क्या हो गया है जामताड़ा गैंग का पर्दाफाश?

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यह सवाल उठना लाजमी है कि जामताड़ा गैंग का पर्दाफाश हुआ है या नहीं! डॉक्टर अपने बेटे को डॉक्टर बनाए या न बनाए, इंजीनियर अपने बच्चों के लिए इंजीनियरिंग लाइन का सेलेक्शन करे या न करें। ये भी जरूरी नहीं कि फिल्म स्टार का बेटा या बेटी जरूर फिल्मों में ही आएं, राजनेताओं के बच्चे भी कई बार किसी और प्रोफेशन का चुनाव कर लेते हैं, लेकिन ये घपलेबाज अपने बच्चों को चोर ही बनाते हैं। जी हां जामताड़ा गैंग के शातिर चोर। जहां बाप, बेटा, पोता हर पीढ़ी का प्रोफेशन होता है चोरी, घपलेबाजी, लूट। देश में लूट का एक गैंग चल रहा है जिसे कहते हैं जामताड़ा गैंग! पश्चिम बंगाल और झारखंड के बॉर्डर पर बसा जामताड़ा जिला, जहां बच्चा पैदा होते ही चोर बन जाता है। उसे पता होता है कि उसे बड़ा होकर क्या करना है और कैसे करना है ये उसे ट्रेनिंग देकर सीखा दिया जाता है। जामताड़ा जिले में करीब 150 गांव हैं और इस जिले के ज्यादातर गांव में लूटपाट ही इनकी कमाई का अहम जरिया है। 90 के दशक से ही जामताड़ा चर्चा में आ चुका था। तब न टेक्नॉलजी का का वो दौर था और न ही ऑनलाइन जैसी कोई चीज हुआ करती थी, लेकिन ठगी तो इनके खून में बसी हुई थी। इलाके की तब भी दहशत थी। जामताड़ा में रहने वाले लोग ट्रेनों की बोगियों को लूटा करते थे। जो जामताड़ा से गुजरता था उसका बिना लुटे आना संभव ही नहीं था। अपने काले कामों के लिए ये बदनाम थे, लेकिन जामताड़ा के लोगों ने इसे अपना धंधा बना लिया था। नशीली चीजें खिलाकर लोगों का पैसा, उनका कीमती सामान लूट लेना यहां की आम बात थी।

समय बदला, टेक्नॉलजी ने अपनी जगह बनाई तो धीरे-धीरे इनका का लूट का धंधा मंदा होने लगा, लेकिन ये भी कहां मानने वालों में से थे। इन ठगों ने भी अपने आपको हाईटेक कर लिया। जो पहले ट्रेन को लूटा करते थे वो ऑनलाइन ठगी में लग गए और बन गए साइबर क्रिमिनल्स। जामताड़ा में ऑनलाइन ठगी कैसे शुरू हुई इसके पीछे एक कहानी है। जामताड़ा के काले कामों का जनक अगर किसी को कहा जाए तो वो नाम है सीताराम मंडल। जामताड़ा पुलिस की फाइलों के अनुसार- दस साल पहले यहीं के एक गांव सिंदरजोरी में रहने वाला सीताराम मुंबई गया था। वहां सीताराम ने मोबाइल रिचार्ज की दुकान में नौकरी की और वहीं से ऑनलाइन ठगी करना सीखा।

उसके बाद वो छुट्टियों में जब जामताड़ा लौटा तो उसने वहां से लोगों के साथ मोबाइल ठगी करनी शुरू की। शुरुआत की फर्जी सिम कार्ड लगाकर बैंक अधिकारी बनकर लोगों को लूटने से। लोगों को झांसे में लेकर उनके ओटीपी जानने शुरू किए और पैसे अपने अकाउंट में ट्रांसफर करने।पिछले दस सालों में यहां सैकड़ों हजारों ऑनलाइन ठगी की वारदातों को अंजाम दिया जा चुका है। जामताड़ा के ज्यादातर गांव इन्हीं साइबर क्राइम में लगे हुए हैं। इन्हें गिरफ्तार किया जाता है, लेकिन जब ये रिहा होते हैं तो फिर उसी ठगी के काम में लग जाते हैं। न सिर्फ जामताड़ा बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में इन्होंने अपने ठिकाने बना लिए हैं। हरियाणा, राजस्थान में जामताड़ा ने अपनी कई ब्रांच खोल ली है जहां लोगों को ठगी के लिए तैयार किया जाता है।एक के बाद एक कई लोग इसके झांसे में आते चले गए। बस फिर क्या था इसने धीरे-धीरे साइबर ठगी के काम में ही महारत हासिल कर ली। पुलिस ने सीताराम को गिरफ्तार भी किया, लेकिन कुछ समय बाद ये छूट कर आया तो फिर उसी काम में लग गया। अब धीरे-धीरे गांव के और लोग भी इससे जुड़ने लगे।

पिछले दस सालों में यहां सैकड़ों हजारों ऑनलाइन ठगी की वारदातों को अंजाम दिया जा चुका है। जामताड़ा के ज्यादातर गांव इन्हीं साइबर क्राइम में लगे हुए हैं। इन्हें गिरफ्तार किया जाता है, लेकिन जब ये रिहा होते हैं तो फिर उसी ठगी के काम में लग जाते हैं। न सिर्फ जामताड़ा बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में इन्होंने अपने ठिकाने बना लिए हैं। हरियाणा, राजस्थान में जामताड़ा ने अपनी कई ब्रांच खोल ली है जहां लोगों को ठगी के लिए तैयार किया जाता है।

न सिर्फ बैंकिंग के जरिए धोखा बल्कि अब ये लोगों को ठगने के नए-नए तरीके अपनाते हैं। कैसे लोगों के साथ साइबर क्राइम करना है इसके लिए ये बकायदा ट्रेनिंग कैंप भी चलाते हैं। नब्बे के दशक में ट्रेन लूटने से शुरू हुआ इनका ठगी का धंधा अब पूरी तरह से हाइटेक है। हाइटेक भी इतना पढ़े-लिखे आईटी इंजीनियर तक भी इनकी ऑनलाइन ठगी के शिकार बन जाते हैं। बॉलीवुड स्टार्स से लेकर राजनेता, खिलाड़ी, पुलिसवाले सब इनके शिकार बन चुके हैं।