क्या राजस्थान में भी था एक डाकू गब्बर सिंह?

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राजस्थान में भी एक डाकू गब्बर सिंह था! उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के वो गांव जो चंबल के बीहड़ से सटे हुए हैं उन गांवों में आज भी एक नाम का खौफ रहता है। डाकू गब्बर सिंह। फिल्म शोले में अमजद खान ने डाकू गब्बर सिंह के रोल को अमर कर दिया। शोले भारतीय सिनेमा की सबसे हिट फिल्मों से एक रही और डाकू गब्बर सिंह का रोल सुपर हिट। फिल्म में गब्बर सिंह दहशत को बखूबी दिखाया गया, लेकिन चंबल के आसपास के लोग अपने पिता और दादा से सुनी बातों को आज भी नहीं भूल पाते। वो बताते हैं कि रियल जिंदगी का गब्बर कहीं ज्यादा खतरनाक था। इतना कि वो लोग आज भी उसका नाम सुनकर घबराने लगते हैं। जो भी गब्बर की मुखबिरी करता था वो उसे मार डालता था। साल 1926 में मध्य प्रदेश के भिंड जिले के डांग इलाके में हुआ था गब्बर सिंह का जन्म। मात-पिता ने नाम दिया प्रीतम सिंह, लेकिन शुरू से ही वो मोटा-तगड़ा था तो घरवाले गबरा बोलने लगे। तब ये कोई नहीं जानता था कि वो एक दिन डाकू गब्बर सिंह बन जाएगा जिसके नाम का खौफ सदियों तक रहेगा। पिता गरीब थे और खेती करते। गांव के जमींदारों ने उनके ऊपर अत्याचार करने शुरू किए। इस बात ने गबरा के मन में नफरत भर दी। उसने गांव के दो लोगों की हत्या कर दी और फिर सीधा चंबल के बीहड़ों में पनाह ले ली। उस वक्त डाकू कल्याण सिंह चंबल में राज करता था। गबरा कल्याण सिंह के गिरोह में शामिल हो गया और बन गया डाकू गब्बर सिंह।

धीरे-धीरे गब्बर सिंह ने अपना अलग गैंग बना लिया। वो इतना खूंखार था कि जो भी उसके खिलाफ आवाज उठाता था वो उसे मौत की नींद सुला देता था। आसपास के गांवों में लूटपाट, किडैपिंग और फिरौती इसकी आय का जरिया बन गया था। बता दें कि भारत के चंबल के गांवों में ही नहीं बल्कि पूरे देश में गब्बर के नाम का खौफ फैला दिया। बच्चों की मां डरने लगीं। 21 बच्चों को गोलियों से भूनने की घटना ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचाई। खुद उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इस बात से बेहद परेशान हो उठे और डाकू गब्बर सिंह को जिंदा मुर्दा पकड़ने के आदेश दे डाले। इसका आतंक इतना ज्यादा था कि कोई इसके खिलाफ पुलिस में जाने की हिम्मत भी नहीं करता था और जो जाता था ये उसे मार गिराता था। यहां तक कि जो पुलिस वाले इसको पकड़ने की कोशिश करते ये उनकी भी हत्या कर देता।

गब्बर सिंह का आतंक बढ़ता ही जा रहा था। कहते हैं एक तांत्रिक को ये डाकू काफी ज्यादा मानता था। उस तांत्रिक ने इसे बताया था कि अगर वो अपनी कुलदेवी के चरणों में 116 लोगों के नाक और कान भेंट करेगा तो वो अमर हो जाएगा। खुद के अजर अमर बनाने के लिए डाकू गब्बर ने और ज्यादा हत्या करनी शुरू कर दी। ये जिसकी हत्या करता उसके नाक और कान काट लेता। गांव-गांव में बिना नाक-कान की लाशें मिलने लगी।

हद तो तब हो गई जब इसने एक ही गावं के 21 बच्चों को मुखबिरी के शक में गोलियों से भून डाला। इस घटना ने चंबल के गांवों में ही नहीं बल्कि पूरे देश में गब्बर के नाम का खौफ फैला दिया। बच्चों की मां डरने लगीं। 21 बच्चों को गोलियों से भूनने की घटना ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचाई। खुद उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इस बात से बेहद परेशान हो उठे और डाकू गब्बर सिंह को जिंदा मुर्दा पकड़ने के आदेश दे डाले।

पुलिस की स्पेशल टीम ने चंबल के बीहड़ में डेरा डाल दिया। टीम को लीड कर रहे थे राजेन्द्र प्रसाद मोदी। दिन गुजरने लगे, महीने गुजरने लगे यहां तक की साल भी बीत गए, लेकिन टीम को कोई कामयाबी हासिल नहीं हो रही थी। गांव वालों में डाकू गब्बर सिंह का इतना खौफ था कि कोई उसके बारे में कुछ भी नहीं बताता था। करीब तीन साल बाद 13 नवम्बर 1959 को पुलिस को एक दिन खबर मिली की वो हाईवे पर आने वाला है। बस फिर क्या था आईजी के एफ रुस्तम, डीएसपी राजेन्द्र प्रसाद मोदी समेत पुलिसवालों की एक बड़ी टीम हाईवे पर छुपकर बैठ गई। जैसे ही डाकू गब्बर सिंह अपने दूसरे साथियों के साथ वहां से गुजरा पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। डाकू गब्बर की टीम पर बम बरसाए गए और आखिरकार उसकी मौत हुई। गब्बर के साथ उसके 9 और डाकू भी मारे गए।