हाल ही में अरविंद केजरीवाल ने केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ एक बयान दिया है! दिल्ली के लिए लाए अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करा जवाब मांगा है। दिल्ली सरकार ने सर्विसेज मामले में केंद्र सरकार के हालिया ऑर्डिनेंस को चुनौती दी है। अध्यादेश के खिलाफ AAP की ओर से जारी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों में एलजी का नाम शामिल करने को भी कहा है। अब इस मामले पर 17 जुलाई को शीर्ष अदालत सुनवाई करेगा। आइए जानते हैं कि इस अध्यादेश के खिलाफ आज कोर्ट में दिल्ली सरकार ने क्या-क्या दलीलें दीं। चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच में सोमवार को दिल्ली सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि मामले में प्रावधानों पर स्टे होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच ने ट्रीपल चेन की महत्ता बताई थी। जनता के प्रति प्रशासन की जवाबदेही बताई थी। ऑर्डिनेंस की चर्चा करते हुए सिंघवी ने सेक्शन 45 के का जिक्र किया जिसमें एलजी का अधिकार सबसे ऊपर कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के खिलाफ यह ऑर्डिनेंस लाया गया है। मामले की सुनवाई के दौरान सिंघवी ने ऑर्डिनेंस के स्टे किए जाने के कई उदाहरण बताए।
शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डिनेंस पर स्टे करने पर विचार करने के प्रति बेरुखी दिखाई और कहा कि कोर्ट विधान को स्टे नहीं कर सकता है। हम मामले की सुनवाई करेंगे। तब सिंघवी ने दलील दी कि कई ऐसे मामले हैं जिनमें कोर्ट ने कानून को स्टे किया है। ऑर्डिनेंस ने चुनी हुई सरकार के रोल को कमतर किया है। सोमवार को ऑर्डिनेंस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक से इनकार कर दिया और इसके क्रियान्वयन को सस्पेंड करने की दलील पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई की तारीख तय कर दी है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि ऑर्डिनेंस पर रोक लगाई जाए। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि यह ऑर्डिनेंस है। हमें सभी पक्षकारों को सुनना पड़ेगा। सिंघवी ने कहा कि ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए जो कमिटी है उसमें सीएम के साथ दो ब्यूरोक्रेट होंगे और इस तरह सीएम अल्पमत में होंगे और मामला एलजी के पास जाएगा और उन्हें वरीयता दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम मामले में सुनवाई करेंगे। सिंघवी ने साथ ही कहा कि एलजी ने हाल में प्रतिष्ठित इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल करने वाले 437 कंस्लटेंट को बर्खास्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में सिंघवी वे जब कहा कि ऑर्डिनेंस पर रोक हो तब चीफ जस्टिस ने कहा कि विधान पर कैसे रोक लगाया जा सकता है। तब सुप्रीम कोर्ट से सिंघवी ने कहा कि अदालत कई बार संसद के अधिनियम पर रोक लगा चुकी है, अध्यादेश तो उससे नीचे ही है।
सिंघवी ने कहा कि सलाहकारों को कैसे हटाया जा सकता है। इस पर एलजी की ओर से पेश वकील ने कहा कि ये सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ता थे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सलाहकारों की सेवाएं समाप्त करने के एलजी के आदेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की दलील पर 17 जुलाई को सुनेंगे। कोर्ट ने कहा अंतरिम राहत के सवाल पर अगले सोमवार को विचार होगा। इस दौरान सीनियर एडवोकेट संजय जैन ने कहा कि एलजी को मामले में पार्टी नहीं बनाया गया है। तब बेंच ने याचिकाकर्ता को इस बात की लिबर्टी दी है कि वह एलजी को पक्षकार बनाएं।
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच ने 11 मई को फैसला दिया और कहा था कि तीन विषय पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर बाकी मामले में सर्विसेज का कंट्रोल दिल्ली सरकार के हाथों में दिया था लेकिन उसके हफ्ते भर बाद केंद्र ने ऑर्डिनेंस जारी कर एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया। ऑर्डिनेंस को चुनौती देते हुए दिल्ली सरकार ने यह भी कहा है कि यह फेडरल सिस्टम का उल्लंघन करता है साथ ही यह दिल्ली सरकार को अनुच्छेद-239 एए के तहत जो स्पेशल स्टेटस दिया गया है उस लोकतांत्रिक प्रशासन में दखल है। याचिका में दिल्ली सरकार ने यह भी कहा है कि जो फेडरल सिस्टम है और दिल्ली में जो चुनी हुई सरकार है उसकी सर्वोच्चता को यह ऑर्डिनेंस कमतर करता है।
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी अर्जी में यह भी कहा है कि लोकतंत्र में सामूहिक जिम्मेदारी होती है। अनुच्छेद-239 एए के प्रावधान के तहत यह कहा गया है कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार होगी और ऑफिसरों पर उनका कंट्रोल होगा। यह कंट्रोल क्षेत्रिये सरकार के हाथों में होता है। याचिका में कहा गया है कि ऑर्डिनेंस कहता है कि ऑफिसरो के ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए एक कमिटी होगी जिसमें सीएम होंगे साथ ही उसमें चीफ सेक्रेटरी और सेक्रेटरी होम होंगे। और साथ ही एलजी का कथन सर्वोच्च होगा। इस तरह देखा जाए तो यह ऑर्डिनेंस चुनी हुई सरकार को साइडलाइन करने जैसा है। जबकि चुनी हुई सरकार के पास सिविल सर्विसेज और ऑफिसरों का कंट्रोल होना चाहिए। दिल्ली सरकार ने अपनी अर्जी में कहा है कि अनुच्छेद-239 एए के तहत दिल्ली सरकार को तीन विषय को छोड़कर अन्य मामले में अधिकार मिला हुआ है।
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यह भी कहा है कि यह तयशुदा सिद्धांत है कि विधायिका सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को पलट नहीं सकती है। जबकि ऑर्डिनेंस का प्रभाव यह है कि यह एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को पलट रहा है।
एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस के ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए नैशनल कैपिटल सिविस सर्विस अथॉरिटी होगी। इसमें सीएम, चीफ सेक्रेटरी और प्रिंसिपल होम सेक्रेटरी होंगे। अथॉरिटी ग्रेड ए ऑफिसरों और दिल्ली में पोस्टेड दानिक्स ऑफिसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग करेंगे। अथॉरिटी एलजी को सिफारिश भेजगा जिसमें ट्रांसफर पोस्टिंग, विजिलेंस और इंसिडेंटल मामले होंगे। अथॉरिटी बहुमत से फैसला लेगी। अगर ओपिनियन में अंतर होगा तो फिर एलजी फाइनल फैसला लेंगे। नैशनल कैपिटल टेरिटटेरी ऑफ दिल्ली एक्ट में बदलाव किया गया है और इसके तहत एळजी को ऑफिसरों के ट्रांसफर, पोस्टिंग आदि में अधिकार दिया गया है।