आने वाले समय में अब गर्मी बढ़ सकती है! अभी जून नहीं आया है लेकिन ज्यादातर राज्यों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस छू चुका है। गर्मी में इससे कहीं ज्यादा उमस भरे दिन अभी आने बाकी हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले दशक में लू वाले दिनों की संख्या तेजी से बढ़ी। मौसम वैज्ञानिकों को आशंका है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से यह पैटर्न और बिगड़ सकता है। 1970 के बाद केवल दो साल ऐसे गए हैं जब लू वाले दिनों का आंकड़ा 200 पार चला गया। और ये दोनों घटनाएं पिछले 15 साल में हुईं। 2022 में लू वाले 203 दिन थे। यह आंकड़ा राज्यों में दर्ज हुए औसत लू वाले दिनों का योग है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, 2010 में सबसे ज्यादा 256 ऐसे दिन रहे थे। दशक के हिसाब से देखें तो 2010s में औसत लू वाले दिनों की संख्या 130 तक पहुंच गई। उससे पहले सर्वाधिक लू वाले दिन 1970 के दशक में पड़े थे। 2010s के आंकड़े 1970s से 35% ज्यादा हैं। 2020s के शुरुआती तीन सालों में औसत लू वाले दिनों की संख्या 96 रही है। यह 1970s के बाद तीसरा सबसे ज्यादा गर्म दशक साबित होगा, अभी ऐसी ही आशंका जताई जा रही है। IMD डेटा का एनालिसिस बताता है कि 1970s के बाद के दशकों में सबसे ज्यादा गर्मी वाला दशक 2010-2019 रहा। इस दौरान सालाना औसत लू वाले दिनों की संख्या में बड़ा उछाल दर्ज किया गया। यह स्थिति उत्तर-पश्चिमी, मध्य, पूर्वी और तटीय क्षेत्रों में स्थित राज्यों में देखने को मिली।
केंद्र के अनुसार, 1901-2018 के बीच भारत का औसत तापमान करीब 0.7°C बढ़ा है। 1951-2015 के बीच ट्रोपिकल हिंद महासागर में समुद्री सतह का पारा 1°C बढ़ा। 1951 के बाद से देश में गर्म दिनों और रातों का औसत बढ़ा है, ठंडे दिनों और रातों की संख्या कम हुई। IMD ने 1901 से मौसम के आंकड़े रखना शुरू किए। 2022 में इतनी गर्मी पड़ी कि वह 1901 के बाद पांचवां सबसे गर्म साल साबित हुआ। 2023 का मौसम पूर्वानुमान देश के लिए चिंता की बात है क्योंकि तीव्र लू के साथ अल नीनो की आ रहा है।
मैदानी इलाकों में कम से कम 40°C और पहाड़ी इलाकों में 30°C अधिकतम तापमान होने पर लू की घोषणा की जाती है। तटीय क्षेत्रों में अगर तापमान 37°C या ज्यादा हो तो 4.5°C या उससे ज्यादा के अंतर पर अलर्ट जारी किया जाता है। हालांकि, एक्सपर्ट्स के अनुसार, लू की तीव्रता आंकते समय ह्यूमिडिटी और रेडिएशन जैसे फैक्टर्स को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। द इकोनॉमिस्ट मैगजीन के अनुसार, देश के कई हिस्सों में पिछले कुछ दशकों के दौरान 50°C तक तापमान ‘महसूस’ किया गया!
वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 2030 के बाद हर साल 16-20 करोड़ भारतीय भयानक लू की चपेट में आ सकते हैं। IIT गांधीनगर की एक स्टडी का अनुमान है कि 2100 आते-आते भयंकर लू आज के मुकाबले 30 गुना ज्यादा पड़ेगी। अगर वर्तमान नीतियां जारी रहीं तो अगली सदी तक भयंकर लू 75 गुना ज्यादा तक हो सकती है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) ने स्टडी में पाया कि अधिकतर हीट एक्शन प्लान (HAPs) अपर्याप्त हैं। ये HAPs भयंकर लू वाली स्थितियों में कैसी गाइडलाइंस जारी की जाएं, उससे जुड़ी हैं। CPR ने 18 राज्यों के 37 HAPs का एनालिसिस किया किया था। केवल 10 HAPs में ही लोकल फैक्टर्स को ध्यान में रखा गया था।हालांकि, एक्सपर्ट्स के अनुसार, लू की तीव्रता आंकते समय ह्यूमिडिटी और रेडिएशन जैसे फैक्टर्स को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। द इकोनॉमिस्ट मैगजीन के अनुसार, देश के कई हिस्सों में पिछले कुछ दशकों के दौरान 50°C तक तापमान ‘महसूस’ किया गया! लगभग हर HAP में प्रभावित होने वाली आबादी की पहचान नहीं की जा सकी। कई सारे HAPs अंडर-फंडेड हैं। सरकारी अनुमान है कि 1990 से 2000 के बीच, लू की वजह से करीब 26 हजार लोग मारे गए। हालांकि एक्सपर्ट्स के अनुसार, असल आंकड़ा कहीं ज्यादा है।
2017 में भारत की जीडीपी का 50% और वर्कफोर्स का 75% लू से प्रभावित काम पर आधारित थी। वैसे तो 2030 तक लू से प्रभावित काम GDP के 40% तक घट जाएगा, इसके बावजूद गर्मी के चलते भारत GDP का 2.4-2.5% या 150 बिलियन डॉलर गर्मी के चलते खो देगा। भयानक गर्मी से कृषि क्षेत्र पर बेहद बुरा असर पड़ता है। फसलों को नुकसान, सिंचाई मुश्किल हो जाती है, दूध और मांस जैसे उत्पादों का आउटपुट भी घट जाता है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर ने कहा कि कुछ इलाकों में गर्मी के चलते सब्जी और फल के उत्पादन में 10% से 30% की गिरावट आ सकती है। कूलिंग की डिमांड के चलते एनर्जी सेक्टर के भी प्रभावित होने के आसार हैं।