जब उत्तर प्रदेश में बनाए गए 1 दिन के मुख्यमंत्री!

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एक ऐसा समय भी था जब उत्तर प्रदेश में 1 दिन के मुख्यमंत्री बनाए गए थे! पूर्वांचल के बाहुबली और छह बार के विधायक हरिशंकर तिवारी ने 90 के दशक में अपने राजनीतिक दांव से प्रदेश की सत्ता ही बदल दी थी। वर्ष 1997 में उन्होंने जगदंबिका पाल, राजीव शुक्ला, श्याम सुंदर शर्मा और बच्चा पाठक के साथ मिलकर अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस की स्थापना की। हरिशंकर तिवारी इस पार्टी के अध्यक्ष थे। यूपी में हुए चुनाव के बाद प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार का गठन किया गया था। जगदंबिका पाल को ट्रांसपोर्ट मंत्री का पदभार मिला हुआ था। लेकिन, 21 फरवरी 1998 को कुछ ऐसा हुआ, जो यूपी के राजनीतिक इतिहास में दर्ज हो गया। दरअसल, यूपी विधानसभा चुनाव 1996 में 424 सदस्यीय एसेंबली में भारतीय जनता पार्टी 174 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि, पूर्ण बहुमत के 213 सीटों के जादूई आंकड़े से पिछड़ गई। यूपी विधानसभा में 110 सीटों के साथ समाजवादी पार्टी दूसरे और 67 सीटों के साथ बहुजन समाज पार्टी तीसरे स्थान पर रही। कांग्रेस को 33, निर्दलीय को 13 और अन्य के खाते में 27 सीटें आईं। त्रिशंकु विधानसभा के बाद खेल शुरू हुआ। यूपी चुनाव 1996 में किसी दल को बहुमत नहीं मिला तो सरकार बनाने का दावा किसी भी दल ने पेश नहीं किया। अंदरखाने में प्रदेश में सरकार बनाने की कोशिश चलती रही। भाजपा और बसपा के बीच तालमेत हुआ। 21 मार्च 1997 को बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन, यह सरकार महज 184 दिन ही चल पाई और उन्होंने 21 सितंबर 1997 को इस्तीफा दे दिया। इस बीच कांग्रेस में बगावत हुई और नरेश अग्रवाल ने पार्टी के 33 में से 22 विधायकों को साथ लाकर अलग गुट बनाया। अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस ने कल्याण सिंह के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया। लेकिन, हरिशंकर तिवारी के मन में कुछ और ही चल रहा था। मायावती भी भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद नाराज थी। 21 फरवरी 1998 को मायावती ने लखनऊ में बैठक की। प्रेस कांफ्रेंस में घोषणा की कि वे कल्याण सिंह सरकार को गिराने जा रही हैं।

मायावती की घोषणा के बाद खेल शुरू हो गया। 21 फरवरी 1998 को दोहर करीब दो बजे मायावती राजभवन पहुंची। उनके साथ उनके तमाम विधायक थे। मायावती के साथ अजीत सिंह की भारतीय किसान कामगार पार्टी, जनता दल और अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस के भी विधायक थे। लोकतांत्रिक कांग्रेस के विधायकों का नेतृत्व हरिशंकर तिवारी कर रहे थे। जैसे ही इस मामले की सूचना लखनऊ में पार्टी का प्रचार कर रहे सीएम कल्याण सिंह को मिली, वे शाम 5 बजे तक लखनऊ में थे। तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी से मुलाकात की। विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका मांगा। रोमेश भंडारी ने इस मामले में विशेषाधिकार का प्रयोग किया। वे नहीं चाहते थे कि मामला विधानसभा के फ्लोर तक जाए।

दावा किया जाता है कि तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी कल्याण सिंह सरकार से नाराज चल रहे थे। उन्हें खुन्नस 21 अक्टूबर 1997 को घटी घटना को लेकर थी। दरअसल, मायावती के राजनीतिक उलटफेर की कोशिशों से करीब 5 माह पहले यूपी विधानसभा का नजारा अलग ही था। कांग्रेस विधायक प्रमोद तिवारी के लीडरशिप में विधायकों का विरोध चल रहा था। विधानसभा अध्यक्ष के आसन तक पहुंच कर लोग अपना विरोध कर रहे थे। बाद में सपा और बसपा विधायक भी बेल में पहुंच गए। हंगामा देखते ही देखते हिंसा में बदल गई। विधायक एक-दूसरे पर माइक और कुर्सियों से हमला कर रहे थे। तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह को सुरक्षा घेरे में विधानसभा से बाहर निकाला गया। सदन की घटना पर रोमेश भंडारी खासे नाराज थे। राष्ट्रपति शासन लगाना चाहते थे। केंद्र सरकार ने तब उनकी सिफारिश पर गौर नहीं किया था।

केंद्र सरकार में मंत्री और तत्कालीन सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने पूरा जोर लगाया। राज्यपाल की सिफारिश को लागू कराने की कोशिश की। बात नहीं बनी। केंद्रीय गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता और तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायण ने राज्यपाल की सिफारिश को समर्थन नहीं दिया। सरकार बचाने के लिए कल्याण सिंह ने समर्थन देने वाले सभी विधायकों को मंत्री बना दिया। कल्याण मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या 94 हो गई थी।

हाई कोर्ट के फैसले ने रोमेश भंडारी और जगदंबिका पाल को करारा झटका दिया। सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई। हालांकि, बात नहीं बनी। जगदंबिका पाल को 31 घंटों के भीतर सीएम पद छोड़ना पड़ा। हाई कोर्ट ने कल्याण सिंह को 3 दिनों के भीतर सदन में विश्वास मत हासिल करने का आदेश दिया। 26 फरवरी 1998 को यूपी विधानसभा में विश्वास मत पेश किया गया। कल्याण सिंह को 225 वोट मिले। जगदंबिका पाल को 196 एमएलए ने समर्थन दिया। 16 वीडियो कैमरे की नजर में विश्वास मत पेश किया गया।

कल्याण को अपनी सरकार बचाने के लिए 213 एमएलए का समर्थन चाहिए था, मिले 225। यानी 12 ज्यादा विधायकों ने समर्थन दिया। कल्याण सिंह सरकार से बाहर निकली हरिशंकर तिवारी की अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस के अधिकांश विधायक फिर साथ जुड़ गए। एक बार फिर हरिशंकर तिवारी प्रदेश सरकार में मंत्री बने। इस प्रकार यह मामला यूपी के विधानसभा इतिहास में दर्ज हो गया।