आपातकालीन के समय लाल किले से क्या बोली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी?

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आज हम आपको बताएंगे कि आपातकालीन के समय लाल किले से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने क्या कहा था! बात 15 अगस्‍त 1976 की है। देश में इमर्जेंसी लगी हुई थी। उस दिन लाल किले की प्राचीर से तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्‍ट्र को संबोधित किया था। उनकी एक-एक बात सुनने के लिए देशवासियों के कान लगे हुए थे। यह दौर बेहद नाजुक था। नागरिकों के संवैधानिक अधिकार छीन लिए गए थे। विपक्ष के नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया था। सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने पर पाबंदी थी। देश की आजादी के बाद पहली बार अखबारों को सेंसरशिप का सामना करना पड़ रहा था। 1976 के स्‍वतंत्रता दिवस पर भी इंदिरा ने कुछ ऐसा बोला था जो अखबारों के लिए साफ चेतावनी थी। इसने अखबारों में खलबली मचा दी थी। आखिर उन्‍होंने ऐसा क्‍या कहा था? ‘तस्‍वीर की कहानी’ की चौथी कड़ी में आज हम आपको इंदिरा के भाषण के उसी अंश के बारे में बताने जा रहे हैं। 25 जून 1975 को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने देश में इमर्जेंसी लागू करने का ऐलान किया था। इमर्जेंसी के दौरान नागरिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे। इंदिरा के राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। उसी साल 12 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले ने इमर्जेंसी लगाने की नींव रखी थी। हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए गलत तौर-तरीके अपनाने का दोषी पाया था। इसके बाद उनका चुनाव रद्द कर दिया गया था।

यह तस्‍वीर इमर्जेंसी के उसी दौर की है। दिन आज ही का था। साल था 1976। इंदिरा गांधी लाल किले की प्राचीर से राष्‍ट्र को संबोधित करने के लिए पहुंची थीं। तब उन्‍होंने अखबारों को लेकर कुछ ऐसा कहा था जो उनकी आजादी पर अंकुश लगाने वाला था। इंदिरा बोली थीं कि पूर्ण स्‍वराज के मायने सिर्फ ये नहीं हैं कि आप अपने प्रतिनिधि को चुनें। इसके ये भी मायने नहीं हैं कि अखबार जो लिखना चाहें, फिर भले वे बहुत कम लोगों की आवाज उठाते हों, वो इजाजत मिले उनको।

पूर्ण स्‍वराज के मायने बताते हुए इंदिरा बोली थीं कि इसका मतलब है कि स्‍वराज का फल और नतीजे घर-घर तक पहुंचें। इसे उन तक पहुंचना चाहिए जो आज तक सभी सुविधाओं से वंचित रहे हैं। अपने भाषण के जरिये इशारों-इशारों में इंदिरा गांधी ने अखबारों को चेतावनी दे दी थी कि वे खुलकर नहीं लिख सकते हैं। इसकी इजाजत नहीं दी जाएगी। यहि नहीं आपको बता दें कि बात 1971 के आम चुनाव की है। इंदिरा गांधी की सीट रायबरेली से विपक्ष ने समाजवादी आंदोलन से निकले राजनारायण को उतारा। नतीजे आए तो इंदिरा गांधी विजयी घोषित की गईं। हालांकि, राजनारायण चुनावी प्रक्रिया से संतुष्‍ट नहीं थे। उन्‍होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा के खिलाफ याचिका लगा दी। इंदिरा पर चुनाव जीतने के लिए अनुचित तरीकों का इस्‍तेमाल करने का आरोप था।

केस सिटिंग प्रधानमंत्री के खिलाफ था इसलिए चर्चा देश-विदेश में थीं। मामला HC जज जगमोहन लाल सिन्‍हा की कोर्ट में गया। चार साल तक सुनवाई चली। उनपर काफी दबाव था। बैकडोर से बार-बार परेशान किए जाने पर सिन्‍हा बिफर गए। रजिस्‍ट्रार को फोन लगाकर कहा कि ऐलान कर दें, 12 जून 1975 को फैसला सुनाया जाएगा। आखिरकार फैसले का दिन आया। हिदायत थी कि कोई जज साहब के फैसले पर ताली नहीं बजा एगा। 258 पेज के फैसले को पढ़ते हुए जस्टिस सिन्‍हा ने कहा कि ‘याचिका स्‍वीकार की जाती है…।’ इसी के साथ सत्‍ता के गलियारों में खलबली मच गई। जस्टिस सिन्हा ने भ्रष्ट आचरण के दो मानदंडों पर इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया। पहला, पीएमओ में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी यशपाल कपूर का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में करना। कुछ ही देर में, एक सफदरजंग रोड तत्‍कालीन पीएम आवास पर इंदिरा के करीबियों की भीड़ जुटने लगी।

आरके धवन की गिनती उस वक्‍त इंदिरा के सबसे करीबी लोगों में होती थी। वे इंदिरा के न‍िजी सचिव थे। 2015 के एक टीवी इंटरव्‍यू में धवन ने दावा किया कि इमरजेंसी का विचार इंदिरा का नहीं, बल्कि उस वक्‍त पश्चिम बंगाल के सीएम रहे सिद्धार्थ शंकर रे का था। बकौल धवन, रे ने 8 जनवरी 1975 को ही पत्र लिखकर इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने का सुझाव दिया था।धवन के अनुसार, जून 1975 में जब हाई कोर्ट ने इंदिरा के खिलाफ फैसला सुनाया तो रे ने आपातकाल लगाने का दबाव बढ़ाया। धवन ने उस टीवी इंटरव्‍यू में कहा कि अदालत का फैसला सुनने के बाद इंदिरा की पहली प्रतिक्रिया त्‍यागपत्र देने की थी। उन्‍होंने इस्‍तीफा टाइप भी करवा लिया था मगर उसपर कभी हस्‍ताक्षर नहीं किए।