क्या बाद में बदलवाया जा सकता है किसी का नाम?

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यह सवाल उठना लाजमी है कि कोई बाद में नाम बदल सकता है या नहीं! लोग अलग-अलग कारणों से कई बार अपना नाम बदलते हैं। जैसे अगर किसी ने धर्म परिवर्तन कर लिया या फिर कोई शख्स यूं ही अपना नाम अपनी पसंद का रखना चाहता है। कभी-कभी कुछ लोग शादी के बाद भी नाम बदलवाते हैं जैसे कोई लड़की शादी के बाद अपने पति का सरनेम अपनाना चाहती है। नाम बदलने की वजह कुछ भी हो सकती है। इसके बाद सारे डॉक्यूमेंट्स में नया नाम दर्ज कराना होता है। लेकिन अगर अथॉरिटी नए नाम से डॉक्यूमेंट जारी करने से इनकार कर दे तो? अगर ऐसा हो तो आप कानूनी रास्ता अपना सकते हैं क्योंकि नाम बदलना आपका मौलिक अधिकार है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक हालिया आदेश में साफ कहा कि नाम बदलना मौलिक अधिकार है। नाम को बरकरार रखना या अपनी पंसद के हिसाब से उसे बदलना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है जो संविधान के तहत उसे मिला हुआ है। 25 मई 2023 को दिए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि अपनी पसंद का नाम रखना अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकार है।

एक शख्स ने तय कानूनी प्रक्रिया अपनाकर अपना नाम बदल मोहम्मद समीर राव कर लिया। उसने इसके बारे में सितंबर-अक्टूबर 2020 में अखबार में विज्ञापन के जरिए बताया कि उसे अब मोहम्मद समीर राव नाम से जाना जाए। इसके बाद अपने एजुकेशनल डॉक्युमेंट में बदलाव के लिए यूपी बोर्ड में आवेदन दिया। उसने यूपी बोर्ड से 2013 में हाई स्कूल और 2015 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी।बाद सारे डॉक्यूमेंट्स में नया नाम दर्ज कराना होता है। लेकिन अगर अथॉरिटी नए नाम से डॉक्यूमेंट जारी करने से इनकार कर दे तो? अगर ऐसा हो तो आप कानूनी रास्ता अपना सकते हैं क्योंकि नाम बदलना आपका मौलिक अधिकार है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक हालिया आदेश में साफ कहा कि नाम बदलना मौलिक अधिकार है। नाम को बरकरार रखना या अपनी पंसद के हिसाब से उसे बदलना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है जो संविधान के तहत उसे मिला हुआ है। लेकिन माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के बरेली स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के क्षेत्रीय सचिव ने 24 दिसंबर 2020 को उसके आवेदन को खारिज कर दिया। बोर्ड ने नए नाम से हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के सर्टिफिकेट जारी करने से इनकार कर दिया। इसके खिलाफ मोहम्मद समीर राव इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचे जिस पर फैसला देते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नाम बदलने का अधिकार मौलिक अधिकार है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये व्यक्ति के ऊपर है कि वह अपना नाम बरकरार रखना चाहता है या बदलना चाहता है। ये संविधान के आर्टिकल 19 (1)  अभियव्यक्ति की स्वतंत्रता, आर्टिकल 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार और आर्टिकल 14 समानता का अधिकार के तहत मूल अधिकार है। बाद सारे डॉक्यूमेंट्स में नया नाम दर्ज कराना होता है। लेकिन अगर अथॉरिटी नए नाम से डॉक्यूमेंट जारी करने से इनकार कर दे तो? अगर ऐसा हो तो आप कानूनी रास्ता अपना सकते हैं क्योंकि नाम बदलना आपका मौलिक अधिकार है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक हालिया आदेश में साफ कहा कि नाम बदलना मौलिक अधिकार है। नाम को बरकरार रखना या अपनी पंसद के हिसाब से उसे बदलना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है जो संविधान के तहत उसे मिला हुआ है। कोर्ट ने कहा कि यूपी बोर्ड ने याचिकाकर्ता के इन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। हाई कोर्ट ने 24 दिसंबर 2020 के यूपी बोर्ड के फैसले को रद्द करते हुए उसे आदेश दिया कि वह बदले हुए नाम के साथ याचिकाकर्ता को हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के सर्टिफिकेट जारी करे।

जुलाई 2022 में भी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अन्य मामले में आदेश दिया था कि नाम बदलने का अधिकार मौलिक अधिकार का ही एक पहलू है। कोर्ट ने कबीर जायसवाल और जिग्या यादव मामलों का हवाला देते हुए कहा कि नाम बदलने का अधिकार संविधान के आर्टिकल 19 (1) के तहत मिले मौलिक अधिकार का पहलू है। बाद सारे डॉक्यूमेंट्स में नया नाम दर्ज कराना होता है। लेकिन अगर अथॉरिटी नए नाम से डॉक्यूमेंट जारी करने से इनकार कर दे तो? अगर ऐसा हो तो आप कानूनी रास्ता अपना सकते हैं क्योंकि नाम बदलना आपका मौलिक अधिकार है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक हालिया आदेश में साफ कहा कि नाम बदलना मौलिक अधिकार है। नाम को बरकरार रखना या अपनी पंसद के हिसाब से उसे बदलना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है जो संविधान के तहत उसे मिला हुआ है। इस मामले में रजनी श्रीवास्तव नाम की महिला ने अपना नाम बदलकर रश्मि श्रीवास्तव कर लिया था। बाद में उसने डॉक्यूमेंट्स में नाम बदलने का आवेदन किया। पैन कार्ड में तो नाम बदल गया लेकिन आधार कार्ड में नाम नहीं बदला। इसे लेकर वह अदालत पहुंची जहां उनके पक्ष में फैसला हुआ!