एक ऐसा समय जब अतीक अहमद सभी के मुकदमे सुना करता था! जरायम की दुनिया में अतीक ने अपना रसूख इतना बुलंद कर लिया था कि लोग उस तक अपने मामले निपटाने के लिए पहुंचते थे। उसका दरबार लगता था। कचहरी की तरह वहां मुकदमे सुने जाते थे। जज की भूमिका में खुद अतीक होता था। वह फैसले सुनाता, जो सुना दिया, उसे मानने के अलावा किसी और के पास कोई चारा नहीं होता था। जो भी इसमें ना-नुकुर करता दिखता, उसे सजा भी मिलती थी। दरबार के लिए बनी इस आलीशान बिल्डिंग में इसके लिए एक टॉर्चर रूम भी था। हालांकि यह बिल्डिंग केवल उसकी ‘अदालत’ भर नहीं थी, उसकी ऐशगाह भी थी। बिल्डिंग की पहली मंजिल पर बाकायदा मुजरा होता था, विदेशी लड़कियां लाई जाती थीं। अतीक का जिस बिल्डिंग में दरबार लगता था, वहीं से बीते दिनों पुलिस ने असलहे और कैश बरामद किए थे। अतीक का यह आलीशान कार्यालय अब खंडहरनुमा दिखता है। दरअसल कार्यालय का एक हिस्सा मानचित्र के विपरीत बना था। इसके बाद प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने इस अवैध हिस्से को ध्वस्त कर दिया गया था। इसके बाद अतीक अहमद का यह कार्यालय बाहर से खंडहरनुमा दिखाई देता है। हालांकि इसके भीतर की दीवारों में अतीक के उस दौर के राज दफन हैं, जब उसका खौफ लोगों में छाया रहता था।
कार्यालय की पहली मंजिल पर अब भी सैकड़ों फाइलें धूल फांक रही हैं। जो उसके काले कारनामों से जुड़ी हैं। अतीक रेलवे के स्क्रैप का कारोबार और जमीनों की खरीद-फरोख्त से जुड़े दस्तावेज इन्हीं फाइलों में रखता था। ठेकेदारी से जुड़ी बातें भी इसमें दर्ज हैं। एक समय माफिया अतीक अहमद का रेलवे के स्क्रैप के कारोबार पर एकछत्र राज था। उसके रहते कोई दूसरा व्यक्ति स्क्रैप नहीं खरीद सकता था।
अतीक जहां अपनी कचहरी लगाता था, उसी के पास ही उसका टॉर्चर रूम भी था। कचहरी की नफरमानी वालों को तो इस टॉर्चर रूम में ले जाकर सबक सिखाया ही जाता था। बाद में यहां अपहृत लोगों को भी लाया जाने लगा। उन्हें यहां बाकायदा बांधकर हंटर से पीटा जाता था। प्रयागराज में जो लोग अतीक की नाफरमानी करते, उन्हें बाकायदा यहां लाकर उसकी सजा दी जाती थी।
इसी टॉर्चर रूम में उमेश पाल को 2006 में अपहरण के बाद लाया गया था। लेकिन पुलिस के मुताबिक उमेश पाल और दो सरकारी गनर की हत्या के बाद अतीक अहमद के गुर्गों ने यहीं पर रुपये और असलहे छिपाए थे। अतीक के इसी कार्यालय से ही 74 लाख 62 हजार रुपये की बरामदगी हुई थी। इसके अलावा 10 असलहे, 112 कारतूस व एक मैगजीन भी बरामद हुई थी।
अतीक के दरबार के तौर पर प्रयागराज की यह चर्चित बिल्डिंग न केवल उसके फैसलों के लिए जानी जाती थी, बल्कि उसे ऐशगाह के तौर पर भी उसकी खासी पहचान थी। अतीक का भाई अशरफ मुजरा सुनने का शौकीन था। उसके लिए पहली मंजिल पर मुजरा सुनने की व्यवस्था थी। पहली मंजिल के एक कमरे में बाकायदा मुजरा होता था। नाच-गाना देखने सुनने के लिए कमरे में तीन तरफ गद्दे लगाए गए थे। इस कमरे में हुक्का पार्टी का दौर भी चलता था।
साल 1989 था। इलाहाबाद अब प्रयागराज में चांद बाबा एक रसूखदार गैंगस्टर था। अतीक के गुरु के तौर पर उन्हें जाना जाता है। अतीक ने चांद बाबा से इलाहाबाद पश्चिमी सीट से विधायकी लड़ने की इच्छा जताई। चांद बाबा मान गया। लेकिन बाद में कुछ ऐसा हुआ कि चांद बाबा भी इसी सीट से उम्मीदवार हो गए। अतीक को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। पोलिंग के बाद ही 6 नवंबर 1989 को गैंगवॉर हुआ। इसमें चांदबाबा मारा गया। कहा तो यह जाता है कि अतीक भी इसमें शामिल था। अगले दिन जब चुनाव के नतीजे आए तो अतीक चुनाव जीत गया।
अतीक ने अपने डर से अपराध का साम्राज्य खड़ा कर रहा था। स्थानीय गुंडे छम्मन का अतीक से विवाद हुआ। छम्मन ने इलाहाबाद छोड़कर मुंबई का रास्ता पकड़ लिया। उसे लगा कि शहर छोड़ने से जिंदगी बची रहेगी। लेकिन कहते हैं कि अतीक ने मुंबई से छम्मन को उठवाया और बेरहमी से मार डाला। इलाहाबाद पुलिस ने अतीक और उसके करीबियों के खिलाफ हत्या, अपहरण का मुकदमा दर्ज किया। अतीक के घर और ठिकानों पर दबिश दी गई, लेकिन वह हाथ नहीं लगा।
यह अतीक का खौफ ही था कि उसकी जमानत अर्जी पर सुनवाई से इलाहाबाद हाई कोर्ट के दस जजों ने खुद को अलग कर लिया था। बात साल 2012 की है। यूपी विधान सभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। 100 से ज्यादा मुकदमे अतीक के ऊपर दर्ज थे और सभी उसके खौफ से आतंकित थी। जूडिशरी भी इससे अलग नहीं थी। अतीक ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपनी जमानत के लिए याचिका दायर की। अतीक की याचिका पर सुनवाई से हाई कोर्ट के 10 जजों ने खुद को अलग कर लिया। 11वें जज ने सुनवाई की। इन्होंने अतीक की जमानत याचिका मंजूर कर ली और अतीक जेल से बाहर आया और चुनाव लड़ा।