Thursday, December 19, 2024
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क्या बीजेपी ने पहले ही बिखेर दिया है विपक्ष का INDIA?

बीजेपी ने पहले ही विपक्ष का INDIA बिखेर कर रख दिया है! विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A के शीर्षस्थ नेताओं की तीसरी बैठक मुंबई में इस महीने के आखिर में प्रस्तावित है। इसके पहले गठबंधन के नेता और सहयोगी दल जिस तरह किनाराकशी करने लगे हैं, उससे गठबंधन में अंत तक कितने नेता रहेंगे, यह अभी अनुमान लगाना मुश्किल है। बिहार में विपक्षी गठबंधन की बैठक के ठीक पहले जीतन राम मांझी की पार्टी हम ने किनारा कर लिया। उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू छोड़ नई पार्टी आरएलजेडी बना ली। महाराष्ट्र में एनसीपी दो भागों में बंट गई। अब तो शरद पवार पर भी बीजेपी डोरे डालने लगी है। यह कोई दूसरा नहीं, बल्कि खुद एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ही कहते हैं। उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी का साथ उसके नेता और सहयोगी दल छोड़ते जा रहे हैं तो बिहार में भी यही स्थिति है। जेडीयू से कुछ तो जा चुके हैं और कई के जाने की चर्चा है। चुनावी मौसम में नेताओं का दल या खेमा बदलना कोई नई बात नहीं होती। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह चौहान का विधायकी से इस्तीफा और भाजपा में वापसी को इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। उनके पाला बदल की बात कत्तई नहीं चौंकाती, क्योंकि वे पहले भी भाजपा में थे। वाराणसी में शालिनी यादव ने भी समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ दिया है। सपा के सहयोगी आरएलडी नेता जयंत चौधरी भी सपा का साथ छोड़ने की तैयारी में हैं। भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने सपा का साथ छोड़ते वक्त कहा भी था कि समाजवादी पार्टी के कई विधायक अखिलेश यादव से नाराज हैं। वे पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं। अगर यह क्रम जारी रहा तो भाजपा यूपी के पूर्वांचल से पश्चिमी यूपी तक अपनी ताकत बढ़ाने में कामयाब हो जाएगी।

भाजपा को हराने के लिए विपक्ष का गणित समझिए। बीजेपी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 37.36 प्रतिशत वोटों के साथ 303 सीटें जीती थीं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने 45 प्रतिशत वोटों के साथ 353 सीटें जीती थीं। यानी 55 फीसद वोट विपक्ष के पाले में गए, लेकिन बिखराव के कारण विपक्ष इसे सीटों में कन्वर्ट नहीं कर सका। इस बार बीजेपी के खिलाफ विपक्ष एक उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। जेडीयू के प्रवक्ता और सलाहकार केसी त्यागी की मानें तो विपक्षी गठबंधन ने 450 सीटों पर वन टू वन फाइट की तैयारी कर ली है। हालांकि वे यह बताते समय भूल गए कि मायावती की बीएसपी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम जैसी पार्टियों के अलावा केसीआर की बीआरएस, जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस, कर्नाटक में जेडीएस और ओडिशा में बीजद जैसी पार्टियां भी स्वतंत्र रूप से मैदान में होंगी। टूट और बिखराव के खतरे और भी हैं। एनसीपी और शिवसेना पहले ही महाराष्ट्र में टूट चुकी हैं। ममता और केजरीवाल पर भरोसा करना खतरे से खाली नहीं।

दरअसल बीजेपी यूपी में अपनी फतह के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पकड़ रखते हैं। शालिनी यादव पूर्वांचल में सपा का खेल बिगाड़ना या न बिगाड़ पाए, पर सपा की जातीय गोलबंदी यानी यादवों की एकमात्र पार्टी होने का दंभ तो उन्होंने तोड़ ही दिया है। दारा सिंह चौहान की पूर्वांचल में तकरीबन डेढ़ दर्जन सीटों पर पकड़ है। भाजपा सरकार में वे मंत्री भी थे। चुनाव पूर्व सपा नेताओं या उसके सहयोगियों का अखिलेश यादव से अलग होना निश्चित ही नुकसान का दायरा बढ़ाएगा। पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी यूपी तक पाला बदलने वाले नेता भाजपा की ताकत में यकीनन इजाफा करेंगे। यह सपा के लिए शुभ नहीं। जाट समुदाय के नेता हैं जयंत चौधरी। दारा सिंह चौहान गैर यादव ओबीसी से आते हैं। शालिनी सपा की आधार जाति यादव समाज से आती हैं। मसलन जातीय ध्रुवीकरण तोड़ने की यह बीजेपी की कोशिश है। मायावती और अखिलेश की ताकत जातीय गोलबंदी ही मानी जाती रही है।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर अब एनडीए में लौट आए हैं। भाजपा के साथ वे लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। पहली बार उनकी पार्टी का गठजोड़ 2017 में एनडीए से हुआ था। वे मंत्री भी बने। साल 2017 में ओमप्रकाश राजभर ने योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और उनकी पार्टी ने सपा के साथ 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव लड़ा। अब वे भाजपा के साथ हैं। यानी भाजपा ने यूपी में सपा के सफाए की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।

अभी तक विपक्षी दल एकजुटता के नाम पर सिर्फ बैठते रहे हैं। सीटों का बंटवारा और पीएम का फेस सबसे बड़ी चुनौती है। बंगाल में ममता बनर्जी को लेकर अब उनकी पार्टी का नारा बुलंद भी होने लगा है- बोलचे बांग्लार जनता, पीएम होक ममता बोल रही बंगाल की जनता, पीएम बनें ममता। यह विपक्षी गठबंधन पर दबाव की ममता की पहली चाल है। सीटों का मामला सुलझाने अभी बाकी है। यानी पीएम फेस घोषित होने से पहले ही दबाव। क्या इस हालत में विपक्ष एकजुट रह पाएगा ? नहीं रह पाया तो पीएम नरेंद्र मोदी का मुकाबला कैसे कर पाएगा ?

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