क्या भाजपा के सामने पूर्वांचल बन जाएगा बड़ी चुनौती?

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आने वाले चुनावों में भाजपा के सामने पूर्वांचल एक बड़ी चुनौती बन सकता है! उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन का कुनबा बढ़ गया है। भाजपा के साथ अनुप्रिया पटेल की अपना दल, संजय निषाद की निषाद पार्टी के अलावा अब ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी आ खड़ी हुई है। लोकसभा चुनाव को लेकर ये गठबंधन काफी अहम माना जा रहा है। लेकिन गठबंधन में दलों की संख्या बढ़ने के साथ ही भाजपा की राहें भी कठिन होती दिख रही हैं। खासतौर पर पूर्वांचल में भाजपा के लिए संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि तीनों ही दल भाजपा से यहां ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की होड़ में हैं। इसमें सबसे बड़ी दावेदारी अपना दल की है, जो यूपी में भाजपा, सपा के बाद तीसरा सबसे बड़ा दल बन चुकी है। वहीं सुभासपा भी बढ़ी ताकत के साथ एनडीए में लौटी है। इनके अलावा संजय निषाद भी अब अपनी पार्टी के सिंबल को लोकसभा तक पहुंचाने के प्रयास में हैं। बात अगर निषाद पार्टी की करें तो 2018 में गोरखपुर उपचुनाव में निषाद पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया और डॉ प्रवीण निषाद इस उपचुनाव में भाजपा को चौंकाते हुए विजयी हुए। 2022 विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर ने अखिलेश यादव की सपा के साथ गठबंधन किया। पूर्वांचल में इस गठबंधन ने बीजेपी का काफी नुकसान किया। गाजीपुर और आजमगढ़ से बीजेपी को सपा गठबंधन ने समेट दिया। बलिया में दो और मऊ में एक सीट ही पार्टी जीत सकी। इस प्रदर्शन के पीछे राजभर वोटबैंक को अहम कारण माना गया। एक साल बाद स्थितियां बदल गईं और निषाद पार्टी ने एनडीए ज्वाइन कर लिया। इस बार डॉ प्रवीण निषाद को भाजपा के सिंबल पर संत कबीर नगर से प्रत्याशी बनाया गया और यहां भी वह आसानी से जीत गए। उनके पिता और पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद को बीजेपी ने प्रदेश सरकार में मंत्री पद के साथ एमएलसी बनाया। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भी निषाद पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया और 6 सीटें हासिल कीं। अब लोकसभा चुनाव करीब आने पर डॉ संजय निषाद अपनी पार्टी के सिंबल के साथ मैदान में उतरना चाहते हैं। हाल ही में उन्होंने खुद ही ऐलान कर दिया कि हम अपने सिम्बल पर चुनाव लड़ेंगे। भाजपा 2019 में जो सीटें हारी थी, वो सभी हमें दे दे, हम उन्हें जीतकर देंगे। बता दें कि 2022 विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर ने अखिलेश यादव की सपा के साथ गठबंधन किया। पूर्वांचल में इस गठबंधन ने बीजेपी का काफी नुकसान किया। गाजीपुर और आजमगढ़ से बीजेपी को सपा गठबंधन ने समेट दिया। बलिया में दो और मऊ में एक सीट ही पार्टी जीत सकी। इस प्रदर्शन के पीछे राजभर वोटबैंक को अहम कारण माना गया। निषाद पार्टी लोकसभा की 37 सीटों पर लड़ने को तैयार है। दरअसल उत्तर पदेश में निषाद समाज का वोट करीब 18 फीसदी माना जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ये ज्यादा ताकतवर है। प्रदेश के 165 विधानसभा सीटें निषाद बाहुल्य हैं। ये समाज कई लोकसभा सीटों पर जीत हार तय करने में अहम भूमिका निभाता रहा है।

वहीं दूसरी तरफ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर पहले पहले भाजपा में ही गठबंधन का हिस्सा थे। कुछ समय तक सरकार में भी शामिल रहे लेकिन बाद में दोनों की राहें अलग हो गईं। 2019 के लोकसभा चुनाव में सुभासपा ने 19 उम्मीदवार उतारे। भले ही उन्हें एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। लेकिन 8 सीटें ऐसी थीं, जहां पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी। इसके बाद 2022 विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर ने अखिलेश यादव की सपा के साथ गठबंधन किया। पूर्वांचल में इस गठबंधन ने बीजेपी का काफी नुकसान किया। गाजीपुर और आजमगढ़ से बीजेपी को सपा गठबंधन ने समेट दिया। बलिया में दो और मऊ में एक सीट ही पार्टी जीत सकी। इस प्रदर्शन के पीछे राजभर वोटबैंक को अहम कारण माना गया।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी है अनुप्रिया पटेल की अपना दल एस। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की 71 सीटों के साथ अपना दल ने 2 सीटें मिर्जापुर और प्रतापगढ़ जीती थीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में अपना दल ने 9 सीटें जीतीं। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सोनभद्र रॉबर्ट्सगंज और मिर्जापुर सीटें मिलीं। पार्टी ने दोनों सीटें जीतीं। इस बार अनुप्रिया पटेल लोकसभा चुनाव में गठबंधन में ज्यादा सीटें चाहते हैं। उनका कहना है कि गठबंधन में अभी तक के प्रदर्शन और अन्य सहयोगी दलों से ज्यादा की मजबूती को सीट बंटवारे में तरजीह दी जाए। माना जा रहा है कि अनुप्रिया पटेल 5 प्रमुख सीटों पर दावेदारी कर रही हैं। इनमें मिर्जापुर से तो वह सांसद हैं ही, दूसरी प्रतापगढ़, अंबेडकरनगर, फतेहपुर और जालौन की सीटें प्रमुख हैं।