वर्तमान में कैंसर का नया और अद्भुत ईलाज आ गया है! ब्रिटिश नैशनल हेल्थ सिस्टम ने कुछ कैंसर रोगियों के इलाज के रूप में सात मिनट के अंडर स्किन इंजेक्शन शुरू करने का फैसला किया। यह विश्व स्तर पर कैंसर के इलाज और इम्यूनोथेरेपी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इम्यूनोथेरपी एक ऐसा इलाज है जो व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को मजबूत कर देती है या बदल देती है ताकि वह कैंसर कोशिकाओं को ढूंढकर नष्ट कर सके। पिछले एक दशक में, इम्यूनोथेरपी कैंसर के इलाज में सबसे बड़ा क्रांतिकारी बदलाव बनकर उभरी है, जिससे मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट को कई कठिन इलाज या एडवांस स्टेज वाले अथवा दुर्लभ कैंसर का इलाज करने का मौका मिल रहा है। अब यह कैंसर के इलाज में सर्जरी, कीमोथेरपी, रेडियोथेरेपी और लक्षित थेरेपी के बाद पांचवें तरीके के रूप में शामिल हो गया है। अन्य थेरेपियों के साथ, इम्यूनोथेरपी ने त्वचा के कैंसर के एक आक्रामक रूप से पीड़ित रोगियों के पांच साल के जीवित रहने की दर को 50% तक बढ़ा दिया है, जो इम्यूनोथेरपी के पहले जीवित रहने की दर काफी निराशाजनक थी। यह इस सिद्धांत पर काम करता है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में कुछ नियामक होते हैं, जिन्हें ‘इम्यून चेकपॉइंट्स’ के रूप में भी जाना जाता है, जो अपने एंटीजन को हानिरहित और बाहरी एंटीजन को हानिकारक के रूप में पहचानते हैं। हालांकि, कैंसर कोशिकाओं में इन ‘इम्यून चेकपॉइंट्स’ को चकमा देने और इम्यून सिस्टम की टी-सेल रक्षा तंत्र से बचने की क्षमता होती है। वैज्ञानिकों ने विशिष्ट एंटीबॉडी विकसित की हैं जो कैंसर रोगियों के मंद पड़ चुके इम्यून सिस्टम को पुनर्जीवित कर सकती है और टी-सेल को उनके कैंसर विरोधी हमले में मदद कर सकती हैं।
टेक्सास के एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर के प्रोफेसर जिम एलिसन और क्योटो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तासुकु होनजो को वर्ष 2018 में इम्यून चेकपॉइंट CTLA-4 और PDL-I की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। यूके जल्द ही पहला देश बन जाएगा जो रोश की सब्सिडियरी कंपनी जेनेनटेक द्वारा निर्मित इम्यूनोथेरपी एजेंट एटेजोलिजुमैब को स्किन इंजेक्शन के रूप में देगा। अगर इसे नस में दिया जाता तो 30 मिनट तक या कुछ रोगियों के लिए एक घंटे तक का समय लगता। इससे कम समय और लागत में रोगियों का इलाज हो सकेगा जिससे हेल्थकेयर सिस्टम्स पर बोझ भी कम होगा।
प्रगति के बावजूद, कैंसर इम्यूनोथेरपी की वर्तमान स्थिति कुछ दशकों पहले एचआईवी थेरेपी के समान है जब उच्च आय वाले देशों में ही अत्यधिक प्रभावी दवाएं उपलब्ध थीं, भले ही यह बीमारी निम्न-मध्यम आय वाले देशों में अधिक प्रचलित थी। ऐसा नए एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी की महंगी कीमतों के कारण था। इसी तरह, इम्यूनोथेरपी कुछ कैंसर के लिए अत्यधिक प्रभावी है, लेकिन भारत जैसे देशों में अधिकांश रोगियों की पहुंच से बाहर है। यहां इम्यूनोथेरपी की मासिक लागत लाखों रुपये हो सकती है। हालांकि, कुछ वर्षों में लागत बाधा ने दुनियाभर में, सबसे विशेष रूप से भारत में, इनोवेशन को प्रेरित किया है ताकि इम्यूनोथेरपी को अधिक रोगियों के लिए सुलभ बनाया जा सके। उदाहरण के लिए, भारत के इम्यूनो-ऑन्कोलॉजी सोसाइटी ने देशभर में 1,000 से अधिक रोगियों को शामिल करने वाले एक बड़े अध्ययन में यह साबित किया है कि एक छोटी अवधि के इम्यूनोथेरपी का परिणाम पश्चिमी देशों में इन दवाओं को दो साल तक देने के समान है। मुंबई के टाटा मेमोरियल सेंटर के डॉक्टरों ने दिखाया है कि कम खुराक की निवोलुमाब थेरेपी अनुमोदित खुराक का 6% भारत में आम कैंसर सिर और गर्दन के क्षेत्र में के रोगियों का जीवनकाल बढ़ाने में प्रभावी है।
लागत के अलावा कुछ अन्य नकारात्मक पहलू भी हैं। सबसे पहले, रींबर्समेंट का मसला हो सकता है। मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज का फायदा उठाना बड़ा जटिल है कुछ इंश्योरेंस कंपनियां इलाज का खर्च उठाने के लिए 24 घंटे भर्ती होने की शर्त रखते हैं, और इसकी काफी आशंका है कि सात मिनट या थोड़ा अधिक समय तक चलने वाले इलाज के लिए कंपनियां बहुत कम रीइंबर्समेंट करेंगी। दूसरे, रोगी का वजन और अंदरूनी त्वचा के ऊतक पर निर्भर करेगा कि कोई रोगी इस उपचार को कैसे सहन कर पाता है। इसके अलावा, उन रोगियों को जिन्हें इम्यूनोथेरपी के साथ नसों के जरिए कीमोथेरेपी की आवश्यकता होती है, वो इंजेक्शन का फायदा नहीं ले पाएंगे क्योंकि उन्हें कीमोथेरेपी के लिए पहले से ही तैयार आईवी रूट से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। निश्चित रूप से किसी डॉक्टर के उत्साह पर पानी फेरने वाले कई कारक हैं। हालांकि, इंजेक्शन रूट अन्य इम्यूनोथेरपी एजेंटों जैसे निवोलुमाब और पेम्ब्रोलिज़ुमैब के साथ भी खोजा जा रहा है। वैकल्पिक तरीकों जैसे इंट्रापेरिटोनल पेट और आंतों के आसपास की बॉडी कैविटी में इंजेक्शन का भी पता लगाया जा रहा है।
अंत में, भारत और अन्य निम्न-मध्यम आय वाले देशों के संदर्भ में बात इलाज के वक्त की नहीं है, बल्कि दवाओं की कुल लागत की बड़ी चुनौती है। अभी हमें इन नए इंजेक्शनों की प्रस्तावित लागत के बारे में ठीक से पता नहीं है। यदि कीमत बहुत ज्यादा होगी, तो कम समय में इलाज का इससे होने वाला फायदा हम नहीं उठा सकेंगे। हमें लागत को कम करने और देश में इन दवाओं तक पहुंच बढ़ाने के लिए सामूहिक रूप से नई सोच के साथ काम करने की आवश्यकता है। इसमें बड़े संस्थानों की प्रमुख भूमिका होगी।