आखिर क्यों हो रही है वर्तमान में 370 पर बहस?

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वर्तमान में 370 पर बहस हो रही है! अगस्त 2019 में बॉर्डर स्टेट जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटने की जरूरत पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर अपनी तरह का अनूठा राज्य नहीं है, पंजाब और पूर्वोत्तर को भी इसी तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ा है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे सवाल किया कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि किसी राज्य को विभाजित करने की केंद्र सरकार की शक्तियों का दुरुपयोग नहीं किया जाएगा। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर बहस हो सकती है कि राज्य के दो हिस्से करने के सवाल को संसद द्वारा क्यों नहीं सुलझाया जा सकता था। आर्टिकल 370 से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार जम्मू-कश्मीर में चुनावी लोकतंत्र बहाल करने को लेकर समयसीमा की बात कही है। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जम्मू कश्मीर का केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा कोई स्थायी चीज नहीं है और सरकार 31 अगस्त को अदालत में विस्तृत दलील देगी। पंजाब और पूर्वोत्तर राज्यों सहित देश के कई हिस्से उग्रवाद और अलगाववाद से त्रस्त रहे हैं और जम्मू-कश्मीर को इस संबंध में अलग नहीं किया जा सकता है।

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के 12वें दिन 29 अगस्त को केंद्र ने तर्क दिया कि जम्मू और कश्मीर का मामला अपने आप में अलग है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘अगर गुजरात या मध्य प्रदेश को विभाजित किया जाता है, तो पैरामीटर अलग होंगे।’ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ में शामिल जस्टिस एसके कौल ने कहा कि देश में कई राज्यों की सीमाएं दूसरे देश से लगती हैं।

जब मेहता ने जवाब दिया कि सभी पड़ोसी देश मित्रवत नहीं हैं और जम्मू-कश्मीर के इतिहास और वर्तमान स्थिति पथराव, हमले, मौतें और आतंकवादी हमले को देखते हुए इसे मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि जब आप प्रत्येक भारतीय राज्य के संबंध में केंद्र के अधिकार को मानते हैं तो यह कैसे सुनिश्चित करते हैं कि जिस तरह के दुरुपयोग की आशंका है- इस शक्ति का दुरुपयोग नहीं होगा? जस्टिस कौल ने कहा कि यह अपनी तरह की एकमात्र स्थिति नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हमने पंजाब की सीमा पर मुश्किल दौर देखा है। इसी तरह, पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में… कल अगर ऐसे हालात बनते हैं कि इनमें से प्रत्येक राज्य को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि क्या संसद के पास मौजूदा भारतीय राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में बदलने की शक्ति है?

अदालत ने यह भी कहा कि भले ही संविधान सभा की भूमिका अनुच्छेद 370 के संबंध में केवल एक सिफारिश की थी, इसका मतलब यह नहीं है कि इसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा खारिज किया जा सकता है। यही नहीं आपको बता दें कि आर्टिकल 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले का समर्थन करते हुए हरीश साल्वे ने अपनी दलील में कहा कि कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति सिर्फ कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली की सिफारिश पर ही कार्रवाई कर सकते हैं। तो क्या राष्ट्रपति की भूमिका सिर्फ कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली की इच्छा को अमलीजामा पहनाने की है या उनसे सिफारिश पाने की? निश्चित तौर पर सिफारिश की ही। अगर कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली वजूद में होती तब भी वह राष्ट्रपति को सिफारिश ही भेज सकती है। सीजेआई डीवाई की अगुआई वाली कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं।

इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि विधायी शक्तियों के बंटवारे में बदलाव के वक्त सहमति की जरूरत थी। विलय के समझौते में जिन क्षेत्रों का जिक्र है, उनसे इतर मामलों में केंद्र-राज्य की सहमति का प्रावधान है। आर्टिकल 370 (3) के तहत शक्तियों के इस्तेमाल से 370 को पूरी तरह निरस्त किया जा सकता है। सीजेआई ने यह भी कहा कि 370(1)(b) के तहत संसद को सिर्फ कुछ विशिष्ट विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है जिनका इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन में जिक्र है। बाकी में राज्य की सहमति जरूरी है। इसके जवाब में साल्वे ने कहा कि इस प्रावधान का इतिहास बताता है कि इस प्रावधान में लॉजिक ढूंढना मुश्किल होगा क्योंकि ये एक राजनीतिक समझौता था। आखिर कॉन्स्टिट्यूएंट असेंबली होनी ही क्यों चाहिए थी? इस तरह के राजनीतिक प्रावधानों की संवैधानिक व्याख्या में इस अदालत को हर मुमकिन व्यापक अर्थ देना चाहिए।