क्या दुनिया के लिए खतरे की घंटी है अफ्रीकी देश नाइजर?

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अफ्रीकी देश नाइजर अब दुनिया के लिए खतरे की घंटी बन चुका है! अफ्रीकी देश नाइजर की बगावत से दुनिया की ताकतें परेशान हैं। रूसी राष्ट्रपति पूतिन ने पड़ोसी देश माली के राष्ट्रपति से इस मसले पर बातचीत की है। इसके बाद वहां की सरकार ने बातनाइजर में तख्तापलटचीत को लेकर नरम रुख दिखाया है। नाइजर में संभावित मिलिट्री दखल को लेकर शुक्रवार को घाना में पश्चिमी अफ्रीकी सेना प्रमुख बैठक होगी। इसका अजेंडा इस बात को लेकर है कि जब नाइजर में डिप्लोमेसी फेल हो जाएगी, तो उस हालात में इकनॉमिक वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स यानी ECOWAS किस तरह के सैन्य दखल को अंजाम देगा। दरअसल ECOWAS ने पहले कहा था कि नाइजर में संवैधानिक व्यवस्था बहाल करने के लिए हर कोशिश की जाएगी, जिसमें बल प्रयोग भी विकल्प हो सकता है। इससे पहले तख्तापलट में शामिल (कू) लीडर्स ने पश्चिमी देशों की उस मांग को खारिज कर दिया था, जिसमें सत्ता से बेदखल किए गए राष्ट्रपति मोहम्मद बैजोम की फिर से बहाली के लिए दबाव बनाया गया था। तख्ता पलटने वाली सैनिक सरकार ने कहा कि हम राष्ट्रपति मोहम्मद बैजोम पर राजद्रोह का मुकदमा चलाएंगे। रूस की प्राइवेट आर्मी वैगनर ने इस तख्तापलट का समर्थन किया है। तख्तापलट के बाद रूसी झंडे लहराए गए थे। कुल मिलाकर इस घटनाक्रम से पश्चिमी देश सकते में हैं। इलाके में रूस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि पश्चिम के पास कुछ भी करने के लिए बहुत कम वक्त बचा है।

पश्चिम अफ्रीकी देश नाइजर में 26 जुलाई को राष्ट्रपति बेजौम की सरकार का तख्ता पलट दिया गया। बता दें कि भारत में फ्रांस और यूरोपीय यूनियन को यूरेनियम जाता है। अगर सैन्य मौजूदगी की बात करें तो अमेरिका के करीब 1,100 और फ्रांस के 1500 सैनिक नाइजर में मौजूद हैं। अमेरिका के लिए नाइजर कितना अहम है, यह इसी बात से पता चलता है कि मार्च में ही अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने नाइजर के दौरे में साहेल इलाके के लिए $150 मिलियन की नई सहायता की घोषणा की थी। बेजौम 2021 में राष्ट्रपति बने थे। साल 1960 में फ्रांस से आजादी मिलने के बाद यह पहली बार था जब बेजौम को लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता मिली थी। माली और बुर्किना फासो के बाद से इस देश को ऐसी अर्द्ध लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरह देखा जा रहा था जो पश्चिमी देशों की सहयोगी रही है। राष्ट्रपति बेजौम ने अमेरिका और फ्रांस के साथ मजबूत सुरक्षा साझेदारी बनाई, लेकिन उनके सामने चुनौतियां कम नहीं थीं। आर्थिक बदहाली के अलावा लोगों को ये भी लगता था कि उनकी सरकार फ्रांसीसी सरकार पर कुछ ज्यादा निर्भर थी। साथ ही साहेल वाले क्षेत्र से आतंकवाद का खतरा तो था ही। पश्चिमी अफ्रीका का साहेल क्षेत्र बीते कुछ समय से जिहादी इस्लामिक उभार का शिकार रहा है। आंकड़े बताते हैं कि इस्लामी आतंकवाद के चलते पिछले जून से लेकर इस जून तक इस क्षेत्र में 22 हजार अफ्रीकी लोगों ने जान गंवाई है।

अफ्रीकी महाद्वीप में साहेल के इलाके में नाइजर पश्चिमी देशों के लिए ऐसे एंट्री पॉइंट की तरह काम कर रहा था, जहां से वह डिप्लोमैटिक मिशन चला रहे थे। यूरेनियम की वजह से भी नाइजर पश्चिम के लिए बेहद जरूरी है। यहीं से फ्रांस और यूरोपीय यूनियन को यूरेनियम जाता है। अगर सैन्य मौजूदगी की बात करें तो अमेरिका के करीब 1,100 और फ्रांस के 1500 सैनिक नाइजर में मौजूद हैं। अमेरिका के लिए नाइजर कितना अहम है, यह इसी बात से पता चलता है कि मार्च में ही अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने नाइजर के दौरे में साहेल इलाके के लिए $150 मिलियन की नई सहायता की घोषणा की थी।

नाइजर के पीछे पश्चिम की इतनी रुचि के पीछे दो वजहें हैं। रूस दो तरफ से इस इलाके में पश्चिम के लिए मुसीबतें खड़ी कर रहा है। एक ओर जहां रूस ने रशिया-अफ्रीकी समिट में पश्चिमी देशों को निशाने पर लिया और अनाज डिप्लोमैसी कर इन देशों को अपने पाले में करने की कोशिश की। वहीं, नाइजर के कू लीडर्स पश्चिम देशों की नहीं सुन रहे, लेकिन रूसी राष्ट्रपति पूतिन की बात ध्यान से सुन रहे हैं। यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि वेस्ट अफ्रीका में रूस की प्राइवेट आर्मी वैगनर का दबदबा बढ़ा है। साथ ही यूरेनियम का भंडार होना भी बड़ी वजह है। यहां का 50% यूरेनियम फ्रांस के न्यूक्लियर प्लांट्स को चलाने के काम आता है। रूस के इस इलाके में दखल बढ़ने से पश्चिम को दिक्कत तो होगी ही।