आज हम आपको बताएंगे कि थायराइड कैसे होता है! हमारे शरीर में थायरॉइड की उपयोगिता क्या है? थायरॉइड की परेशानी क्यों होती है? अगर थायरॉइड का इलाज नहीं किया गया तो क्या हो सकता है? क्या इसका असर दिल पर भी होता है? क्या यह मोटे लोगों को ज्यादा होता है? हमारे शरीर की गतिविधियां अमूमन दो तरीकों से कंट्रोल होती है। नर्वस कंट्रोल और दूसरा हॉर्मोनल कंट्रोल। नर्वस कंट्रोल बहुत तेज होता है, जैसे हमने कोई गर्म या ठंडी चीज छू ली तो हम फौरन ही हाथ हटा लेते हैं। यह तुरंत होनेवाला रिऐक्शन ही नर्वस कंट्रोल है। वहीं हॉर्मोनल कंट्रोल में वक्त लगता है। यह धीरे-धीरे होता है। जैसे- गुस्सा आना, प्यार का अहसास, सेक्स की फीलिंग। हॉर्मोनल कंट्रोल में गड़बड़ी से शुगर, थायरॉइड से जुड़ी जैसी परेशानी भी आती है। आज बात सिर्फ थायरॉइड की।
थायरॉइड एक ग्लैंड (ग्रंथि) है जो हमारी गर्दन में मौजूद है। यह बटरफ्लाई यानी तितली की तरह दिखती है। इसका काम है T3, T4 हॉर्मोन निकालना। T3: 10 से 30 माइक्रोग्राम और T4: 60 से 90 माइक्रोग्राम निकलता रहता है। T3, T4 हॉर्मोन का उत्पादन कम या ज्यादा हो तो इसे सही बनाकर रखने के लिए TSH (Thyroid Stimulating Hormone) अहम रोल निभाता है। इसी के अनुसार इस हॉर्मोन को भी अपना उत्पादन घटाना या बढ़ाना पड़ता है। TSH हॉर्मोन हमारे दिमाग में मौजूद पिट्यूटरी ग्लैंड से निकलता है। यही कारण है कि कई बार ब्लड टेस्ट कराने पर रिपोर्ट में T3, T4 तो सामान्य रहता है लेकिन TSH ज्यादा या कम आता है। इससे यह बिलकुल नहीं समझना चाहिए कि परेशानी TSH की है। असल में T3, T4 के उत्पादन में आए फर्क का नतीजा ही TSH में गड़बड़ी के रूप में सामने आता है। जांच रिपोर्ट और मरीज की स्थिति को देखने के बाद डॉक्टर दवा लिखते हैं। यह दवा TSH के लिए नहीं बल्कि T3, T4 हॉर्मोन की गोली होती है या ऐंटिथायरॉइड दवा होती है ताकि शरीर में इनकी मात्रा सामान्य हो जाए और TSH की मात्रा भी सामान्य रहे।
हमारे शरीर में जो जितना अहम अंग है, उसे उसी क्रम और सुरक्षा व्यवस्था में कुदरत ने रखा है। जैसे दिमाग सभी अंगों को काबू में रखता है, इसलिए उसे सबसे ऊपर स्थान दिया गया है। इसी तरह दिल को छाती के नीचे महफूज़ रखा गया है। ऐसे ही थायरॉइड ग्लैंड को उसके काम के अनुसार गले में जगह दी गई है। गले को हमारे शरीर का मेन गेट कह सकते हैं। चूंकि यह ग्लैंड मेन गेट पर मौजूद होता है, ऐसे में इसकी अहमियत समझी जा सकती है। मुंह से चबाने के बाद खाना आहार नली से गुजरती है, उससे पहले इसे थायरॉइड से भी पास लेना पड़ता है। हमने क्या खाया यह शरीर को किस गति पर उपलब्ध हो, शरीर इसे कितनी जल्दी ज़ज्ब करे, यह भी इसी का काम है। वैज्ञानिक भाषा में इसे मेटाबॉलिज़म (जिस प्रक्रिया के द्वारा शरीर भोजन को ऊर्जा में बदलता है) कहते हैं। इसकी दर को निर्धारित करना भी थायरॉइड ग्लैंड का ही काम होता है। इसलिए इसकी दवा सुबह खाली पेट यानी कुछ भी खाने से पहले लेनी होती है। कुछ मामलों में थायरॉइड ग्रंथि की समस्या कई मामलों में डायबीटीज की शुरुआत की वजह भी बनती है।
हाइपरथायरॉइडिज़म की तुलना में हाइपोथायरॉइडिज़म के मामले ज्यादा होते हैं। चूंकि यह एक ग्रंथि है, इसलिए इससे निकलने वाले स्राव T3, T4 का कम या ज्यादा होना ही इसकी समस्या की जड़ होती है। जब किसी गड़बड़ी की वजह से ये हॉर्मोन ज्यादा मात्रा में निकलते हैं तो इसे हाइपरथायरॉइडिज़म कहते हैं। वहीं जब हॉर्मोन निकलने में कमी आ जाती है तो इसे हाइपोथायरॉइडिज़म कहते हैं। शरीर में इन हॉर्मोन्स का स्तर सही बनाकर रखने के लिए हमारे ब्रेन से TSH हॉर्मोन निकलता है।
TSH हॉर्मोन का काम है थायरॉइड ग्लैंड में बनने वाले हॉर्मोन की गति को कम या ज्यादा करना। अगर किसी को हाइपरथायरॉइडिज़म की परेशानी हुई है। इसका सीधा-सा मतलब है कि उसके शरीर में मौजूद ग्रंथि ज्यादा मात्रा में T3 और T4 हॉर्मोन का उत्पादन ज्यादा करने लगी है। इनके ज्यादा उत्पादन से शरीर में अलग-अलग लक्षण उभरने लगते हैं। इन लक्षणों को सही करने के लिए शरीर का अपना एक सिस्टम है। उस सिस्टम का अहम भाग है पिट्यूटरी ग्लैंड। यह ग्लैंड एक हॉर्मोन TSH निकालता है। यह हॉर्मोन थायरॉइड की कोशिकाओं को उत्तेजित करता है, पर हाइपरथायरॉइडिज़म में पहले से ही हॉर्मोन्स का ज्यादा उत्पादन हो रहा होता है। इसलिए पिट्यूटरी अपने हॉर्मोन यानी TSH का उत्पादन कम कर देता है। जब यह काफी कम होने लगता है तो कई दूसरी परेशानियां भी उभरने लगती हैं। ऐसे में जब कोई हाइपरथायरॉइडिज़म का मरीज अपने खून की जांच कराता है तो उसके शरीर में TSH की मात्रा कम निकलती है। ऐसे में डॉक्टर मरीज को Livo-Thyroid की गोली देते हैं। इससे शरीर में थायरॉइड के हॉर्मोन की मात्रा कम होने लगती है, नतीजा TSH भी नॉर्मल हो जाता है।
यह स्थिति हाइपोथायरॉइडिज़म के केस में बनती है। इसमें T3, T4 का उत्पादन कम होने लगता है। इसे बढ़ाने के लिए ब्रेन TSH का उत्पादन बढ़ा देता है ताकि थायरॉइड ग्लैंड ज्यादा से ज्यादा मात्रा में इन हॉर्मोन्स का उत्पादन कर सके। जब खून में T3, T4 का स्तर कम होने लगता है और TSH का स्तर बढ़ने लगता है तो कई तरह के लक्षण उभरते हैं। इसकी विस्तार से चर्चा हम आगे करेंगे। ऐसे में डॉक्टर मरीज को T3, T4 हॉर्मोन की गोली लेने की सलाह देते हैं। यह दवा सुबह में खाली पेट लेनी होती है। इस दवा को लेने से शरीर में थायरॉइड हॉर्मोन का स्तर सामान्य होने लगता है। नतीजा TSH का उत्पादन भी कम होकर सामान्य हो जाता है। इससे TSH की वजह से होने वाले बुरे लक्षण भी खत्म होने लगते हैं।
T3, T4 ज्यादा आने का मतलब है हाइपरथायरॉइडिज़म (Hyperthyroidism)। विज्ञान की भाषा में हाइपर का मतलब होता है ‘ज्यादा’ यानी किसी शख्स के शरीर में ज्यादा मात्रा में थायरॉइड हॉर्मोन (T3, T4) निकलने लगे हैं। जैसे-जैसे इन हॉर्मोन्स का स्तर सामान्य से बढ़ने लगता है, उसी हिसाब से लक्षण भी उभरने लगते हैं।
हाइपोथायरॉइडिज़म होने की वजह, हाइपरथायरॉइडिज़म से उलट मानी जाती है। इस स्थिति में थायरॉइड हॉर्मोन (T3, T4) कम निकलता है। ऐसे में शरीर इनके प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए TSH का उत्पादन बढ़ा देता है। दरअसल, TSH हॉर्मोन का काम है थायरॉइड को स्टिमुलेट यानी उत्तेजित कर ज्यादा मात्रा में T3, T4 हॉर्मोन पैदा करवाना।