एक समय ऐसा था जब बाल ठाकरे भाजपा को कमलाबाई कहते थे! महाराष्ट्र में शिवसेना पर हक को लेकर सियासी लड़ाई जारी है। आज शिवसेना पर असली हक को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ फैसला सुना सकती है। 2022 के महाराष्ट्र राजनीतिक संकट को लेकर शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे धड़ों की ओर की याचिकाएं दायर की गई थीं। इसी को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा। बता दें कि पिछले साल ही उद्धव ठाकरे के खिलाफ जाकर 48 विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे अलग हो गए थे। इसके बाद उन्होंने शिवसेना पर अपना दावा ठोक दिया। चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे के पक्ष में फैसला सुनाया और शिवसेना का चुनाव चिन्ह और नाम उनके खेमे को दे दिया। इसी के खिलाफ उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। शिंदे गुट ने भी इसको लेकर कोर्ट का रूख किया था।
उद्धव ठाकरे ने इस पूरे विवाद के पीछे भाजपा का हाथ होने का आरोप लगाया था। हालांकि, एक जमाना था जब महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना का छोटा भाई कहा जाता था। यहां तक बाला साहेब ठाकरे भाजपा को कमलाबाई तक कह देते थे। अब महाराष्ट्र में शिवसेना के मुकाबले भाजपा ज्यादा मजबूत हो गई है। अब महाराष्ट्र में शिवसेना से ज्यादा भाजपा के विधायक और सांसद हैं।
भाजपा-शिवसेना का पहली बार गठबंधन 1989 में हुआ था। भाजपा नेता प्रमोद महाजन खुद गठबंधन का प्रस्ताव लेकर बाल ठाकरे के पास गए थे। कहा जाता है कि उस दौरान महाजन के प्रस्ताव पर बाल ठाकरे ने मुंह से कुछ बोलने की बजाय एक कागज पर लिखा- ‘शिवसेना 200 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और जो सीटें बचती हैं, उन पर भाजपा लड़ ले।’ महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटें हैं। ठाकरे के इस प्रस्ताव पर प्रमोद महाजन ने मोलभाव किया। आधे घंटे से भी कम समय में गठबंधन को इस बात पर फाइनल किया गया कि 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 183 और भाजपा 104 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
हिंदुत्व के नाम पर दोनों पार्टियां तेजी से आगे बढ़ीं। दोनों के विचारधारा एक सी थीं। मुद्दों और नीतियों में काफी समानता थी। दोनों के रिश्ते हमेशा पति-पत्नी जैसे थे। 1989 का लोकसभा चुनाव भी दोनों ने साथ लड़ा। तब भाजपा ने 33 और शिवसेना ने तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि, उस समय शिवसेना का अपना चुनाव चिह्न नहीं था, इसलिए उसके कई उम्मीदवार भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़े थे। उस चुनाव में भाजपा 10 और शिवसेना एक सीट जीती थी।
फिर आया 1990 का विधानसभा चुनाव। तब 183 सीटों पर लड़ने वाली शिवसेना 52 सीटें जीत पाई जबकि 64 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई। वहीं, 104 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा के 42 उम्मीदवार जीते और 23 पर उसकी जमानत जब्त हुई। चुनाव में भाजपा स्ट्राइक रेट शिवसेना से बेहतर रहा। तब से लेकर अब इस गठबंधन ने जितने चुनाव लड़े सभी में भाजपा का स्ट्राइक रेट शिवसेना के मुकाबले बेहतर रहा।
1990 विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान का नतीजा था कि 1991 का बृहन्मुंबई नगर निगम का चुनाव भाजपा-शिवसेना ने अलग-अलग लड़ा था, क्योंकि सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही थी। 1995 का विधानसभा चुनाव आते-आते दोनों में खींचतान बढ़ने लगी थी कि अगर सरकार बनाने लायक सीटें आईं, तो मुख्यमंत्री किसका होगा। हालांकि, तब भाजपा महाराष्ट्र में जूनियर पार्टी ही थी। इसलिए बाल ठाकरे का तय किया हुआ फॉर्म्यूला लागू किया गया। इसके मुताबिक, जिस पार्टी की ज्यादा सीटें होंगी, उसका मुख्यमंत्री होगा।
तब शिवसेना 169 और बीजेपी 116 सीटों पर चुनाव लड़ी। नतीजा रहा कि शिवसेना 73 सीटें जीती, 60 पर जमानत जब्त हुई जबकि भाजपा 65 सीटें जीती और 25 पर जमानत जब्त हुई। गठबंधन की कुल सीटें 138 थीं, निर्दलीय विधायकों के समर्थन से शिवसेना-भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई। शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने और भाजपा के गोपीनाथ मुंडे उप-मुख्यमंत्री। हालांकि, जोशी के करीब 4 साल के कार्यकाल के बाद शिवसेना के नारायण राणे ने नौ महीने के लिए कुर्सी संभाली।
1999 में शिवसेना 161 और बीजेपी 117 सीटों पर एकसाथ चुनाव लड़ी। शिवसेना को 69 और भाजपा को 56 सीटें मिलीं। कहा जाता है कि 1999 के चुनाव में भाजपा-शिवसेना की आपसी मतभेद ने काफी नुकसान पहुंचाया। तब सरकार बनाने का मौका गंवाकर भाजपा-शिवसेना अगले 15 साल तक महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर रहे। कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन जारी रहा। 1999 से 2014 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कांग्रेस के विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण बैठे।
फरवरी 2019 में बीजेपी-शिवसेना ने लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया। 48 सीटों वाले महाराष्ट्र में शिवसेना 50-50 के फॉर्म्यूले पर अड़ी थी। आखिर में बीजेपी 25 और शिवसेना 23 सीटों पर लड़ी। नरेंद्र मोदी ने अपनी केंद्र सरकार में शिवसेना कोटे से सिर्फ अरविंद सावंत को मंत्री बनाया। रही-सही कसर विधानसभा चुनाव के गठबंधन में पूरी हो गई। जब भाजपा ने शिवसेना को 126 सीटें दीं। ऐसा पहली बार हुआ, जब गठबंधन में शिवसेना 150 से कम सीटों पर लड़ी। तब भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिलीं। इसके बाद शिवसेना ने भाजपा के सामने ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री का ऑफर रख दिया। भाजपा ने इसे मानने से इंकार कर दिया। करीब एक महीने तक दोनों पार्टियों के बीच खींचतान जारी रही। इस बीच, उद्धव ठाकरे ने सोनिया गांधी और शरद पवार से बात करके सरकार बना ली। उद्धव मुख्यमंत्री बन गए।