ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या चीन अमरीका को पीछे छोड़ पाएगा या नहीं! करीब चार दशक से दुनिया की अर्थव्यवस्था में रोज नए रिकॉर्ड बनाने वाले चीन की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। इसके हालातों को देखकर अब लगने लगा है कि इसका वह सपना जो दुनिया की नंबर वन इकोनॉमी बनने से जुड़ा था, अब टूट जाएगा। एक रिपोर्ट की मानें तो चीन जल्द ही दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका को पीछे नहीं छोड़ पाएगा। इसके अलाव देश का आत्मविश्वास भी लगातार गिरता जा रहा है। इस कारण यह शीर्ष स्थान पर लगातार आगे नहीं बढ़ सकता। यह नई रिपोर्ट चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को और परेशान करने वाली हो सकती है। ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक अनुमान के तहत चीन की जीडीपी को अमेरिका से आगे निकलने में अभी वक्त लगेगा। यह करिश्मा साल 2040 के मध्य में ही संभव है। अगर चीन, अमेरिका को पीछे भी छोड़ देता है तो भी अंतर बहुत ही छोटा होगा और यह फिर पीछे हो जाएगा। कोविड-19 महामारी से पहले चीन को उम्मीद थी कि वह अगले दशक की शुरुआत में ही शीर्ष स्थान हासिल कर लेगा और इसे बरकरार रखेगा। ब्लूमबर्ग ने अर्थशास्त्रियों के हवाले से लिखा है कि चीन तेजी से उस रास्ते पर जा रहा है जो काफी कमजोर है।
एक रिसर्च में अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि कोविड के बाद चीन ने रफ्तार खो दी है। प्रॉपर्टी बाजार डाउन है और देश के आर्थिक प्रबंधन में विश्वास कम हो रहा है। कमजोर विश्वास देश के आर्थिक विकास पर ब्रेक लगा सकता है। अर्थशास्त्री अब चीन की अर्थव्यवस्था में विकास को साल 2030 में 3.5 फीसदी और 2050 तक करीब एक फीसदी तक धीमा कर रहे हैं। जबकि पहले यही आंकड़ा 4.3 फीसदी और 1.6 फीसदी पर था। चीन की अर्थव्यवस्था ने पिछले साल तीन फीसदी की वृद्धि दर्ज की थी। दशकों बाद चीन में यह आंकड़ा दर्ज हुआ है। महामारी के नियंत्रण के अलावा संपत्ति संकट ने देश को मुश्किल में डाल दिया।
रिकवरी ने गति खो दी है क्योंकि निर्यात में गिरावट आई है और रियल एस्टेट की मंदी गहरी हो गई है। सर्विस सेक्टर में भी गतिविधि में कमी आई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग खर्च करने से परहेज कर रहे हैं। ब्लूमबर्ग द्वारा सर्वेक्षण किए गए अर्थशास्त्रियों ने भी साल 2024 के लिए अपनी विकास दर के अनुमान को 5 फीसदी से और नीचे कर दिया है। यह रिपोर्ट तब आई है जब अमेरिका और जी7 देश आर्थिक विकास की तरफ देख रहे हैं। चीन गहरी और लंबी चुनौतियों से भी जूझ रहा है।
चीन ने पिछले साल सन् 1960 के दशक के बाद से पहली बार जनसंख्या में गिरावट दर्ज की। इससे उत्पादकता कमजोर होने की चिंता बढ़ गई है। अमेरिका और बाकी पश्चिमी सरकारों के साथ तनाव ने भी स्थिति को प्रभावित किया है। इसके विपरीत, अमेरिका कुछ महीनों पहले कई अर्थशास्त्रियों द्वारा अनुमानित से बेहतर स्थिति में नजर आ रहा है। मजबूत श्रम बाजार, मजबूत उपभोक्ता खर्च और मंदी के दौर में मुद्रास्फीति ने अर्थव्यवस्था को मंदी से बचने की क्षमता में विश्वास दिलाया है। गोल्डमैन सैक्स समूह अब अमेरिका के मंदी में जाने की 15 फीसदी संभावना देखता है, जो पहले से 20 फीसदी थी।
आपको बता दें कि जी-20 शिखर सम्मेलन को लेकर देश की राजधानी दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया गया था और सुरक्षा के भी चाक चौबंद रहे. राजधानी के कई इलाकों में लोगों की आवाजाही को भी सीमित किया गया था. साथ ही स्कूल और कॉलेज भी बंद रहे. सम्मेलन में शामिल होने आए मेहमानों के स्वागत की जिम्मेदारी केंद्रीय राज्यमंत्रियों को दी गई थी! अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक समेत कई राष्ट्राध्यक्ष शुक्रवार 8 सितंबर को ही दिल्ली पहुंच गए थे. शुक्रवार को पीएम मोदी ने मॉरीशस के पीएम प्रविंद जगन्नाथ, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ द्विपक्षीय बैठकें की थीं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस सम्मेलन में भाग नहीं लेने नहीं आए!
बता दे कि शिखर सम्मेलन के पहले सेशन में अफ्रीकी संघ को जी-20 का सदस्य बनाने संबंधी पीएम मोदी के प्रस्ताव को ग्रुप के सभी सदस्य देशों ने स्वीकार किया. पीएम मोदी ने कहा कि सबका साथ की भावना को ध्यान में रखते हुए, भारत ने अफ्रीकी संघ को जी-20 की स्थायी सदस्यता प्रदान किए जाने का प्रस्ताव पेश किया. मेरा विश्वास है कि आपकी सहमति से हम सब इस प्रस्ताव पर सहमत हैं!