वर्तमान में लोकसभा चुनाव से पहले यूनिवर्सल बेसिक इनकम की बात चल रही है! क्या देश एक अलग स्वरूप में यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है? क्यों ऐसी योजनाएं एक बार फिर फोकस में हैं? आने वाले समय में इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं? ये तमाम सवाल ऐसे समय उठ रहे हैं जब राज्यों में अलग-अलग स्वरूप में योजनाएं लागू की जा रही हैं। चुनाव से पहले राजनीतिक दल वादे करते हैं और सत्ता में आने पर इसे लागू करते हैं। माना जा रहा है कि 2024 आम चुनाव में एक बार फिर यह सबसे बड़ा मुद्दा बन सकता है। पिछले कुछ चुनावों में ज्यादातर विपक्षी दलों ने चुनाव में आम लोगों से सरकार बनने पर महिलाओं और युवाओं को हर महीने भत्ता देने का वादा किया है। जीतने के बाद इसे कुछ राज्यों में लागू भी किया गया। अब बीजेपी शासित राज्यों में ऐसी योजना सामने आने लगी है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की अगुआई वाली बीजेपी सरकार ने लाडली बहन योजना की शुरुआत की। इसके तहत महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये दिए जाएंगे। शिवराज सिंह चौहान इसी योजना के दम पर साल के अंत में होने वाली विधानसभा चुनाव में एक और जीत का दावा कर रहे हैं। असम में हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार ने भी चुनाव से पहले ऐसी योजना लाई थी। इसका सियासी लाभ मिला और दोबारा BJP सत्ता में आई।
हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महिलाओं को 1500 रुपये हर महीने देने का वादा किया था। पार्टी की जीत में इस वादे का अहम योगादान माना गया। अब पार्टी वहां इस योजना को लागू कर रही है। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले हर परिवार की महिला मुखिया को 2000 रुपये महीना देने का वादा किया गया। कांग्रेस को वहां भी सफलता मिली। पार्टी ने पहली कैबिनेट में इसे लागू करने की मंजूरी दी है। छत्तीसगढ़ में युवाओं और महिलाओं को हर महीने पगार देने की योजना चल रही है। आने वाले दिनों में होने वाले चुनाव में ऐसी योजनाओं का चलन और बढ़ने के संकेत दिखने लगे हैं। तो क्या इसका बड़ा स्वरूप भी सामने आ सकता है? इस पर भी अब चर्चा होने लगी है।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम ऐसी योजना है, जिसमें कुछ आबादी को सरकार एक तय राशि हर महीने देती है। 2017 में मोदी सरकार के पहले टर्म के दौरान बजट से ठीक पहले पेश आर्थिक सर्वे में इस योजना को लागू करने की मंशा पहली बार दिखी थी। सर्वे में कहा गया था कि देश की दो तिहाई आबादी को सालाना 7620 रुपये देने से इस योजना की शुरुआत की जा सकती है। कहा गया इससे देश का हर व्यक्ति गरीबी से निकल जाएगा। हालांकि, खर्च देखकर सरकार ने हाथ वापस खींच लिए।
2019 आम चुनाव से ठीक पहले जब ऐसी चर्चा चल रही थी कि सरकार यूनिवर्सल बेसिक इनकम का ऐलान कर सकती है2017 में मोदी सरकार के पहले टर्म के दौरान बजट से ठीक पहले पेश आर्थिक सर्वे में इस योजना को लागू करने की मंशा पहली बार दिखी थी। सर्वे में कहा गया था कि देश की दो तिहाई आबादी को सालाना 7620 रुपये देने से इस योजना की शुरुआत की जा सकती है। कहा गया इससे देश का हर व्यक्ति गरीबी से निकल जाएगा। हालांकि, खर्च देखकर सरकार ने हाथ वापस खींच लिए। तो मोदी सरकार ने बजट में किसान सम्मान निधि का ऐलान किया। इसके तहत सभी किसानों के खाते में हर साल 6000 रुपये देने का प्रावधान है। इस योजना पर सालाना 75 हजार करोड़ खर्च आया। इसे यूनिवर्सल बेसिक इनकम का सीमित रूप माना गया। उसी चुनाव में कांग्रेस ने भी अपने घोषणा पत्र में यूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू करने की बात कही, जिसे पार्टी ने ‘न्याय’ का नाम दिया था।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम पर कई बार सवाल उठे। तर्क आया कि योजना तभी ठीक हो सकती है जब इसमें संतुलन बनाया जाए। वरना, यह आर्थिक तबाही का कारण भी बन सकती है। जानकारों का कहना है कि अगर हर महीने पगार देने जैसी योजना को लागू करना है तो सरकार को तमाम सब्सिडी योजना को बंद करना होगा या बहुत कम करना होगा। फिलहाल कुल जीडीपी का 4 से 5 फीसदी सरकार सब्सिडी पर खर्च कर रही है। यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम और सब्सिडी दोनों साथ-साथ नहीं चल सकती हैं। साथ ही यह भी माना गया कि ऐसी योजनाएं आने के बाद खर्च पूरा करने के लिए टैक्स का बोझ बढ़ सकता है। इसका खामियाजा मिडिल क्लास को उठाना पड़ सकता है। इन तमाम सवालों के बीच यह बात साफ है कि आने वाले दिनों में इसके कई और स्वरूप देखने को मिल सकते हैं।