वर्तमान में देश में पीएम मोदी की हार होती जा रही है! अपने देश में कुछ राज्यों के लोग पांच साल पर सरकार बदलने में ही विश्वास रखते हैं। राजस्थान या हिमाचल प्रदेश जैसी नो रिपीट राजनीति कर्नाटक की भी है। ये रिवाज 1985 से जारी है। 2023 में भी नहीं टूटी। मोदी के जोर से भी नहीं। कांग्रेस ने जिस तरह कर्नाटक की पिच पर बीजेपी को ऑल आउट किया है उसके बाद पार्टी की पेशानी पर बल तो पड़ेगा। जिस कांग्रेस को पॉलिटिकली डेड मान चुके हैं और वह पार्टी आपको हरा देती है तो सोचना तो पड़ेगा। छह महीनों के भीतर दो राज्यों से भाजपा को बाहर कर चुकी है कांग्रेस। यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है। इस देश में लोकसभा की 170 सीटें ऐसी हैं जहां, बीजेपी ना पहले जीती, ना 2014 या 2019 में जीती और इन सीटों पर ना आगे जीतने की संभावना है। बीजेपी के लिए अगर पूर्व से पश्चिम तक एक कर्क रेखा की तरह लकीर खींच दें तो उसमें जो 220 सीटें हैं उसमें से 202 सीटें बीजेपी को मिलती हैं। अगर उसमें सेंध लगी तो दिक्कत है। कर्नाटक के पिछले चुनाव के बाद भले ही कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई, लेकिन वहां बीजेपी ने मध्य प्रदेश की तरह खेल किया। ऑपरेशन लोटस चलाकर सरकार बनाई गई। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में आपको बेहतर नतीजे मिले। लेकिन क्या वह रिपीट कर पाएंगे। क्योंकि अब वहां भी मुकाबला बायपोलर होता जा रहा है। अगर अपने मजबूत इलाके में जेडीएस कमजोर होती है तो कांग्रेस मुकाबले में बराबरी पर आ जाएगी। उस नाते बीजेपी के लिए कर्नाटक लूज करना बहुत बड़ा सेटबैक होगा। आप जब मोमेंटम बना लेते हैं। उसमें जब विकेट गिरता है बीच में तो आपको पारी दोबारा संभालनी होती है। आप संभलकर खेलते हैं, दो चार ओवर कि पहले विकेट बचाएं। यहां एक विकेट गिर रहा है बीजेपी का, इससे बीजेपी इनकार तो कर नहीं सकती। छह महीने के भीतर हिमाचल के बाद दूसरा विकेट लॉस है बीजेपी के लिए। इसलिए यह विपक्ष के लिए बड़ी उपलब्धि है, भले ही बीजेपी इसे बड़ा नुकसान न माने। बीजेपी अगर इससे खुश होना चाहती है कि परंपरा निभाई गई है तो ठीक है। कई बार इतिहास भी आत्मबल देता है। 2018 में भी बीजेपी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक हारी थी लेकिन उसके अगले साल लोकसभा में झंडे गाड़े थे। क्या वही इतिहास दोहराया जाएगा, कहना मुश्किल है।
राहुल गांधी कहते हैं कि नफरत के बाजार में मोहब्बत बेचने चले हैं। कर्नाटक की जीत के बाद राहुल ने यही बात दोहराई। मुझे लगता है कि बीजेपी को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। क्योंकि अगर आंजनेय हनुमान जी के भरोसे बीजेपी नहीं जीत पाई तो इससे बड़ा पोलराइजेशन बीजेपी को दोबारा शायद ही मिले। उधर कांग्रेस अपनी विचारधारा को सॉफ्ट से सॉलिड करती दिखाई दे रही है। 2017 के बाद कांग्रेस पार्टी सॉफ्ट हिंदुत्व आजमा रही थी। सोमनाथ में राहुल गांधी जेनऊ पहनते हैं, प्रियंका यूपी के मंदिरों के चक्कर लगाती हैं। इन सबके बीच कहीं ना कहीं कांग्रेस फंसती दिख रही थी। ऐसा लगता है कि अगर कांग्रेस स्टैंड लेती है कि PFI की तरह बजरंग दल पर बैन लगता है और इस पर टिकी रहती है। तब भी चुनाव जीतती है तो ये एक बड़ा संदेश है। बैन तो RSS पर भी लग चुका है। तब भी कांग्रेस जीत रही थी।
दूसरी चीज जो कर्नाटक से क्लियर है वो है व्यक्तिवाद पर स्टेट इलेक्शन नहीं जीत सकते। यहां बड़े नेता के तौर पर पीएम मोदी कहीं ना कहीं एक्सपोज हो जाते हैं। टेलीविजन चैनल अपने ग्राफिक्स में चाहे एक तरफ खरगे और दूसरी तरफ नड्डा को दिखा दें, लॉजिक तो यही कहता है कि आपको पीएम मोदी को दिखाना चाहिए था। चुनाव तो पीएम मोदी लड़ रहे थे। सब लोगों ने देखा, इसमें छिपने छिपाने वाली बात नहीं है। यह सेटबैक सीधे सीधे नरेंद्र मोदी के लिए है। पीएम मोदी हैदराबाद म्युनिसिपल इलेक्शन में जाते हैं। यूपी के नगरीय निकाय चुनाव में केंद्र का कोई चेहरा नहीं दिखा, क्योंकि योगी इतने प्रभावशाली हैं। लोगों को पता है कि भले ही पीएम मोदी ने पिछले विधानसभा चुनाव में चाहे जितनी रैलियां की हों, लेकिन पिछला विधानसभा चुनाव बीजेपी ने योगी के चलते जीता। यूपी नगरीय निकाय चुनाव की 17 सीटों में 17 पर अगर बीजेपी जीत रही है तो यह योगी का कमाल है।
कर्नाटक में इनको पता था कि जो बीजेपी का लीडरशिप है, प्रह्लाद जोशी जैसे नेता जमीन पर उतने कारगर नहीं हैं। तेजस्वी सूर्या शहर के लिए यूथ के बीच फेमस हैं। उन्हें जितना बंगाल चुनाव में प्रोजेक्ट किया गया उतना अपने राज्य में नहीं किया गया। कर्नाटक में प्रचार के लिए पीएम मोदी गए। जो लिंगायत के नेता बीएस येदियुरप्पा रहे, उनकी खुद की छवि कैसी रही। बसवराज बोम्मई को सीएम बनाने के पीछे का मुख्य कारण वहां की जनता को पता है। भाजपा ने लास्ट में मुसलमानों का रिजर्वेशन हटाकर 4 फीसदी वाला गेम भी किया।
मुसलमान रिजर्वेशन को खत्म कर दो-दो फीसदी वोक्कालिगा और लिंगायत में बांट दिया। 17 प्रतिशत लिंगायत और 13 प्रतिशत वोक्कालिगा हैं, पिछड़े और दलित वर्ग में भी अगर बीजेपी की पकड़ थी तब तो बंपर बहुमत मिलना चाहिए था। इस देश में मंडल कमंडल से बड़ी राजनीति तो होती नहीं है। जिसकी आड़ में चुनाव जीते जाते हैं और चुनाव हारे जाते हैं। वह भी फैक्टर आपका काम नहीं कर पाया। ऊपर से सुप्रीम कोर्ट ने कसकर डांट लगा दी कि असंवैधानिक बताने वाले लोग कौन थे। रिजर्वेशन हटाने पर रोक लगाई हुई है अगले आदेश तक। कर्नाटक जीतने के लिए बीजेपी ने सारे हथकंडे अपनाए। इसके बावजूद अगर वह हार रही है और कांग्रेस जो बिल्कुल मिट्टी में मिली हुई पार्टी है वह जीत रही है तो यह बीजेपी के लिए सेटबैक है। लोकसभा चुनाव के लिए मोमेंटेम गेन करने में बीजेपी को समय लगेगा। बीजेपी को पूरी उम्मीद अब राजस्थान से है। सचिन पायलट शायद उनके लिए पॉजिटिव सिग्नल लेकर घूम रहे हैं।