एक समय ऐसा था जब भारत और इंडिया नाम विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बयान दिया था! जी-20 से जुड़े निमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखे जाने को लेकर राष्ट्रव्यापी बहस छिड़ गई है। विपक्ष ने इस बात के लिए सरकार की आलोचना की है। इस बात को लेकर सोशल मीडिया पर इंडिया बनाम भारत को लेकर खूब चर्चा हो रही है। ऐसे में साल 2016 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रासंगिक हो गा है। साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी उद्देश्यों के लिए ‘इंडिया’ को ‘भारत’ कहे जाने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि लोग देश को अपनी इच्छा के अनुसार इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं। जी20 के लिए रात्रिभोज निमंत्रण पत्र पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ भारत की राष्ट्रपति लिखे जाने के बाद यहां इस फैसले का जिक्र जरूरी है। तत्कालीन चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर और जस्टिस यू यू ललित की पीठ ने 2016 में महाराष्ट्र के निरंजन भटवाल की तरफ से दायर जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा था, ‘भारत या इंडिया? आप इसे भारत कहना चाहते हैं, कहिये। कोई इसे इंडिया कहना चाहता है, उन्हें इंडिया कहने दीजिए।’ दोनों जस्टिस रियाटर्ड हो चुके हैं। जी20 निमंत्रण पत्र को लेकर विपक्ष की आलोचना का सामना कर रहे केंद्र ने शीर्ष न्यायालय से नवंबर 2015 में कहा था कि देश को ‘इंडिया’ के बजाय ‘भारत’ नहीं कहा जाए।
न्यायालय ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद एक में बदलाव के लिए विचार करने की खातिर ऐसी कोई परिस्थिति नहीं बनी है। संविधान के अनुच्छेद 1(1) में कहा गया है, ‘इंडिया, जो भारत है, राज्यों का एक संघ है।’ जनहित याचिका का विरोध करते हुए गृह मंत्रालय ने कहा था कि संविधान का मसौदा तैयार करने के दौरान संविधान सभा में देश के नाम पर विस्तार से चर्चा हुई थी और अनुच्छेद एक के उपबंध आम सहमति से अंगीकृत किये गये थे। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आड़े हाथ लिया था। शीर्ष अदालत ने उनसे पूछा था कि क्या उन्हें लगता है कि इसके पास करने के लिए और कुछ नहीं है, तथा उन्हें याद दिलाया था कि जनहित याचिकाएं गरीबों के लिए हैं।
पीठ ने 11 मार्च 2016 को कहा था, ‘जनहित याचिका गरीबों के लिए है। आपको लगता है कि हमारे पास करने के लिए और कुछ नहीं है। याचिका में, गैर सरकारी संगठनों और कंपनियों को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था कि सभी आधिकारिक और गैर आधिकारिक उद्देश्यों के लिए वे भारत शब्द का इस्तेमाल करें। याचिका में कहा गया था कि संविधान सभा में देश के लिए सुझाये गये प्रमुख नामों में ”भारत, हिंदुस्तान, हिंद और भारतभूमि या भारतवर्ष तथा इस तरह के अन्य नाम थे।’ आपको बता दें कि इंडिया बनाम भारत को लेकर नई बहस शुरू हो गई है. इस बहस की शुरुआत राष्ट्रपति भवन से आए निमंत्रण पत्र से हुई, जिसमें प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा था. इस निमंत्रण के सामने आने के बाद ही विपक्ष हमलावर हो गया. ‘INDIA’ गठबंधन के नेताओं का दावा है कि इंडिया या भारत वाली बहस के पीछे BJP का डर है. तो वहीं, बीजेपी नेता इसे गुलामी की मानसिकता पर चोट बता रहे हैं. खास बात ये है कि 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान मोदी सरकार ने कहा था कि देश का नाम इंडिया के बजाय भारत करने की जरूरत नहीं है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट में 2016 में ही INDIA का नाम बदलने को लेकर याचिका दाखिल की जा चुकी है. आइए जानते हैं कि तब सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
खास बात ये है कि 2015 में मोदी सरकार ने एक जनहित याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि देश का नाम इंडिया के बजाय भारत नहीं किया जाना चाहिए. तब केंद्र सरकार ने दावा किया था, ”अनुच्छेद 1 में किसी भी बदलाव पर विचार करने के लिए परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है. भारत का संविधान अनुच्छेद 1.1 आधिकारिक और अनौपचारिक उद्देश्यों के लिए देश का नाम कैसे रखा जाए, इस पर संविधान का प्रावधान कहता है, ”इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा.! मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई में कहा कि याचिकाकर्ता ने इस मामले में कोर्ट को क्यों अप्रोच किया है जबकि संविधान में साफ लिखा है कि इंडिया जो कि भारत है। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इंडिया ग्रीक शब्द इंडिका से आया है और इस नाम को हटाया जाना चाहिए। जब याचिकाकर्ता ने लगातार ये दलील रखी और सुप्रीम कोर्ट का रुख याचिका सुनने के लिए नहीं दिखा तो याचिकाकर्ता ने कहा कि इस याचिका को प्रतिवेदन के तौर पर संबंधित मंत्रालय के सामने भेजने की इजाजत दी जाए। तब सुप्रीम कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी।