क्या जी-20 समिट बनेगा मोदी सरकार का बड़ा हथियार?

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खबरों के अनुसार जी-20 समिट मोदी सरकार का बड़ा हथियार बन सकता है! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर काम को भव्यता और दिव्यता के साथ करते हैं। भारत और भारतीयों की क्षमता पर अटूट भरोसे से लबालब प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सरकार के बीते नौ सालों में कई ऐसे साहसिक फैसले लिए और उन्हें सफलतापूर्वक जमीन पर उतारा, जिनके बारे में कल्पना करना भी आसान नहीं हुआ करता था। आज दुनिया डिजिटल इंडिया की सफलता से दंग है। कोरोना की वैश्विक आपदा में वैक्सीन डिप्लोमेसी ने दुनिया को भारत का कायल कर दिया। रिकॉर्ड वक्त में देश की नई संसद बनानी हो या फिर जी20 जैसे वैश्विक आयोजन की मेजबानी, मोदी सरकार जो भी करती है, उसका अंदाज कुछ अलग होता है। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी की नए-नए माइलस्टोन तय करने की मंशा बड़ी मजबूत है। तभी तो जिस जी20 की बैठकें दुनिया के बड़े-बड़े समृद्ध देशों ने अपने दो से ज्यादा शहरों में कभी नहीं करवाईं, उसे मोदी सरकार ने भारत के 60 शहरों में करवाकर इतिहास रच दिया। भारत ने इससे पहले भी बहुपक्षीय सम्मेलन, कार्यक्रम और शिखर सम्मेलन आयोजित किए हैं। इनमें 1956 में यूनेस्को सम्मेलन, 1982 में एशियाई खेल, मार्च 1983 में प्रसिद्ध गुटनिरपेक्ष आंदोलन का शिखर सम्मेलन, 2010 में राष्ट्रमंडल खेल और 2015 में भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन। इनमें से कोई भी जी20 समिट के आयोजन की व्यापकता, भव्यता और महत्व के आसपास भी नहीं है। जरा सोचिए, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के सभी स्थायी सदस्यों के नेता, जिन्हें पी-5 देश कहा जाता है- पहली बार एकसाथ नई दिल्ली में होंगे। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नहीं आ रहे हैं, लेकिन उन्होंने क्रमशः प्रधानमंत्री ली क्वांग और विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को भेजा है।

भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन कहते हैं कि जी20 का इतना भव्य आयोजन पहले कभी नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि भारत पर दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं और जी20 सम्मेलन भारत की भूमिका के शानदार प्रदर्शन का बेहतरीन मंच है। निश्चित रूप से भारत ने जी20 की बैठकों और प्राथमिकताओं को देश के हर हिस्से में ले जाकर एक तरीके से अध्यक्षता को नई परिभाषा दे दी है जिसे अब तक किसी मेजबान ने नहीं किया है। इंडोनेशिया ने थोड़ा अलग किया था जिसमें कुछ 25 बैठकें हुई थीं, लेकिन भारत की 200 से अधिक बैठकें 60 स्थानों पर हुई हैं, जिसने आकार और पैमाने में एक नया टेम्पलेट तैयार कर दिया है। मोदी सरकार ने टियर टु शहरों में भी जी20 की बैठकें आयोजित करवाईं जिससे आम जनमानस में अपने देश के प्रति गौरव का भाव बढ़ा। इससे दुनिया के सामने भारत की विविधता और विस्तार को प्रदर्शन हुआ। एक हालिया साक्षात्कार में पीएम मोदी ने कहा कि वर्ष के दौरान 125 देशों के एक लाख प्रतिनिधियों ने भारत के जादू का अनुभव किया और 1.5 करोड़ भारतीयों ने किसी न किसी रूप में कार्यक्रमों में भाग लिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद की छवि कभी न थकने वाला, अनवरत काम करने वाले एक जनसेवक की बनाई है। उन्होंने ‘परिश्रम की पराकाष्ठा’ का मंत्र देकर खुद को प्रधान सेवक बताया। सूत्रों के मुताबिक, जी20 में भी वो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन समेत अन्य वर्ल्ड लीडर्स के साथ 15 से अधिक द्विपक्षीय बैठकें करेंगे। 8 सितंबर को पीएम मोदी मॉरीशस, बांग्लादेश और अमेरिका के नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे। 9 सितंबर को जी20 बैठकों के अलावा पीएम मोदी यूके, जापान, जर्मनी और इटली के साथ द्विपक्षीय बैठकें करेंगे और 10 सितंबर को पीएम मोदी फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के साथ वर्किंग लंच मीटिंग करेंगे। वह कनाडा के साथ एक अलग बैठक करेंगे और कोमोरोस, तुर्किये, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण कोरिया, EU/EC, ब्राजील और नाइजीरिया के साथ द्विपक्षीय बैठकें करेंगे।

भारत ने ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए न केवल आवाज बुलंद की बल्कि भारत ने जी20 की अध्यक्षता मिलते ही 125 देशों के ‘ग्लोबल साउथ वॉइस समिट’ का आयोजन किया। इससे दुनिया के ताकतवर देशों को संदेश गया कि भारत केवल वसुधैव कुटुम्बकम का सिर्फ नारा नहीं देता बल्कि इस भावाना का दिल की गहराइयों से सम्मान करता है। भारत ने 54 देशों के अफ्रीकी संघ को जी20 में शामिल करने का एजेंडा जाहिर किया है, जो भारत के गरीब देशों के नेता के रूप में दावे को बढ़ावा देगा। इससे भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के दावे को और मजबूती मिलेगी। कुल मिलाकर कहा जाए तो जी20 के आयोजन में मोदी सरकार ने जितनी बड़ी रेखा खींच दी है, वह आगे की सरकारों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगी।