।’ पार्टी ने अटल के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। बीजेपी में हर कोई जानता था कि लोकसभा में केवल 2 सीटें मिलने का मतलब भारतीय राजनीति में पार्टी की सही उपस्थिति का प्रतिबिंब नहीं है।

किताब में आडवाणी ने लिखा है कि फिर भी, अटल बिहारी ने पार्टी का अध्यक्ष स्वीकार करने के लिए मुझपर जोर डाला। उन्होंने कहा कि इसके निर्माण से अब तक उन्होंने लंबी पारी खेली है। पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अटल बिहारी ने कहा था, ‘मैं लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं और खुशी से जो भी दंड पार्टी निर्णय करे, भुगतने को तैयार हूं।’ पार्टी ने अटल के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। बीजेपी में हर कोई जानता था कि लोकसभा में केवल 2 सीटें मिलने का मतलब भारतीय राजनीति में पार्टी की सही उपस्थिति का प्रतिबिंब नहीं है।अंत में मुझे मई 1986 में नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ स्टेडियम में आयोजित पार्टी के अधिवेशन में मुझे अध्यक्ष चुना गया। इसके साथ ही मेरी पार्टी और मेरी अपनी राजनीतिक यात्रा का एक नया चरण आरंभ हुआ।

हालांकि, 2 सीटों पर मिली हार के बाद पार्टी ने कई रास्ते तय किए। आडवाणी के राम मंदिर आंदोलन शुरू करने के बाद बीजेपी ने फिर कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा। बीजेपी न केवल राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल किया बल्कि केंद्र सरकार में भी शामिल रही।पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अटल बिहारी ने कहा था, ‘मैं लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं और खुशी से जो भी दंड पार्टी निर्णय करे, भुगतने को तैयार हूं।’ पार्टी ने अटल के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। बीजेपी में हर कोई जानता था कि लोकसभा में केवल 2 सीटें मिलने का मतलब भारतीय राजनीति में पार्टी की सही उपस्थिति का प्रतिबिंब नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी देश के पीएम भी बने। इसके बाद 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम कैंडिडेट बनने के बाद बीजेपी न केवल पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाने में सफल हुई बल्कि यूपी जैसे राज्य में बीजेपी लगातार दो बार अपने दम पर सरकार बनाने में सफल हुई। 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को सर्वाधिक 303 सीटें मिलीं।