हाल ही में हरदीप सिंह पुरी ने विपक्ष की एकता पर एक बयान दिया है! विपक्षी दलों में एकता की कोशिशें आजकल राजनीतिक हलकों में खासी चर्चा पा रही हैं। जहां इसके संभावित परिणामों का आकलन हो रहा है वहीं यह भी पूछा जा रहा है कि बीजेपी इससे निपटने के लिए किस तरह की रणनीति अपनाने वाली है। ऐसे में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता हरदीप पुरी इन प्रयासों को विशेष अहमियत देने को तैयार नहीं। अच्छा और परिपक्व विपक्ष किसी भी लोकतंत्र के हित में है। हमें एक अच्छा और भरोसेमंद विपक्ष चाहिए। सत्ता में जो पार्टी होती है और जो दल विपक्ष में होते हैं, उन्हें खुद को किसी से आइडेंटिफाई करना चाहिए। जैसे मोदी जी का 9 साल का कामकाज देखें तो यह विकास के बारे में है। विपक्ष से पूछिए कि वह किसका समर्थन करते हैं। उनके मुद्दे देखिए। कोई कह रहा है कि अध्यादेश के मसले पर मुझे सपोर्ट करें नहीं तो मैं वॉकआउट कर रहा हूं। एक और पुराने सीएम है, जो कह रहे हैं कि जब अनुच्छेद 370 हटाया था, तब आप कहां थे। ऐसे में ये लोग जनता को क्या संदेश देंगे? मोदी जी का विकास का मॉडल है। इनका क्या है, कोई रेवड़ी वाले हैं, कोई तोड़-फोड़ वाले हैं।
किसी को तीन वक्त का राशन देना इमरजेंसी उपाय है। प्रधानमंत्री आवास योजना में भी क्राइटेरिया आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग है। रेवड़ी पॉलिटिक्स यह है कि आपको 200 या 300 यूनिट बिजली फ्री देते हैं। क्या मुफ्त बिजली देने की फाइनेंसिंग आपके पास है? अगर बहुत बड़ी राजकोषीय लायबिलिटी लें तो इससे आगे दिक्कत होती है। यह गैर जिम्मेदार पॉलिटिक्स है। जैसे कई विकसित देश हैं, वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट फ्री है। क्योंकि उनके पास रिसोर्स है। दिल्ली का उदाहरण देखिए। दिल्ली में DTC की 10 हजार बसें होती थीं। 6 साल से सुन रहे हैं कि नई बसें आ रही हैं। 10 हजार बसें थीं, वे घटकर 3000 से भी कम हो गई हैं। क्योंकि आप बसें खरीद नहीं पा रहे हैं। DTC पर 71 हजार करोड़ का कर्ज है। अगर रिसोर्स हैं तो लोगों को सुविधा मिले, यह अच्छा है। लेकिन हर चीज को मुफ्त करने का मॉडल बहुत खतरनाक है।
एक साल से हमारे OMC ने पेट्रोल-डीजल के प्राइस बढ़ने नहीं दिए। प्रधानमंत्री ने सेंट्रल एक्साइज दो बार कम की है। प्राइस स्टेबल रखने के लिए वित्त वर्ष 2022-23 के पहले छह महीने में OMC ने 21 हजार करोड़ का लॉस उठाया। वह भी पब्लिक लिमिटेड कंपनी है, और उसकी भी जवाबदेही है। अब पहली बार उनके लॉस नहीं हो रहे हैं। पेट्रोल-डीजल के दाम इंटरनैशनल प्राइस पर निर्भर हैं और अगर इंटरनैशनल प्राइस ऐसा ही रहा तो जाहिर तौर पर उसका फायदा कंज्यूमर तक जाएगा ही। जब चिदंबरम जी वित्त मंत्री थे तो तय किया कि चलो आज दिक्कत है, ऑयल बॉन्ड फ्लोट कर दो। उन्होंने 1 लाख 40 हजार के ऑयल बॉन्ड फ्लोट कर दिए और आज हमें 3 लाख 50 हजार करोड़ रुपये वापस करना पड़ रहा है। हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। लेकिन अगर दो-तीन महीने दाम ऐसे ही रहे तो साफ है कि इसका फायदा कंज्यूमर तक जाएगा।
लोकतंत्र पर हमला तो उन लोगों ने किया है। रात को ढाई बजे उनके विजिलेंस सेक्रेटरी के कमरे में रेड करके सारी फाइलें उठाई थीं। पेट्रोल-डीजल के दाम इंटरनैशनल प्राइस पर निर्भर हैं और अगर इंटरनैशनल प्राइस ऐसा ही रहा तो जाहिर तौर पर उसका फायदा कंज्यूमर तक जाएगा ही। जब चिदंबरम जी वित्त मंत्री थे तो तय किया कि चलो आज दिक्कत है, ऑयल बॉन्ड फ्लोट कर दो। उन्होंने 1 लाख 40 हजार के ऑयल बॉन्ड फ्लोट कर दिए और आज हमें 3 लाख 50 हजार करोड़ रुपये वापस करना पड़ रहा है। हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। लेकिन अगर दो-तीन महीने दाम ऐसे ही रहे तो साफ है कि इसका फायदा कंज्यूमर तक जाएगा।किसी पार्टी को भी अगर आम आदमी पार्टी के साथ काम करने का अनुभव है तो उसे पता है कि उनके साथ बहुत सारी दिक्कतें है। पेट्रोल-डीजल के दाम इंटरनैशनल प्राइस पर निर्भर हैं और अगर इंटरनैशनल प्राइस ऐसा ही रहा तो जाहिर तौर पर उसका फायदा कंज्यूमर तक जाएगा ही। जब चिदंबरम जी वित्त मंत्री थे तो तय किया कि चलो आज दिक्कत है, ऑयल बॉन्ड फ्लोट कर दो। उन्होंने 1 लाख 40 हजार के ऑयल बॉन्ड फ्लोट कर दिए और आज हमें 3 लाख 50 हजार करोड़ रुपये वापस करना पड़ रहा है। हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। लेकिन अगर दो-तीन महीने दाम ऐसे ही रहे तो साफ है कि इसका फायदा कंज्यूमर तक जाएगा। देखिए कि दिल्ली में जो अधिकारी इनके इशारे पर नहीं चलते, उनके पंजाब में रहने वाले रिश्तेदारों पर रेड करवा दी। इस स्टाइल पर क्या कहेंगे। दिल्ली सिर्फ यूनियन टेरिटरी नहीं है, यह राजधानी भी है। यह अध्यादेश तो पास होगा ही। लोगों में राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन ऐसे निर्णय नहीं लेंगे जिससे तोड़-फोड़ हो जाए।