एक ऐसी कहानी जिसमें अमेरिका से भारत आकर करोड़ों का व्यापार खड़ा कर दिया गया! अमेरिका में लाखों की नौकरी छोड़ डॉ किशोर इंदुकुरी ने भारत लौटकर बिल्कुल देसी कारोबार में कदम रखा। यह कारोबार था डेरी का। सिर्फ 20 गायों से उन्होंने डेरी शुरू की थी। फिर कुछ ही सालों में उन्होंने इससे कारोड़ों का कारोबार खड़ा कर दिया। आज उनकी कंपनी 20,000 से ज्यादा ग्राहकों को शुद्ध डेरी प्रोडक्ट डिलीवर करने का दावा करती है। इस कारोबार में उतरते वक्त डॉ किशोर को डेरी इंडस्ट्री का ककहरा भी नहीं पता था। उन्होंने एक-एक कर इसकी बारीकियों को जाना और समझा। उनके पिता इंजीनियर थे। किशोर का खुद का बैकग्राउंड भी केमिस्ट्री का था। वह आईआईटी खड़गपुर और यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स से पढ़े हैं। अमेरिका में रहते हुए उन्होंने करीब 6 साल इंटेल कॉरपोरेशन में नौकरी की। डॉ किशोर इंदुकुरी आंध्र प्रदेश के ईस्ट गोदावरी जिले के रहने वाले हैं। उनकी शुरुआती पढ़ाई हैदराबाद में हुई। 2000 में आईआईटी खड़गपुर से किशोर ने केमिस्ट्री में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। फिर पॉलीमर साइंस एंड इंजीनियरिंग में मैसाचुसेट्स से पोस्टग्रेजुएशन और पीएचडी की। करीब छह साल तक उन्होंने इंटेल कॉरपोरेशन में काम किया। 2012 में वह भारत वापस आ गए थे। किशोर कहते हैं कि उन्हें अपनी जड़ों से बहुत ज्यादा प्यार है। अमेरिका में रहते हुए भी वह एक दिन अपने देश को नहीं भूल पाए। इंटेल कॉरपोरेशन में उन्होंने 6 साल काम किया। लेकिन, यह नौकरी पता नहीं क्यों उन्हें वैसा ‘पुश’ नहीं दे रही थी जैसा वो चाहते थे।
भारत लौटकर किशोर ने पाया कि यहां मिलावटी दूध की बहुत बड़ी समस्या है। आए दिन अखबारों में इससे जुड़ी खबरें छप रही थीं। हैदराबाद और इसके आसपास के इलाके भी इससे अछूते नहीं थे। शुद्ध दूध, दही, घी और अन्य डेरी प्रोडक्टों की जरूरत को वह समझ चुके थे। उन्हें इस बात का भी एहसास था कि इसमें काफी ज्यादा स्कोप है। अंत में किशोर ने 20 गायों से डेरी शुरू की।
2013 में डेरी कारोबार शुरू करते हुए किशोर को बिजनस मॉडल में गड़बड़ी दिखी। वह कहते हैं कि उस वक्त एक लीटर दूध के प्रोडक्शन में 25 रुपये का खर्च आ रहा था। इसके उलट कंपनियां दूध को 15 रुपये लीटर के भाव से खरीद रही थीं। उन्हें वहीं समझ आ गया कि यह चल नहीं पाएगा। किशोर कहते हैं कि तभी उन्होंने फैसला लिया कि वह सीधे ग्राहकों से जुड़ेंगे। दूसरे शब्दों कहें तो उन्होंने डायरेक्ट टू कस्टमर (D2C) मॉडल की तरफ कदम बढ़ा दिए थे।
किशोर कहते हैं कि शुरू शुरू में पैकिंग मशीन से वह खुद ही दूध पैक करके लोगों को डिलीवर किया करते थे। इसमें सबसे बड़ी चुनौती दूध को समय पर लोगों तक पहुंचाने की थी। सुबह दूध डिलीवर करने के लिए वह तड़के 2-3 बजे से पैकिंग करने में जुट जाते थे। इसका एक फायदा यह हुआ कि उन्हें फीडबैक तुरंत मिल जाता था। यह फीडबैक ही उनके लिए सबसे ज्यादा मायने रखता था। हालांकि, किशोर को एहसास हुआ कि इससे वह एक सीमा में बंधकर रह जाएंगे। फिर उन्होंने पैकेजिंग के साथ प्रोसेसिंग की भी तकनीक सीखी। साथ ही टेस्टिंग पर फोकस बढ़ाया।
2016 में किशोर ने हैदराबाद में सिड्स फार्म की शुरुआत की। उनके बेटे का नाम सिद्धार्थ है। उसी के घर के नाम से किशोर ने इस कंपनी का नाम रखा। सिड आज 13 साल का हो चुका है। किशोर कहते हैं कि कंपनी को चलाने में उनका एक मूल सिद्धांत है। ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ कोई समझौता नहीं करना है। सिड्स फार्म आज तमाम तरह के डेरी प्रोडक्टों की पेशकश करती है। इनमें गाय का दूध, भैंस का दूध, स्किम मिल्क, ए2 देसी गाय का दूध, डबल टोन्ड बफैलो मिल्क, काउ बटर, काउ घी, बफैलो बटर, बफैलो घी, दूध और पनीर शामिल हैं।
सिड्स फार्म के पास आज 4,000 वर्ग फीट में प्रोसेसिंग यूनिट है। इनका डेरी प्लांट 2.5 एकड़ जमीन में फैला है। दूध में मिलावट को देखने के लिए 4 स्टेज में रोजाना 6,500 टेस्ट किए जाते हैं। रंगा रेड्डी जिले के शाबाद में बनी यूनिट में किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है। कंपनी का सालाना टर्नओवर बढ़कर करीब 87.50 करोड़ रुपये अनऑडिटेड पर पहुंच चुका है। यह करीब 32,000 लीटर दूध का उत्पादन रोजाना करती है। इन्हें सीधे ग्राहकों, एजेंटों और बी2बी रिटेल पार्टनरों तक पहुंचाया जाता है। इन बी2बी रिटेल पार्टनरों में बीबीडेली, स्विगी इंस्टामार्ट, जेप्टो, मिल्क बास्केट और दूसरे स्टोर शामिल हैं।