क्या यूरोपीय देशों में फैल रहा है नस्ली विवाद?

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वर्तमान में यूरोपीय देशों में नस्ली विवाद फैलता जा रहा है! फ्रांस में अल्‍जीरियाई मूल के 17 वर्षीय किशोर नाहेल एम की पेरिस के पास पुलिस के हाथों मौत के बाद पूरा देश जल रहा है। फ्रांस के कई शहरों में गृहयुद्ध जैसे हालात हो गए हैं। प्रदर्शनकारियों ने सैकड़ों गाड़ि‍यों को जला दिया है। यह हिंसक प्रदर्शन यूरोप के कई और देशों में भी फैल गया है। इन सबके बीच फ्रांस की सरकार ने 45 हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया है। इसके बाद भी लगातार 5 दिन से हिंसा का दौर जारी है। अब तक 3000 से ज्‍यादा उपद्रवियों को अरेस्‍ट किया गया है। एक तरफ फ्रांस जहां जल रहा है, वहीं गोरे और अरब मूल के फ्रांसीसी नागरिकों के बीच खाई बढ़ती जा रही है। यही नहीं सोशल मीडिया में मुस्लिम प्रवासियों से जुड़े वीडियो शेयर करके उन्‍हें यूरोप आने से रोकने की मांग तेज हो गई है।  फ्रांस समेत यूरोप के कई देशों ने एक आदर्श को लोकतंत्र को बनाने के लिए अरब और अफ्रीकी देशों से आने वाले शरणार्थियों को अपने यहां जगह दी। वहीं मौलाना तौहीद जैसे लोगों का कहना है क‍ि सस्‍ते मजदूरों की लालच में फ्रांस ने प्रवासियों को आने दिया। इसमें वे प्रवासी भी थे जिन्‍हें खुद इस्‍लामिक देश अपनी जेलों में डालना चाहते थे। उधर, फ्रांस को तो इस बात पर गर्व था कि उसके धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक शासन में किसी भी नागरिक के साथ धर्म या उसकी नस्‍ल के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। यूरोप में आज 2 करोड़ 60 लाख से ज्‍यादा मुसलमान रहते हैं। विश्‍लेषकों का कहना है कि इनमें से एक छोटा सा हिस्‍सा अक्‍सर यूरोप में विवादों में रहता है जो इस्‍लाम के नाम पर कट्टर विचारों को बढ़ावा देता है।

फ्रांस में पिछले कुछ वर्षों में इस्‍लामिक आतंकियों के हमले बढ़े हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इसी वजह से फ्रांस कट्टरपंथी हमलावरों के भारी दबाव का सामना कर रहा है। साल 2021 में फ्रांस के नीस शहर में चर्च के अंदर चाकू से हमला हुआ था जिसमें 3 लोगों की मौत हो गई थी। संदिग्‍ध हमलावर बार-बार अल्‍लाहू अकबर के नारे लगा रहा था। एक बुजुर्ग की गला काटकर हत्‍या कर दी गई थी। संदिग्‍ध हमलावर ट्यूनिश‍िया का रहने वाला था और अल्‍लाहू अकबर के नारे लगा रहा था। यह व्‍यक्ति शरणार्थी के नाम पर फ्रांस पहुंचा था।

इससे पहले एक शिक्षक की इसलिए हत्‍या कर दी गई थी कि उसने पैगंबर मोहम्‍मद साहब के विवादित कार्टून को बच्‍चों को दिखा दिया था। इस हत्‍याकांड ने पूरे फ्रांस को हिलाकर रख दिया था। साल 2015 में इस्‍लामिक आतंकियों ने चार्ली हेब्‍दो पत्रिका के कार्यालय पर हमला कर दिया था और 12 लोगों की हत्‍या कर दी थी। इसी साल इस्‍लामिक स्‍टेट ऑफ इराक के आतंकियों ने पूरे पेरिस में हमला बोला था। इसमें 130 लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। इससे पहले इस्‍लामिक स्‍टेट के एक आतंकी ने विशाल लॉरी को भीड़ के ऊपर चढ़ा दिया था जिसमें 86 लोग मारे गए थे।

पिछले दो दशक में इस्‍लाम के नाम पर यूरोप में की गई हिंसा में हजारों लोग मारे गए हैं। कई लोग दावा करते हैं कि इसकी वजह यह है कि इस्‍लामिक देशों से बड़ी संख्‍या में प्रवासी यूरोप पहुंचे हैं। इससे पूरे यूरोप की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। यूरोपीय देशों में इस्‍लामिक प्रवासी का मुद्दा गरम है। ब्रिटेन इन प्रवासियों को अफ्रीका भेजने की योजना पर काम कर रहा है। वहीं पोलैंड अपने दरवाजे और सख्‍त कर रहा है। हाल ही में पाकिस्‍तानी अवैध प्रवासियों से लदी एक नौका ग्रीस के पास डूब गई थी जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे। पीउ रीसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया, अफगानिस्‍तान समेत अन्‍य देशों से आने वाले प्रवासियों में 86 प्रतिशत मुस्लिम हैं।

यह वर्तमान आबादी का करीब 3 गुना होगा लेकिन ईसाई और नास्तिक लोगों की आबादी से काफी कम होगा। वहीं ताजा हिंसा से एक बार यह साबित हो रहा है कि यूरोप में गोरी आबादी और अरब मूल के लोगों में टकराव बढ़ रहा है। वहीं अरब मूल के लोगों का दावा है कि यूरोप के देश गोरों की तुलना में उनके साथ सौतेला व्‍यवहार करते हैं। नाहेल एम की हत्‍या के मामले में भी वे कहते हैं कि अगर वह गोरा बच्‍चा होता तो उसकी फ्रांस की पुलिस हत्‍या नहीं करती। वहीं पोलैंड जैसे देश अब प्रवासियों से जुड़े नियमों को बेहद सख्‍त बनाने की वकालत कर रहे हैं।