ये सवाल उठना लाजमी है कि आखिर आतंकियों को पैसे कहाँ से आते हैं! पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इतना खस्ताहाल है कि वह कई देशों में अपने स्टाफ को 3 महीने से सैलरी तक नहीं दे पा रहा। महंगाई आसमान पर है। कर्ज का ब्याज चुकाने तक के पैसे नहीं हैं। देश के डिफॉल्ट होने का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन इन सबके बावजूद अगर वहां कुछ फल-फूल रहा है तो वह है आतंकवाद, टेररफंडिंग, टेरर इन्फ्रास्ट्रक्चर। उस पर कहीं कोई आंच नहीं आया है। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में सेना के कर्नल, मेजर और जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी के शहीद होने के बाद रक्षा प्रतिष्ठानों के अधिकारियों का भी कहना है कि पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ढांचा पहले की तरह ही बना हुआ है। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई खुलकर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों की मदद कर रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तान तो कंगाल है तो आतंकियों को देने के लिए उसके पास पैसे कहां से आते हैं? टेरर फंडिंग का स्रोत क्या है? आइए समझते हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के लिए पाकिस्तानी सेना और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई खुलकर पैसे खर्च करती हैं। पाकिस्तान भले ही कंगाली के कगार पर है, बुनियादी जरूरतों को पूरा करने तक के लिए लाले पड़ रहे हैं लेकिन जम्मू-कश्मीर समेत भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए वह खुलकर पैसा खर्च करता है। आईएसआई सीधे आतंकी संगठनों को फंडिंग करती है। इसके अलावा ड्रग तस्करी के जरिए आतंकियों के पास पैसे पहुंचने में मदद करती है। 2002 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च पेपर के मुताबिक, पाकिस्तान तब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए सालाना करीब 5 लाख डॉलर यानी करीब 40 करोड़ भारतीय रुपये खर्च करता था। रिसर्च पेपर के लेखक और बीएसएफ के पूर्व कमांडर एन. एस. जसवाल ने जम्मू-कश्मीर में आतंकी फंडिंग के स्रोत के बारे में भी विस्तार से बताया है। इनमें नार्कोटेररिज्म, हवाला, फिरौती, विदेशी मदद, चैरिटी, नकली मुद्रा का कारोबार जैसे स्रोत शामिल हैं। रिसर्च पेपर के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के लिए सालाना 70 से 80 अरब डॉलर यानी 500 से 600 करोड़ रुपये की फंडिंग होती है। ये बात दो दशक पुरानी है। इसमें और इजाफा ही हुआ होगा।
जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के पास जो पैसा आता है, उसका एक छोटा सा स्थानीय स्तर पर चंदे के रूप में मिलता था। आतंकियों के खौफ की वजह से भी लोग इस तरह के चंदे देने के लिए मजबूर थे। कई बार कुछ दूसरे उद्देश्यों के नाम पर इस तरह के चंदे जुटाए जाते हैं। हालांकि, आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने के बाद इस स्रोत पर तकरीबन लगाम लग चुकी है।
‘द ब्लैक इकॉनमी इन इंडिया’ के लेखक अरुण कुमार ने अपनी किताब में लिखा है कि ड्रग प्रॉफिट का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर, पंजाब और नॉर्थ-ईस्ट में टेरर फंडिंग के लिए किया जाता है। नार्कोटिक्स और टेररिज्म का गठजोड़ ऐसा है कि इसने एक नए टर्म नार्को-टेररिजम को जन्म दिया है। यह टेरर फाइनैंसिंग का सबसे पुराना और प्रमुख स्रोत है। नार्को-टेररिज्म काफी समय से पाकिस्तान का एक बड़ा औजार रहा है। सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के दौर से ये चलता आ रहा है। जिया उल हक ने ये व्यवस्था की थी कि ड्रग तस्करी से होने वाली काली कमाई का एक बड़ा हिस्सा कश्मीर में ‘जिहादी’ और आतंकवादी गतिविधियों के लिए दिया जाता है। जिया की मौत के बाद भी ये सिलसिला चलता आ रहा है। जामवाल ने अपने रिसर्च पेपर में लिखा है कि पाकिस्तान में आईएसआई के नियंत्रण वाले नार्कोटिक स्मगलरों की कमाई 2.5 अरब डॉलर से भी ज्यादा है। यूनाइटेड नेशंस डिवेलपमेंट प्रोग्राम UNDP की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि पाकिस्तान में हेरोइन इंडस्ट्री का टर्नओवर करीब 74 अरब डॉलर का है।
फिरौती या जबरन वसूली कभी आतंकियों की फंडिंग का एक बड़ा स्रोत हुआ करती थी। कई बिजनसमैन, दुकानदार, सरकारी कर्मचारियों, ठेकेदारों या आर्थिक रूप से मजबूत व्यक्ति आतंकियों का आसान शिकार होते थे। इनसे जबरन वसूली से जो पैसे मिलते थे उनका इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए होता था। कश्मीर के कुछ कारोबारी तो खुलकर टेरर फंडिंग किया करते थे। हालांकि, अब इन पर बहुत हद तक लगाम लगी है। 2017 में एनआईए ने जम्मू-कश्मीर के एक बड़े कारोबारी जहूर वटाली को टेरर फंडिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था। वह तब से जेल में है। उसकी करोड़ों की संपत्ति अटैच की जा चुकी है।
हवाला गैरकानूनी है। इसके जरिए पैदा होने वाली ब्लैक मनी का एक बड़ा हिस्सा आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग में इस्तेमाल होता है। भारत और दूसरे एशियाई देशों में हवाला का अवैध कारोबार काफी समय से वजूद में है। भारत में इसे हवाला, पाकिस्तान में इसे हुंडी और चीन में फेई कियान जैसे नामों से जाना जाता है। हवाला बैंकों के समानांतर चलने वाला एक अंडरग्राउंड सिस्टम है। इसमें सिर्फ एक फोन कॉल, टेक्स्ट मेसेज के जरिए पैसे को एक जगह से दूसरे जगह तक ट्रांसफर किया जा सकता है। पैसे का स्रोत क्या है, भेजने वाला कौन है, पाने वाला कौन है, किस उद्देश्य से पैसा भेजा गया, लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसियों को इसका कहीं कोई सबूत नहीं मिलता। हवाला के अवैध कारोबार से जुड़े कई डीलरों ने जम्मू-कश्मीर में थोक या खुदरा कारोबार को फ्रंट के तौर पर रखते हैं ताकि वो आतंकियों तक पैसे को डायवर्ट कर सकें।