आज हम आपके पर्सनालिटी राइट्स के बारे में बताने जा रहे हैं! दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में बॉलिवुड ऐक्टर अनिल कपूर के पर्सनैलिटी राइट्स यानी व्यक्तित्व के अधिकारों की रक्षा का आदेश दिया है। कोर्ट ने ऐक्टर के नाम, तस्वीर, आवाज, फिल्मों में निभाए गए उनके किरदार, उनके चर्चित फिल्मी डायलॉग समेत उनके व्यक्तित्व की अन्य विशेषताओं का व्यवसायिक फायदे के खातिर दुरुपयोग पर रोक लगा दी। अब अनिल कपूर की इजाजत के बिना ‘झकास’ जैसे उनके चर्चित डायलॉग, मिस्टर इंडिया या मजनू भाई जैसे उनके किरदारों के नाम, उनकी आवाज, तस्वीर वगैरह का इस्तेमाल नहीं हो सकता। एक साल पहले ‘सदी के महानायक’ अमिताभ बच्चन भी पर्सनैलिटी राइट्स की रक्षा के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था। बात सिर्फ व्यवसायिक फायदे के लिए जानी-मानी हस्तियों की पर्सनैलिटी से जुड़ी चीजों के दुरुपयोग की नहीं है। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों के जरिए किसी भी सिलेब्रिटी की आवाज को हूबहू कॉपी किया जा सकता है, फेक वीडियो तक बनाया जा सकता है, ऐसा ऑडियो-वीडियो कंटेंट बनाया जा सकता है जो पूरी तरह असली जैसा लगे। ऐसे में एआई जैसी तकनीक से मशहूर हस्तियों की तस्वीरों, आवाज वगैह के दुरुपयोग का खतरा और बढ़ गया है। पर्सनैलिटी राइट किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की रक्षा से जुड़े अधिकार हैं। संविधान में अलग से पर्सनैलिटी राइट जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। यह अनुच्छेद 21 के तहत मिले प्राइवेसी के अधिकार के तहत ही आता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं। संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए अलग से कोई मौलिक अधिकार नहीं दिया गया है जबकि यह अनुच्छेद 19 (1) ए के तहत सभी नागरिकों को मिले बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार का ही हिस्सा है। इसी तरह आसान शब्दों में कहें तो पर्सनैलिटी राइट्स किसी व्यक्ति की निजी जिंदगी से जुड़ी प्राइवेसी की रक्षा करने वाले अधिकार हैं। पर्सनॉलिटी राइट्स प्राइवेसी यानी निजता के अधिकार का ही हिस्सा है। इसके अलावा कॉपीराइट, ट्रेडमार्क जैसे इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट भी पर्सनैलिटी राइट्स की रक्षा के काम आते हैं।
पर्सनैलिटी राइट वैसे तो हर किसी के होते हैं लेकिन बड़ी और महशूर हस्तियों के मामले में यह काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। वजह ये है कि इन सिलेब्रिटीज के नाम, फोटोग्राफ या यहां तक की आवाज का भी तमाम विज्ञापनों में दुरुपयोग हो सकता है। इससे उनकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंच सकती है। आर्थिक नुकसान हो सकता है। आपने भी ध्यान दिया होगा कि कोई गन्ने के जूस की दुकान हो या फिर चौक-चौराहे की छोटी-मोटी दुकानें, उस पर फिल्मी सितारों की तस्वीरें आसानी से दिख सकती हैं। यह भी पर्सनैलिटी राइट्स का उल्लंघन है। लेकिन जब छोटी-मोटी कंपनियां अपनी सेल्स बढ़ाने के लिए सिलेब्रिटीज से जुड़ी चीजों, उनकी तस्वीरों, आवाज वगैरह का दुरुपयोग करने लगती हैं तो मामला गंभीर हो जाता है। ऐसे में इन सिलेब्रिटीज को अपने पर्सनैलिटी राइट्स की रक्षा के लिए अपने नाम को रजिस्टर कराना जूरूरी हो जाता है। ऐसी सिलेब्रिटी के नाम, निकनेम, तस्वीरें, उनकी नकल, आवाज वगैरह के दुरुपयोग पर रोक जरूरी है।
पर्सनैलिटी राइट्स में मुख्य तौर पर दो अधिकार समाहित हैं। पहला राइट ऑफ पब्लिसिटी यानी प्रचार का अधिकार। इसके तहत किसी व्यक्ति की तस्वीर या उससे जुड़ी चीजों का बिना उसकी इजाजत या उसके साथ कॉन्ट्रैक्ट के बिना कॉमर्शियल इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। राइट ऑफ पब्लिसिटी बहुत हद तक ट्रेडमार्क की तरह ही है लेकिन इसे ट्रेडमार्क नहीं कह सकते। दूसरा अधिकार है राइट टु प्राइवेसी यानी निजता का अधिकार। यानी व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
कॉपीराइट ऐक्ट 1957 भी पर्सनैलिटी राइट्स की रक्षा करता है। किसी व्यक्ति की मेहनत का फायदा उसकी मर्जी के बिना कोई दूसरा नहीं उठा सकता। अगर ऐसा है तो कॉपीराइट ऐक्ट उसके हितों की रक्षा के लिए है।
ट्रेडमार्क भी पर्सनैलिटी राइट्स की रक्षा का एक अहम उपाय है। इंडियन ट्रेडमार्क ऐक्ट, 1999 की धारा 14 के तहत किसी के व्यक्तिगत नाम और उसके रिप्रेजेंटेशन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
मद्रास हाई कोर्ट ने 2015 में सुपर स्टार रजनीकांत की याचिका पर उनके पर्सनैलिटी राइट्स की रक्षा के आदेश दिए थे।
2022 में अमिताभ बच्चन ने भी दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि कई कंपनियां उनकी इजाजत के बिना उनके नाम, आवाज और व्यक्तित्व का इस्तेमाल कर रही हैं। उन्होंने इस पर रोक लगाने की मांग की थी। अमिताभ बच्चन ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीर के साथ एक लॉटरी का विज्ञापन भी चल रहा है। उस पर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ का लोगो भी लगा हुआ है। इसका उद्देश्य लोगों को गुमराह करना है। तब हाई कोर्ट ने इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स से उन ऑनलाइन लिंक्स को हटाने का आदेश दिया था जो अमिताभ बच्चन की पर्सनैलिटी राइट्स का उल्लंघन कर रहे थे।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि अभिव्यक्ति की आजादी सुरक्षित है, लेकिन जब यह ‘सीमा पार करती है’ और किसी के व्यक्तित्व संबंधी अधिकारों को खतरे में डालती है, तो यह गैरकानूनी हो जाती है। हाई कोर्ट ने कहा, ‘वादी के नाम, आवाज, संवाद और तस्वीरों का अवैध तरीके से और व्यवसायिक उद्देश्य से इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट किसी के व्यक्तित्व की विशेषताओं के ऐसे दुरुपयोग पर आंख मूंदकर नहीं बैठ सकता।’ अदालत ने कहा कि ‘व्यक्ति को ख्याति के साथ नुकसान भी झेलने पड़ते हैं’ और यह मामला दिखाता है कि ‘प्रतिष्ठा और ख्याति नुकसान में बदल सकती है’, जिससे प्रचार का उसका अधिकार प्रभावित हो सकता है।