2030 तक कोयले की खपत आधी हो जाएगी! केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण सीईए ने ऑप्टिमल जेनरेशन मिक्स 2030 रिपोर्ट में कहा है कि भारत ने 2022-23 में 73 प्रतिशत बिजली कोयले से उत्पन्न की, 2030 तक यह घटकर 55 प्रतिशत तक हो जाएगा। बिजली उत्पादन के क्षेत्र में कोयले की हिस्सेदारी लगभग आधी हो जाएगी और इसकी जगह नवीकरणीय रिन्यूएबल ऊर्जा ले लेगी। नवीकरणीय ऊर्जा या अक्षय ऊर्जा में वे सभी ऊर्जा शामिल हैं जो प्रदूषणकारक नहीं हैं। इसके तहत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत ऊर्जा, बायोगैस और जैव ईंधन का सहारा लिया जाएगा। सीईए के अनुसार बिजली उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों जैसे- लघु पनबिजली, पंपयुक्त पनबिजली, सौर-पवन ऊर्जा और बायोमास के जरिए हासिल किया जाएगा। नवीकरणीय ऊर्जा को विकसित करने के लिए भारत वैश्विक जलवायु समुदाय के साथ आगे बढ़ रहा है।अपने महत्वपूर्ण सेल्युलोज और जाइलान सामग्री के कारण हाथी घास बायोगैस उत्पादन के लिए एक अनुकूल स्रोत है। गुजरात में आनंद कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक पीसी पटेल ने हाथी घास का विश्लेषण करने के लिए पायलट-स्केल प्रयोग किए।
सीईए का अनुमान है कि 2030 तक सिर्फ सौर ऊर्जा के क्षेत्र में देश की उत्पादन क्षमता 109 गीगावॉट जीडब्ल्यू से बढ़कर 392 गीगावॉट हो जाएगी। इसी तरह पवन ऊर्जा का उत्पादन 173 बिलियन यूनिट बीयू से बढ़कर 761 बीयू तक हो जाएगा।बिजली उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों जैसे- लघु पनबिजली, पंपयुक्त पनबिजली, सौर-पवन ऊर्जा और बायोमास के जरिए हासिल किया जाएगा। नवीकरणीय ऊर्जा को विकसित करने के लिए भारत वैश्विक जलवायु समुदाय के साथ आगे बढ़ रहा है।अपने महत्वपूर्ण सेल्युलोज और जाइलान सामग्री के कारण हाथी घास बायोगैस उत्पादन के लिए एक अनुकूल स्रोत है। गुजरात में आनंद कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक पीसी पटेल ने हाथी घास का विश्लेषण करने के लिए पायलट-स्केल प्रयोग किए। यानी पवन ऊर्जा का उत्पादन चौगुना होने की उम्मीद है। इसी तरह जलविद्युत उत्पादन को 8 प्रतिशत से बढ़ाकर 19 प्रतिशत करने का लक्ष्य है।अपने महत्वपूर्ण सेल्युलोज और जाइलान सामग्री के कारण हाथी घास बायोगैस उत्पादन के लिए एक अनुकूल स्रोत है।
गुजरात में आनंद कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक पीसी पटेल ने हाथी घास का विश्लेषण करने के लिए पायलट-स्केल प्रयोग किए।भारत में हाथी घास (नेपियर घास) की वार्षिक उत्पादन उपज 150-200 टन प्रति एकड़ प्रति वर्ष है,बिजली उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों जैसे- लघु पनबिजली, पंपयुक्त पनबिजली, सौर-पवन ऊर्जा और बायोमास के जरिए हासिल किया जाएगा। नवीकरणीय ऊर्जा को विकसित करने के लिए भारत वैश्विक जलवायु समुदाय के साथ आगे बढ़ रहा है।अपने महत्वपूर्ण सेल्युलोज और जाइलान सामग्री के कारण हाथी घास बायोगैस उत्पादन के लिए एक अनुकूल स्रोत है। गुजरात में आनंद कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक पीसी पटेल ने हाथी घास का विश्लेषण करने के लिए पायलट-स्केल प्रयोग किए। जो अन्य ऊर्जा उत्पन्न करने वाली घासों की तुलना में काफी अधिक है। मिसेंथस और स्विचग्रास जैसी घासों की उपज प्रति वर्ष 25-35 टन प्रति हेक्टेयर है। परंपरागत रूप से हाथी घास से बायोगैस की उपज 90-110 क्यूबिक मीटर प्रति टन 38-46 किलोग्राम कंप्रेस्ड बायोगैस, सीबीजी के बराबर होती है। यह तेजी से बढ़ने वाली बारहमासी घास है, जो 10-15 फीट ऊंचाई तक पहुंच सकती है। इसे साल में 5-6 बार काटा जा सकता है।
अपने महत्वपूर्ण सेल्युलोज और जाइलान सामग्री के कारण हाथी घास बायोगैस उत्पादन के लिए एक अनुकूल स्रोत है।बिजली उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों जैसे- लघु पनबिजली, पंपयुक्त पनबिजली, सौर-पवन ऊर्जा और बायोमास के जरिए हासिल किया जाएगा। नवीकरणीय ऊर्जा को विकसित करने के लिए भारत वैश्विक जलवायु समुदाय के साथ आगे बढ़ रहा है।बिजली उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों जैसे- लघु पनबिजली, पंपयुक्त पनबिजली, सौर-पवन ऊर्जा और बायोमास के जरिए हासिल किया जाएगा। नवीकरणीय ऊर्जा को विकसित करने के लिए भारत वैश्विक जलवायु समुदाय के साथ आगे बढ़ रहा है।अपने महत्वपूर्ण सेल्युलोज और जाइलान सामग्री के कारण हाथी घास बायोगैस उत्पादन के लिए एक अनुकूल स्रोत है। गुजरात में आनंद कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक पीसी पटेल ने हाथी घास का विश्लेषण करने के लिए पायलट-स्केल प्रयोग किए। अपने महत्वपूर्ण सेल्युलोज और जाइलान सामग्री के कारण हाथी घास बायोगैस उत्पादन के लिए एक अनुकूल स्रोत है। गुजरात में आनंद कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक पीसी पटेल ने हाथी घास का विश्लेषण करने के लिए पायलट-स्केल प्रयोग किए। गुजरात में आनंद कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोध वैज्ञानिक पीसी पटेल ने हाथी घास का विश्लेषण करने के लिए पायलट-स्केल प्रयोग किए।