हाल ही में मणिपुर में महिलाएं निशाना बनाई जा रही है! मणिपुर में महिलाओं के साथ बर्बरता का वीडियो देखकर देश कांप उठा। बेकाबू भीड़ ने महिलाओं को नग्न अवस्था में परेड करवाया। उनका सरेआम कैमरे पर यौन शोषण किया गया। वीडियो वायरल होने के बाद लोगों को मणिपुर की भयावह स्थिति का अंदाजा हुआ। लोग कहने लगे कि राज्य की कानून और व्यवस्था पंगु हो चुकी है। वीडियो से एक बात फिर साबित हुई। हिंसा कहीं भी हो, महिलाओं का इस्तेमाल ताकत दिखाने के लिए होता है। महिलाओं के शरीर को शक्ति-प्रदर्शन का जरिया बना लिया जाता है। मणिपुर की हिंसा में महिलाओं के शरीर का खूब इस्तेमाल हुआ। कभी दुश्मन को सुरक्षा के लिए खतरा बताने के लिए, कभी किसी ‘अपने’ और ‘बाहरी’ के लिए राजनीतिक हदें तय करने के लिए, कभी भारतीय सेना या पैरामिलिट्री फोर्सेज को दखल देने से रोकने के लिए महिलाओं को ढाल बनाया गया। असिस्टेंट प्रफेसर ने विभिन्न घटनाओं का हवाला किया है। नगा वुमन यूनियन का आरोप है कि 24 मई को चार महिलाओं को एक गाड़ी से जबरन उतारा गया। उनके कपड़े फाड़ दिए गए और सामान तहस-नहस कर दिया। अपने लेख में वह कहती हैं कि महिलाओं के खिलाफ अलग-अलग अपराधों में प्रतिक्रिया अलग-अलग रही। इसी वजह से मणिपुर में कुछ लोगों का राज्य सरकार पर से भरोसा उठ चुका है कि वह न्याय करेगी।
मणिपुर के पुलिस थानों में महिलाओं पर अत्याचार के कई और मामले लंबित पड़े हैं। बहुत सारी पीड़िताएं तो अभी FIR दर्ज कराने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहीं। मणिपुर के वीडियो पर जो भावुकता का उबाल आया है, उससे पीड़िताओं को न्याय दिलाने की दिशा में ठोस कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। उससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास बहाल होगा।
कैसे मिलता है समुदाय को जनजाति का दर्जाचंद्रा के अनुसार, संविधान ने अनुसूचित जनजातियों की सूची में बदलाव का कोई पैमाना नहीं तय किया है। ऐसे में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों की केंद्रीय कैबिनेट समिति पर निर्भर करता है। 2002 में यह तय हुआ कि बिना राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश की स्पष्ट अनुशंसा के ऐसा कोई प्रस्ताव समिति के सामने नहीं रखा जाएगा। मणिपुर के मामले में राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 371 (C) का पालन करते हुए हिल्स एरिया कमिटी से भी मंजूरी लेनी होगी। राज्य सरकार की सिफारिश के बाद भारत के रजिस्ट्रार जनरल RGI और जनगणना आयुक्त प्रस्ताव की जांच करते हैं। दोनों की मंजूरी के बाद इसे आदिवासी मामलों के मंत्रालय को भेजा जाता है। फिर अनुसूचित जनजातियों के लिए बना राष्ट्रीय आयोग NCST प्रस्ताव के तकनीकी पहलुओं पर विचार करता है। अगर NCST प्रस्ताव को खारिज कर देता है तो प्रक्रिया वहीं खत्म हो जाती है। NCST के सिफारिशें मान लेने पर ही प्रस्ताव कैबिनेट के सामने भेजा जाता है। वहां से मंजूरी मिलने पर संसद में संशोधन प्रस्ताव लाया जाता है।
अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से एक समुदाय को नौकरियों में आरक्षण के अलावा कई अधिकार मिलते हैं। मणिपुर में, जनजातीय भूमि के हस्तांतरण को रोकने के लिए विशेष कानून बनाकर गैर-आदिवासी समुदायों द्वारा भूमि की खरीद को हतोत्साहित किया जा सकता है। अत्याचार निवारण अधिनियम लागू करने की क्षमता एक और अधिकार है। मणिपुर की अनुसूचित जनजातियों को वहां कमाई आय के लिए आयकर अधिनियम की धारा 10 (26) के तहत छूट भी मिलती है। लेकिन लोकुर समिति की टिप्पणियों के अनुसार, ‘जिन जनजातियों के सदस्य आम आबादी के साथ घुलमिल गए हैं, वे अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल होने के योग्य नहीं है, प्रत्येक जनजाति को खास तवज्जो की जरूरत नहीं समझी जाती। यहि नहीं आपको बता दें कि मणिपुर में 19 साल की आदिवासी लड़की एक एटीएम से पैसे निकालने गई थी, जब उसे गाड़ी में आए चार लाेगों ने अगवा कर लिया। उन्हें एक पहाड़ी इलाके में ले जाया गया, जहां एक कमरे में उनसे बार-बार रेप किया गया। वह जब भी विरोध करतीं तो उनको बंदूक के बट से मारा जाता और बिना खाना और पानी के तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता।रातभर उन्हें भूखा-प्यासा रखा गया। आखिरकार वॉशरूम जाने के बहाने वह वहां से भाग निकलीं और बीते 21 जुलाई को उन्होंने अपने साथ हुई इस वारदात की शिकायत पुलिस से की। ये सिर्फ एक लड़की की दास्तां नहीं है।
कहा जाता है कि दुनिया की सारी जंग पुरुष ही लड़ते हैं लेकिन इनमें सबसे ज्यादा शहीद महिलाएं होती हैं, उनकी आबरू लुटती है और वो परिवार और अपना अस्तित्व खोकर सड़क पर छोड़ दी जाती हैं।ऐसा क्यों होता है, इस बवाल के पीछे किस तरह की मानसिकता काम करती है जहां मुद्दा कुछ और होता है, लेकिन आक्रोश का सामना महिलाएं करती हैं।