Friday, October 18, 2024
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आखिर देश में पिछले कुछ सालों में कितनी बढ़ चुकी है महिलाओं की हिस्सेदारी?

आज हम आपको बतायेंगे कि पिछले कुछ सालों में महिलाओं की हिस्सेदारी देश में कितनी बढ़ी है! देश की नई संसद ने 19 सितंबर को अपने सांसदों का स्वागत किया। 19 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र और आगे के सत्र भी अब यहीं होंगे। पहले दिन विपक्ष के शोर-सराबे के बीच लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हो गई। इस बीच सरकार ने राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बने महिला आरक्षण बिल को भी पेश कर दिया गया। नाम दिया गया नारी शक्ति वंदन अधिनियम। इस बिल के आने के बाद लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा। इस बिल का विपक्ष ने स्वागत तो किया लेकिन किसी ने इसे 2024 के चुनाव से जोड़ दिया तो किसी ने इसकी देरी पर सवाल उठा दिया। महिला आरक्षण को लेकर चर्चा पुरानी है। मोदी सरकार ने अपने 9 साल के कार्यकाल में इसे एक बार और ला चुकी है लेकिन यह पास नहीं हो सका था। कांग्रेस के समय में भी इसपर खूब चर्चा हुई। यह भी बता दें कि 2026 के पहले इसे लागू नहीं कराया जा सकता। हालांकि 2024 के पहले मोदी सरकार के लिए एक बड़ा मुद्दा है जिसे भुनाना उन्हें बखूबी आता है। जनगणना और परिसीमन के बाद ही इसपर कुछ हो सकता है। तो अभी इसका इंतजार बढ़ेगा। आज हम आपको महिला आरक्षण पर जानकारी परख बात बताएंगे। भारत ही नहीं दुनिया के बाकी देशों में महिलाओं की भागीदारी पर भी बात करेंगे। नारी शक्ति वंदन अधिनियम को लोकसभा में पेश कर दिया गया। आज लोकसभा में चर्चा के बाद इसपर वोटिंग होगी और 20 सितंबर को राज्यसभा में इसपर चर्चा होगी। बिल के कानून के शक्ल लेने के बाद भी इसे तुरंत लागू कराना मुश्किल है। जनगणना और परिसीमन के बाद ही यह कानून लागू हो सकता है। जनगणना में भी 2 साल लग सकते हैं। जबतक जनगणना नहीं हो जाती तबतक परिसीमन भी मुश्किल है। यानी 2026 तक इसपर कोई भी डेवलेपमेंट होना मुश्किल है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम को 2027 में 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव या 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद ही लागू किया जा सकेगा।

इस कानून को लागू कराने के लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी होगी। संविधान के आर्टिकल 368 के मुताबिक, इस कानून को लागू कराने के लिए कम से कम 50 फीसदी राज्यों की सहमति जरूरी है। अभी के ताजा हाल की बात करें तो देश के 16 राज्यों में एनडीए की सरकार है, 11 राज्यों में विपक्ष गठबंधन की सरकारें हैं और 3 राज्यों में अन्य दलों की सरकारे हैं। इसे लागू कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि, ज्यादातर इस बिल के पक्ष में हैं। अब सवाल है कि महिला आरक्षित सीट तय कैसे होंगी? इसका भी उत्तर है। यह भी 2026 के बाद ही तय हो पाएगा। इसके बाद ही तय हो पाएगा कि महिलाओं के लिए कौन-कौन सी सीटें आरक्षित होंगी। परिसीमन जब-जब होगा तब-तब सीटें बदलती रहेंगी।

देश की संसद में महिला आरक्षण बिल पर चर्चा हो ही रही है तो आपको यह भी बता देते हैं कि पिछले 20 सालों में महिला प्रत्याशी और सांसदों की संख्या बढ़ी हैं। आंकड़े बताते हैं कि 3 साल में पुरुषों से ज्यादा महिला वोटर जुड़ी हैं। वहीं, 20 साल में महिला प्रत्याशी 152 फीसदी और 59 फीसदी महिला सांसद बढ़ी हैं। 2019 से 2022 के बीच 5 फीसदी महिला और 3.6 फीसदी पुरुष मतदाता बढ़े हैं। 2019 की ही बात करें तो लोकसभा चुनाव में महिलाओं का वोट प्रतिशत भी पुरषों से ज्यादा रहा है। यह भी देखा गया है कि पिछले 30 सालों के डेटा की बात करें तो 92 विधानसभा चुनावों में महिला प्रत्याशियों के जीतने की क्षमता 13 फीसदी तो पुरुषों की क्षमता 1 फीसदी ही रही। यह भी देखा गया है कि जहां-जहां महिला सांसदों की संख्या ज्यादा है वहां भ्रष्टाचार भी कम होता है। इसे लेकर एक शोध जर्नल ऑफ इकोनॉमिक्स बिहेवियर एंड ऑर्गेनाइजेशन में छपा था।

रवांडा, क्यूबा और निकारागुआ एकमात्र ऐसे देश हैं जहां महिला विधायकों की संख्या पुरुष विधायकों से अधिक है। मेक्सिको और न्यूजीलैंड में, निचले सदन में दोनों लिंगों का समान प्रतिनिधित्व है। फिनलैंड, आइसलैंड और स्कैंडिनेवियाई देशों में धनी देशों में महिला विधायकों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। भारत और जापान बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे नीचे हैं। भारत में एक महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, दो महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और द्रौपदी मुर्मू और कुल 15 महिला मुख्यमंत्री रही हैं। 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में कभी भी महिला मुख्यमंत्री नहीं रहीं। दिल्ली और उत्तर प्रदेश एकमात्र ऐसे राज्य हैं जहां दो-दो महिला मुख्यमंत्री रही हैं। महिला मुख्यमंत्रियों में बंगाल की ममता बनर्जी और दिल्ली की दिवंगत शीला दीक्षित और तमिलनाडु की जयललिता का कार्यकाल सबसे लंबा रहा है।

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