क्या नीतीश कुमार की प्लानिंग हो रही है फेल?

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विपक्षी एकता पर आधारित नीतीश कुमार की प्लानिंग फेल होती नजर आ रहीं हैं! विपक्षी एकता का इन दिनों खूब हल्ला है। बीजेपी विपक्ष के इस एकता मिशन से थोड़ी हैरान-परेशान जरूर है, पर चिंतित नहीं दिखती। हां, दांव-पेंच में बीजेपी किसी से पीछे नहीं रहना चाहती। विपक्षी एकता के अगुआ बने नीतीश कुमार को ही निपटाने पर बीजेपी का सर्वाधिक जोर है। सच्चाई यह है विपक्षी एकता के लिए वैसे दल ही अधिक उतावले दिखते हैं, जिनके नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। बिहार में लालू यादव के बेटे-बेटियां और पत्नी के साथ आरजेडी के कई नेताओं-शुभचिंतकों पर सीबीआई-ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों की नजर है। बंगाल में ममता बनर्जी के भतीजे के साथ उनकी पार्टी टीएमसी के कई नेता ईडी-सीबीआई की जांच से गुजर रहे हैं। कुछ तो गिरफ्तार होकर जेल की हवा खा रहे हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के दो मंत्री जेल जा चुके हैं। झारखंड में हेमंत सोरेन खुद एक बार ईडी की पूछताछ का सामना कर चुके हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में जांच की आंच हेमंत तक पहुंच चुकी है। शिवसेना और एनसीपी के नेताओं के खिलाफ जांच चल रही है। तेलंगाना के सीएम केसी राव की बेटी पर दिल्ली शराब कांड में संलिप्तता के आरोप हैं। अगर यह कहा जाए कि विपक्षी एकता के लिए ज्यादातर वे दल ही ज्यादा बेचैन हैं, जिन्हें अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्ति की हड़बड़ी है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हालांकि विपक्षी एकता की मुहिम में रुकावटें भी कम नहीं। आइए, इन रुकावटों के बारे में जानते हैं। एनडीए में रह चुकीं ममता बनर्जी अब किसी भी वैसी पार्टी से बंगाल में गठजोड़ के खिलाफ हैं, जिससे उनके अस्तित्व पर खतरा हो। बंगाल से वामपंथ की विदाई करने वाली ममता बनर्जी तीसरी बार सीएम बनी हैं। दो टर्म तक तो उन्होंने वामदलों और कांग्रेस को दोबारा उभरने नहीं दिया। तीसरी बार उन्हें बीजेपी से कड़ी टक्कर मिली। हालांकि बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी, लेकिन बीजेपी ने विधानसभा में 77 सीटें जीत कर ममता के सामने तो चुनौती खड़ी कर ही दी है। ऐसे में वह अब किसी और को एकता के नाम पर उनकी खोई जमीन वापस देना नहीं चाहतीं। यही वजह रही कि उन्होंने उपचुनाव में जीते कांग्रेस के इकलौते विधायक को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया। यह भी तब हुआ, जब देश में नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम चला रहे हैं। ममता ने भी एकता मुहिम में शामिल होने का भरोसा दिया है।

यूपी की बात करें तो पिछले लोकसभा में सपा के साथ गठबंधन कर बसपा सुप्रीमो मायावती देख चुकी हैं कि इसका कोई फायदा होने वाला नहीं। उत्तर प्रदेश में हाल ही में विधान परिषद की दो सीटों के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस और बसपा विधायकों ने वोट का बहिष्कार कर दिया। समाजवादी पार्टी ताकती रह गई। दोनों सीटों पर बीजेपी जीत गई और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा। यानी विपक्षी एकता की बतकही के बीच तीन विपक्षी पार्टियां भी एकजुट नहीं हो पाईं।

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के रिश्तों में इतनी खटास आ गई है कि दोनों का एक मंच पर आना दूर की कौड़ी लगती है। अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से संबंधित केंद्र सरकार के अध्यादेश से तिलमिलाए अरविंद केजरीवाल तमाम विपक्षी दलों का समर्थन जुटाने में लगे हैं। उनका मानना है कि विपक्ष ने एकजुट होकर अध्यादेश का विरोध किया तो राज्यसभा में बीजेपी की हार तय है। इसके लिए वे घूम-घूम कर विपक्षी नेताओं से मिल भी रहे हैं। इसी क्रम में वह दस दिन से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मिलने का समय मांग रहे हैं। राहुल गांधी तो केजरीवाल के आग्रह को अनसुना कर अमेरिका चले गए। खरगे ने भी कोई नोटिस नहीं लिया है। अब तो पंजाब, दिल्ली और गोवा के कांग्रेस नेताओं के दबाव में खरगे ने ऐलान भी कर दिया है कि विधेयक पर पार्टी आप का साथ नहीं देगी। यानी विपक्षी एकता गई तेल लेने।

नीतीश कुमार ने ममता बनर्जी की बात मानते हुए पटना में विपक्षी दलों की बैठक तो बुला ली है, लेकिन कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के बैठक में शामिल होने पर संदेह है। कांग्रेस के सीनियर लीडर जयराम रमेश ने पार्टी को बैठक की जानकारी होने की बात तो स्वीकारी है, लेकिन कौन शामिल होगा, इस बारे में कुछ भी बताने से मना कर दिया है। उनका कहना है कि राहुल गांधी के अमेरिका से लौटने के बाद पार्टी के नेता सलाह-मशविरा करेंगे। उसके बाद ही तय हो पाएगा कि बैठक में पार्टी से कौन शामिल होगा। संभव है कि कांग्रेस किसी प्रतिनिधि को बैठक में भेज दे। तब यह मान कर चलना होगा कि कांग्रेस किसी के दबाव में रहना नहीं चाहती। नीतीश कुमार बैठक में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व देख कर गिना-बता सकते हैं, पर इतना तो तय है कि उनके मन में खटका जरूर पैदा होगा।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने पहले से ही विपक्षी एकता से दूरी बना ली है। तेलंगाना के सीएम केसी राव ने बैठक में आने से मना कर दिया है। ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक ने तो मुलाकात में ही नीतीश से ‘नो पोलिटिकल टाक’ की शर्त पहले ही रख दी थी। आंध्र प्रदेश के जगन मोहन रेड्डी के शामिल होने की कत्तई उम्मीद नहीं है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम न मिलने से हताश जेडीएस नेता कुमारस्वामी तो अभी तक सदमे से उबर नहीं पाए है। इसलिए उनकी अनुपस्थिति ही पक्की माननी चाहिए। बिहार में हम (से) के नेता और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की अभी जो हालत है, उसे देख कर यही अनुमान लगता है कि वे बैठक में रहें-न रहें, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।