राहुल गांधी और केजरीवाल के मिलने से मोदी को नुकसान हो सकता है! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की है। रविवार को हुई इस मुलाकात को अगले लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता को लेकर महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। लगभग एक महीने के अंदर दोनों नेताओं की यह दूसरी मुलाकात है। नीतीश कुमार ने सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह से आकर सीधे केजरीवाल से मुलाकात की है, इसके खास मायने निकाले जा रहे हैं। बड़ा प्रश्न है कि क्या नीतीश कुमार अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी को एक मंच पर लाने में कामयाब होंगे? यदि ये दोनों दल साथ आए तो भाजपा को अगले लोकसभा चुनाव में कितना नुकसान हो सकता है? नीतीश कुमार ने जब इसके पहले 12 अप्रैल को केजरीवाल से मुलाकात की थी, तब भी पहले उन्होंने कांग्रेस नेताओं से मुलाकात की थी। इस बार भी कयास लगाए जा रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के बाद वे कुछ कांग्रेस नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं। कर्नाटक में सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस नेताओं ने जिस तरह नीतीश कुमार को विशेष प्राथमिकता दी है, उससे यह संकेत मिलते हैं कि कांग्रेस नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की मुहिम को अपनी स्वीकृति दे चुकी है। ऐसे में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को साथ लाने के उनके फॉर्मूले पर दोनों दल सहमति की ओर बढ़ने पर विचार कर सकते हैं। हालांकि, इसके पहले अरविंद केजरीवाल के साथ आने से कई कांग्रेस नेता सीधे इनकार कर चुके हैं। लेकिन माना जा रहा है कि बदले माहौल में दोनों दलों के साथ आने की संभावनाएं बन सकती हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव को देखें तो भाजपा ने लगभग 57 प्रतिशत वोटों के साथ दिल्ली की सातों सीटों पर जीत हासिल की थी। यानी यदि दिल्ली में कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल साथ भी आ जाते हैं तो भी राजधानी में भाजपा को हराना मुश्किल होगा। इस तरह दोनों दलों के साथ आने का दिल्ली में कोई बड़ा नुकसान होने की संभावना नहीं है। पंजाब में भाजपा ने पिछले चुनाव में दो सीटों पर जीत दर्ज की थी। उसे दस फीसदी से कुछ कम वोट मिले थे। लेकिन पंजाब में इस बार उसे अकेले दम पर चुनाव में उतरना पड़ सकता है। उसकी पूर्व सहयोगी अकाली दल अब अलग रास्ता अपना चुकी है। ऐसे में भाजपा को पंजाब में नुकसान हो सकता है। हालांकि, दोनों दलों की ओर से बदले समीकरणों में अपने लिए बेहतर संभावनाओं के दावे किए जा रहे हैं!
राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडेय ने अमर उजाला से कहा कि बदले समीकरणों में नीतीश कुमार की कोशिश रंग ला सकती है। चूंकि, सभी विपक्षी दल भाजपा से अपने लिए खतरा महसूस कर रहे हैं, वे सभी साथ आकर एक मजबूत लड़ाई लड़ सकते हैं। 2019 में भाजपा ने अकेले दम पर अवश्य अच्छी लड़ाई लड़ी थी, लेकिन यदि दोनों प्रमुख विपक्षी दल साथ आकर लड़ते हैें तो इसका मतदाताओँ पर एक अलग तरह का असर हो सकता है और इसका लाभ किसी को भी मिल सकता है।
साथ ही, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के एक आने का संकेत केवल दिल्ली-पंजाब से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। ऐसे कदमों का संकेत दूसरे राज्यों के दूसरे दलों और मतदाताओं पर भी असर डालते हैं। विपक्षी दलों की एकता बनी तो उन्हें इसका व्यापक लाभ मिल सकता है। यह लाभ कितना होगा, यह तो चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा।
उन्होंने कहा कि, लेकिन यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि देश की जनता व्यक्ति को ध्यान में रखकर मतदान करती है। यदि विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कोई ठोस और वजनदार व्यक्ति को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करने में असमर्थ रहता है तो इसका उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पिछले महीने 12 अप्रैल को भी नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल की मुलाकात हुई थी। नीतीश कुमार के साथ उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह और राघव चड्ढा भी उस मुलाकात में उपस्थित थे। केजरीवाल से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार ने कहा था कि यह तय हो गया है कि सभी दल विपक्षी एकता में मिलजुल के चुनाव लड़ेंगे।शाम के समय केजरीवाल से मिलने के पहले नीतीश कुमार कांग्रेस नेताओं से भी मुलाकात कर चुके थे।
विपक्षी एकता को लेकर नीतीश कुमार अब तक 15 नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। इसमें ममता बनर्जी, शरद पवार, हेमंत सोरेन, नवीन पटनायक और उद्धव ठाकरे शामिल हैं। हालांकि नवीन पटनायक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद अकेले लोकसभा चुनाव में जाने का ऐलान कर चुके हैं तो शरद पवार और ममता बनर्जी कई बार अपना स्टैंड बदलते हुए दिखाई पड़ने के बाद एक बार फिर विपक्षी खेमे में खड़े होते दिखाई पड़ रहे हैं।