बिहार की सीटों को लेकर अब नीतीश कुमार का मन डोल रहा है! बिहार के महागठबंधन में खटपट शुरू हो गई है। हालांकि बिहार के लोगों को इस पर कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है। जेडीयू नेता और बिहार के सीएम नीतीश कुमार का अतीत देख कर पहले से ही यह आशंका बनी हुई। नीतीश कुमार कब पाला बदल लें, कहा नहीं जा सकता। महागठबंधन के साथ उनका जाना ही ‘बेमेल’ है। इसकी वजह भी है। वजह है, जिस आरजेडी के विरोध के बूते नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे, आज वे उसी विरोधी पार्टी की अगुआई वाले महागठबंधन के नेता हैं। नीतीश कुमार अगर 18 साल से लगातार बिहार के सीएम बने हुए हैं तो इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला- यह कि समता पार्टी और बाद में जेडीयू बनने की कहानी का आधार ही आरजेडी का विरोध रहा है। लालू राज को ‘जंगल राज’ बता कर ही नीतीश ने लालू-राबड़ी राज को उखाड़ फेंकने में कामयाबी हासिल की थी। दूसरा- नीतीश कुमार का जातीय आधार लव-कुश समीकरण वाले वोटर रहे हैं। इसमें सर्वाधिक संख्या कुश यानी कुशवाहा वोटरों की रही है। जेडीयू से उपेंद्र कुशवाहा के अलग होने और सम्राट चौधरी के बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद नीतीश के वोटरों की संख्या अब सिर्फ स्वजातीय लव यानी कुर्मी वोटों तक ही सिमट कर रह गई है। भाजपा ने उसमें भी सेंधमारी कर दी है। आरसीपी सिंह को अपने साथ लेकर भाजपा ने नीतीश के वोट काटने का बंदोबस्त कर दिया है। आरजेडी शासन का आतंक झेल चुके जो वोटर बीजेपी और जेडीयू के साथ आए थे, वे भी नीतीश के आरजेडी के साथ जाने पर बिदके हुए हैं।
नीतीश कुमार का लंबा राजनीतिक जीवन रहा है। ऐसा नहीं है कि वे राजनीति के नौसिखिए खिलाड़ी हैं। उन्हें महागठबंधन के साथ जाने के बाद अब इस बात का अंदाजा लग गया है कि उनसे चूक तो हुई ही है। शायद यही वजह है कि जी-20 की बैठक के दौरान राष्ट्रपति की ओर से आयोजित भोज कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने शामिल होने का फैसला लिया। भोज कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की जैसी तस्वीरें सामने आई हैं, उसे देख कर किसी को भी सहज भरोसा हो जाएगा कि जेडीयू और बीजेपी में भीतरी स्तर पर कोई ‘खिचड़ी’ पक रही है। नीतीश कुमार की ओर से ऐसी तस्वीरों या भोज में शामिल होने के बारे में कोई टिप्पणी सामने नहीं आई है।
आरजेडी या बिहार के महागठबंधन में शामिल दूसरे दलों को इस बात का अनुमान है कि नीतीश का मन कभी भी बदल सकता है। अगर नीतीश को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का संयोजक बनाने की चर्चाओं पर विराम लग गया तो इससे समझा जा सकता है कि जेडीयू से इतर महागठबंधन के दूसरे घटक दल उनके बारे में क्या सोचते हैं। नीतीश कुमार दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में भोज का आनंद ले रहे थे। लालू प्रसाद यादव तीर्थाटन पर देवघर निकले। इधर आरजेडी नेता और बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव ने लोकसभा चुनाव के लिए बूथ कमेटी बनाने का टास्क सौंपने के लिए पार्टी नेताओं की बैठक बुला ली।
इस बीच एक नई बात यह सामने आ रही है कि बुधवार को दिल्ली में शरद पवार के आवास पर हो रही विपक्षी दलों की समन्वय समिति की बैठक में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह नहीं जाएंगे। ललन सिंह डेंगू से पीड़ित हैं। समन्वय समिति में आरजेडी से तेजस्वी यादव और जेडीयू से ललन सिंह के नाम हैं। तेजस्वी तो मंगलवार को ही दिल्ली रवाना हो गए, लेकिन ललन सिंह नहीं गए। ललन सिंह के बीमार होने की कोई आधिकारिक सूचना तो सार्वजनिक नहीं हुई है, लेकिन जेडीयू का हर नेता इसे उनकी बीमारी से ही जोड़ कर देख रहा है। इस बीच नीतीश कुमार का राष्ट्रपति की दावत में शिरकत करने से ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं के कान वैसे ही खड़े हो गए हैं।
बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ प्रवीण बागी कहते हैं कि नीतीश को विपक्षी गठबंधन में अपनी औकात का अंदाजा लग चुका है। वे अब किनारे होने का बहाना ढूंढ़ रहे हैं। इसके लिए वे दो बातों को आधार बना सकते हैं। पहला यह कि तेजस्वी यादव अब रेलवे में जमीन के बदले नौकरी मामले में चार्जशीटेड हैं। इसी मामले में जब पहली बार 2017 में तेजस्वी का नाम आया था तो नीतीश ने आरजेडी से पल्ला झाड़ लिया था। अब तो वे चार्जशीटेड हो गए हैं। दूसरा कारण सीटों का बंटवारा बनेगा। नीतीश कुमार को सभी सिटिंग सीटें चाहिए।
यानी बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में अकेले नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को ही 16 सीटें चाहिए। ऐसा हुआ तो 24 सीटों में ही आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों को बंटवारा करना होगा। आरजेडी किसी कीमत पर जेडीयू से कम सीटें नहीं चाहेगा। दोनों दलों के बीच अगर बराबर सीटें बंट जाएं तो 32 तो इन्हीं के खाते में चली जाएंगी। तब सिर्फ आठ सीटें कांग्रेस और वाम दलों के लिए बचती हैं। कांग्रेस ने पहले ही 10 और सीपीआई ने पांच सीटों की दावेदारी ठोंक दी है। सीट शेयरिंग ही इस बार नीतीश के ‘किनारे’ होने का बहाना बन सकता है।
बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू को 17 सीटें दी थीं। इनमें 16 सीटें जेडीयू जीत भी गया था। बीजेपी भी इतनी ही सीटों पर लड़ी थी। इस बार बीजेपी ने सहयोगी दलों की संख्या भी बढ़ा ली है। अपने लिए बीजेपी ने 30 सीटें रखी हैं। अगर सीटों का बंटवारा करना पड़ा तो अपनी सीटों में से आधी सीटें बीजेपी नीतीश कुमार को दे सकती है। इसलिए माना जा रहा है कि नीतीश आखिरकार बीजेपी खेमे के साथ ही हो जाएंगे। विपक्षी गठबंधन में सीटों के बंटवारे से असंतोष को वे आधार बनाएंगे। खैर, राजनीति में चीजें पल भर में बदल जाती हैं। इसलिए अगले कदम का इंतजार करना चाहिए।