Friday, September 20, 2024
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क्या शुक्र ग्रह पहुंचेगा ISRO?

ISRO अब शुक्र ग्रह पहुंच सकता है! आज दुनिया भर में भारत की धाक बढ़ रही है। कई क्षेत्रों में भारत तेजी से विकास कर रहा है। दुनिया आज अंतरिक्ष में भारत की उड़ान को देख रही है। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को आज एक महाशक्ति के रूप में देखा जाता है। इसके पीछे बड़ी वजह है कि कैसे भारत ने हाल ही में अंतरिक्ष में सटीकता के साथ लक्ष्य भेदने की क्षमता हासिल करके एक बड़ा कारनामा अंजाम दिया है। कुछ ही दिन पहले एक साथ 36 सैटेलाइट को लॉन्च किया गया। सैटेलाइट लॉन्च के क्षेत्र में भारत की विशेषज्ञता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया के कई देश कम लागत में अपने सैटेलाइट को लॉन्च कराने के लिए भारत पर निर्भर हैं। भारत के इस सेक्टर में बढ़ती ताकत के पीछे 19 अप्रैल का खासा महत्व है। यही वह दिन है जब भारत रूस की मदद से अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च कर अंतरिक्ष युग में दाखिल हुआ। यह भारत का पहला वैज्ञानिक उपग्रह था। साल 1957 की बात है जब रूस ने अपना पहला सैटेलाइट स्पुतनिक लॉन्च किया था। अगले ही साल नासा ने भी स्पेस मिशन पर काम करना शुरू कर दिया। भारत में अभी इस दिशा में कुछ खास नहीं सोचा गया था। रूस और अमेरिका के स्पेस मिशन शुरू होने के बाद भारतीय साइंटिस्ट पर भी ऐसा करने का प्रेशर बढ़ा। भारत में अधिक स्कोप नहीं था तो अधिकतर वैज्ञानिक काम के लिए विदेश जाते थे। भारत में 1962 में स्पेस फतह करने के लिए द इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की शुरुआत हुई। 1968 में इसका नाम बदलकर इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) कर दिया गया।

उस वक्त विक्रम साराभाई सोवियत रूस और अमेरिका की यात्रा पर थे। उनके दिमाग में स्पेस मिशन को शुरू करने का ख्याल आया। कुछ दिन बाद उडिपी रामचंद्र राव ने साराभाई को अपना प्लान बताया।उडिपी रामचंद्र रावभारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के भूतपूर्व अध्‍यक्ष थे।यही वह दिन है जब भारत रूस की मदद से अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च कर अंतरिक्ष युग में दाखिल हुआ। यह भारत का पहला वैज्ञानिक उपग्रह था। साल 1957 की बात है जब रूस ने अपना पहला सैटेलाइट स्पुतनिक लॉन्च किया था। अगले ही साल नासा ने भी स्पेस मिशन पर काम करना शुरू कर दिया। भारत में अभी इस दिशा में कुछ खास नहीं सोचा गया था। रूस और अमेरिका के स्पेस मिशन शुरू होने के बाद भारतीय साइंटिस्ट पर भी ऐसा करने का प्रेशर बढ़ा। भारत में अधिक स्कोप नहीं था तो अधिकतर वैज्ञानिक काम के लिए विदेश जाते थे। भारत में 1962 में स्पेस फतह करने के लिए द इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की शुरुआत हुई। उनकी अगुवाई में साल 1975 में भारत के पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया। वह भारत के पहले अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे, जिन्‍हें साल 2013 में ‘सैटेलाइट हाल ऑफ द फेम’ से और साल 2016 में ‘आईएएफ हाल ऑफ द फेम’ में शामिल करने के साथ ही सम्‍मानित भी किया गया। साल 1972 में भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की स्‍थापना की जिम्‍मेदारी ली।

पिछले महीने ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एलवीएम3 रॉकेट के जरिए ब्रिटेन स्थित वनवेब समूह कंपनी के 36 उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करके एक और उपलब्धि हासिल कर ली। इसरो ने कहा कि एलवीएम3-एम3/वनवेब इंडिया-2 मिशन पूरा हो गया। सभी 36 वनवेब जेन-1 उपग्रहों को निर्धारित कक्षाओं में स्थापित कर दिया गया है।यही वह दिन है जब भारत रूस की मदद से अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च कर अंतरिक्ष युग में दाखिल हुआ। यह भारत का पहला वैज्ञानिक उपग्रह था। साल 1957 की बात है जब रूस ने अपना पहला सैटेलाइट स्पुतनिक लॉन्च किया था। अगले ही साल नासा ने भी स्पेस मिशन पर काम करना शुरू कर दिया। भारत में अभी इस दिशा में कुछ खास नहीं सोचा गया था। रूस और अमेरिका के स्पेस मिशन शुरू होने के बाद भारतीय साइंटिस्ट पर भी ऐसा करने का प्रेशर बढ़ा। भारत में अधिक स्कोप नहीं था तो अधिकतर वैज्ञानिक काम के लिए विदेश जाते थे। भारत में 1962 में स्पेस फतह करने के लिए द इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की शुरुआत हुई। एलवीएम3 अपने लगातार छठे प्रक्षेपण में पृथ्वी की निचली कक्षा में 5,805 किलोग्राम पेलोड लेकर गया। इसके साथ ही महत्वाकांक्षी गगनयान परियोजना के बारे में बात करते हुए इसरो अध्यक्ष ने कहा कि यह बहुत अच्छा चल रहा है। इसमें तीन दिवसीय मिशन के लिए 400 किलोमीटर की कक्षा में तीन लोगों के दल को भेजने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाकर मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता के प्रदर्शन की परिकल्पना की गई है।

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