हाल ही में विपक्षी दलों की एक बैठक को स्थगित कर दिया गया था! बिहार में बारात में भी कई तरह के नखरे होते हैं। बारात अगर सियासी हो तो नखरा और भी ज्यादा। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विपक्षी एकता वाली टाली जा चुकी बैठक को ही देख लीजिए। हम इसकी तुलना एक बारात से कर रहे हैं, ताकि चीजें एकदम साधारण तरीके से आपको समझ में आ जाएंगे। बारात बिना दूल्हे के अधूरी है और दूल्हा बिना सहबाला के। बिहार में दूल्हे के साथ एक छोटा बच्चा या बच्ची साथ में जाती है। वो दूल्हे के साथ ही उसकी गाड़ी में जाती है। उसे ही सहबाला कहते हैं। वो भी बारात की शान होती है। बिहार की इस बारात में दूल्हे को तो कोई शिकायत नहीं थी, लेकिन ऐन वक्त पर सहबाला रूठ गया और दिल्ली से आने वाली बारात वहीं रुक गई। बताने की जरुरत नहीं कि दूल्हा कौन है और सहबाला कौन? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ 2024 के लोकसभा चुनाव में बिगुल फूंक चुके हैं। इसके लिए वो दिल्ली में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, हेमंत सोरेन और नवीन पटनायक तक से मुलाकात कर चुके हैं। हमारे एक विश्वस्त सूत्र ने जानकारी दी है कि बैठक से पहले कांग्रेस समेत सभी दलों से नीतीश कुमार ने हामी भरवा ली थी, तभी बैठक की तारीख तय की गई। लेकिन अब जब कांग्रेस यानि बाराती आने को तैयार नहीं हैं तो नीतीश ने बैठक को टाल दिया। दरअसल नीतीश बिना कांग्रेस के बैठक नहीं करना चाहते। हमारे सूत्र का कहना है कि इस वजह काफी बड़ी है, क्योंकि अगर बिना कांग्रेस के बैठक हुई तो इससे ये संदेश जाएगा कि नीतीश की ये बैठक तीसरे मोर्चे की मीटिंग है। जबकि नीतीश चाहते हैं कि विपक्ष एक छत के नीचे रहे यानि कांग्रेस समेत।
आप गौर कीजिए कि आज से करीब 2 महीने पहले 12 अप्रैल को सीएम नीतीश कुमार ने दिल्ली में राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात की। यहां तक सब ठीक था। ठीक उसी वक्त कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एड़ी चोटी एक किए हुए थी। हालांकि भविष्य का अंदाजा किसी को नहीं था, इसलिए राहुल गांधी ने नीतीश कुमार से मिलने में कोई परहेज नहीं किया। इस मुलाकात को राहुल और खरगे ने ऐतिहासिक तक बताया। लेकिन इसी के बाद आई 13 मई की तारीख, जिसने सारा गेम ही पलट दिया। चुनावी नतीजों में कांग्रेस अकेले दम पर कर्नाटक में बहुमत में आ गई। सरकार भी बन गई। कहने को तो ये एक राज्य में जीत थी, लेकिन कर्नाटक ने कांग्रेस को अचानक फिर से विपक्ष के बीच पहले की तरह टॉप पर ला खड़ा किया। अब तक जो दल कांग्रेस को हल्के में ले रहे थे, उनके लिए तो ये झटका था। कुछ ऐसा ही नीतीश कुमार के साथ भी हुआ। जो राहुल गांधी नीतीश कुमार से एक महीने पहले मिलने को तैयार हो गए थे, उन्होंने नीतीश को अचानक भाव देना ही बंद कर दिया। ऐसा इसलिए हुआ कि अब कांग्रेस ये दिखाना नहीं चाहती कि वो नीतीश के बराबर खड़े हैं। कुल मिलाकर बात कद पर आ गई।
अब थोड़ा आगे बढ़ते हैं। नीतीश की इस मुहिम में ‘तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा’ का भी असर दिखा। नीतीश कुमार ने सबसे पहली गलती ऐसे नेता को चुनकर की, जिसकी खुद की बड़ी महत्वाकांक्षा है। वो हैं तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव। नीतीश ने NDA से अलग होते ही सबसे पहले केसीआर को अपने खेमे में लाने की कोशिश की। यहां वो चूक कर बैठे, उन्हें पता ही नहीं चला कि उनके साथ आकर केसीआर कब खुद की ब्रांडिंग कर गए। इसके बाद नीतीश ने नवीन पटनायक से मुलाकात की, लेकिन वो भी विपक्षी एकता की बात पर अलग निकल लिए। ममता बनर्जी के साथ मामला सही चल रहा था, लेकिन ऐन वक्त पर उन्होंने कांग्रेस का एक विधायक तोड़ नीतीश के प्लान में पलीता लगा दिया।
लोकसभा चुनाव 2024 में अभी एक साल से भी कम समय बाकी है। उसके पहले के चार महीने भी बहुत कुछ तय कर सकते हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव से इन्हीं चार महीने पहले छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव होंगे। इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। 2024 की जनवरी में इनका कार्यकाल खत्म होने वाला है। यानि पहले ये दोनों चुनाव हैं। अंदर ही अंदर जेडीयू को ये भी डर है कि अगर इन दोनों राज्यों में कांग्रेस ने वापसी कर ली तो उनकी राहुल गांधी और कांग्रेस नीतीश की जरुरत ही खत्म हो जाएगी। ऐसे में फिर वो नीतीश को कितना तवज्जो देंगे, ये भी बड़ा मसला है।