Monday, December 23, 2024
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आखिर कनाडा में कैसे मिली खालिस्तानियो को जगह?

ये सवाल उठना लाजमी है कि आखिर खालिस्तानियो को कनाडा में जगह कैसे मिली! चमचमाती काले रंग की कार, हाथ में .32 बोर की बंदूक, साथ में चलता गैंग और पीछे पुलिस ये किसी क्राइम ड्रामा फिल्‍म का सीन नहीं। कनाडा में बसे पंजाबी रैपर शुभ के हिट गाने ‘We Rolling’ के लिरिक्‍स हैं। दो साल पहले रिलीज हुआ यह गाना यूट्यूब पर 207 मिलियन से ज्यादा व्यूज़ बटोर चुका है। वह बात अलग है कि शुभ की ‘कूल बैड बॉय’ की इमेज को इस हफ्ते एक के बाद एक झटके लगे। विराट कोहली और केएल राहुल जैसे क्रिकेटर्स ने उन्‍हें X पहले ट्विटर पर फॉलो करना बंद कर दिया। शुभ का भारत के कई शहरों में होने वाला टूर कैंसिल हो गया। उनकी स्पांसरशिप वापस ले ली गई। इन सबके पीछे कुछ महीने पहले की एक घटना है। शुभ ने इंस्‍टाग्राम पर भारत का गलत मैप लगाकर प्रो-खालिस्‍तानी पोस्ट करते हुए ‘Pray for Punjab’ कैप्‍शन दिया था। बाद में पोस्ट डिलीट कर दी मगर नुकसान तो हो चुका था। पीएम जस्टिन ट्रूडो ने कनाडाई संसद में भारत पर खालिस्तान टाइगर फोर्स के प्रमुख हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया। भारत ने ‘बेहूदा’ करार देखकर आरोपों को सिरे से नकारा। कुछ दिन के भीतर, दोनों देशों के डिप्लोमैटिक रिश्ते रसातल में पहुंच गए हैं। जाहिर है शुभ को इसकी चपेट में आना ही था। आखिर शुभ जैसों का खालिस्तान आंदोलन से कितना जुड़ाव है?

पॉप कल्चर, खासकर रैप म्यूजिक ने खालिस्तानी प्रॉपेगैंडा फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रैपर शुभ अकेले नहीं हैं जिन्होंने खालसा की भावना को बढ़ावा दिया और हिंसा का महिमामंडन किया। कनाडा में बसे कई सिंगर जिनके बड़ी संख्या में फॉलोअर्स हैं, जैसे ‘ब्राउन मुंडे’ फेम पंजाबी गायक एपी ढिल्लों। उन्‍होंने भी इसी तरह की पोस्ट साझा की थी, जिसे बाद में हटा दिया। जैजी बी का गाना ‘पुत्त सरदार दे’ और सिद्धू मूसेवाला का ‘SYL’ उग्रवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले और गैंगस्टर कल्चर का महिमामंडन करता है, जिसे अक्सर गलती से सिख समुदाय से जोड़ दिया जाता है। कनाडाई पत्रकार रेनू बख्शी बताती हैं कि कैसे ‘पंजाबी लड़के एक कठोर पितृसत्ता के कंट्रोल वाले टेस्टोस्टेरोन से भरे वातावरण में बड़े होते हैं।” पितृसत्ता से हिंसा की तरफ छलांग उन्‍हें छोटी लगती है।

भारत में खालिस्तान आंदोलन और सिखों के लिए एक अलग राज्य के आइडिया को खास भाव नहीं मिला। फिर कनाडाई प्रवासी इसके प्रति इतने आकर्षित क्यों हैं? इसकी एक वजह अन्याय की कथित भावना है। विक्टोरिया यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई इतिहास के प्रफेसर नीलेश बोस का कहना है कि खालिस्तान के विचार के पीछे ड्राइविंग फोर्स यह धारणा है कि भारत ने अलग-अलग टाइम में सिखों को नुकसान पहुंचाया है या उनके साथ अन्याय किया है, जैसे कि 1984 या उसके बाद। उन्होंने कहा, ‘यह एक अलग देश की मांग नहीं बल्कि न्याय की तलाश है जिसका मौजूदा प्रक्रियाओं या विकल्पों में कोई रास्ता नहीं दिखता।’ लेकिन बोस कहते हैं कि ऐसी भावनाएं प्रवासी भारतीयों के एक छोटे से अल्पसंख्यक वर्ग तक ही सीमित हैं।

सिखों के लिए, महाराजा रणजीत सिंह का शासनकाल संप्रभुता और स्वशासन के स्वर्णिम काल का प्रतिनिधित्व करता है। शिक्षाविदों का कहना है कि सिख पहचान के बारे में सवाल विभाजन के तुरंत बाद शुरू हुए जब सिखों को लगा कि उन्हें जल्द ही राहत मिल गई है। पंजाब हरित क्रांति का जन्मस्थान और देश की रोटी की टोकरी बन गया, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझना रहा। यह असंतोष की भावना थी जिसे उग्रवादी भिंडरावाले ने भुनाया। 1984 की उथल-पुथल वाली घटनाओं – ऑपरेशन ब्लूस्टार और सिख विरोधी दंगों – के बाद सिखों को लगा कि उन्हें न्याय नहीं मिला है। इसके बाद 1985 में एयर इंडिया पर बमबारी हुई जिसमें 329 लोग मारे गए लेकिन अपराधियों को कभी सजा नहीं दी गई।

दोनों घटनाएं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रचार का चारा बन गई हैं। उदाहरण के लिए, महाराजा रणजीत सिंह और भिंडरावाले की जय-जयकार करने वाले और लोगों से हथियार उठाकर ‘शुद्ध भूमि’ की तलाश करने का आग्रह करने वाले वीडियो प्रसारित किए जा रहे हैं। लोगों को भड़काने के लिए वीडियो में 84 के दंगों की हिंसा के दृश्यों का भी इस्तेमाल किया गया है।

पिछले साल गेटवे हाउस की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे अमेरिका स्थित सिख फॉर जस्टिस ने X पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की प्रॉपेगैंडा मशीनरी का फायदा उठाया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘स्पष्ट रूप से, यह एक बार की गई कोशिश नहीं थी। बल्कि रणनीतिक रूप से तैयार किए गए प्‍लान का हिस्सा था। पंजाब चुनावों को प्रभावित करने की नीयत से इसी अप्रोच का इस्तेमाल किया गया था।’ सूचना सुरक्षा स्टार्ट-अप इनेफू की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि पाकिस्तान से निकलने वाले फर्जी और प्रॉक्सी खातों का इस्तेमाल 1984 के सिख विरोधी दंगों और कृषि विरोधी कानून विरोध प्रदर्शनों से संबंधित भारत विरोधी कहानी फैलाने के लिए किया गया था।

हडसन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह के प्रयास चिंताजनक हैं क्योंकि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी खालिस्तान समर्थक समूहों को वित्तीय और संगठनात्मक रूप से सहायता कर सकती है। इसमें कहा गया है, ‘उत्तरी अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और यूरोप में खालिस्तानी और कश्मीरी समूहों के बीच सहयोग तेजी से स्पष्ट हो गया है।’ उदाहरण के लिए, अगस्त 2020 में, खालिस्तानी और कश्मीरी कार्यकर्ताओं ने भारत के खिलाफ न्यूयॉर्क में प्रदर्शन किया, और सितंबर 2019 में, कार्यकर्ताओं ने संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में सिस्‍टमैटिक सुधार की मांग करने वाले ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन की छवियों और नारों को हथिया लिया। वाशिंगटन डीसी, ह्यूस्टन, ओटावा, लंदन और अन्य यूरोपीय राजधानियों में खालिस्तानी और कश्मीरी अलगाववादियों का संयुक्त विरोध प्रदर्शन हुआ है। खालिस्तान में जनमत संग्रह और भारतीय राजनयिकों और अधिकारियों पर हमले के आह्वान की भारत ने कड़ी निंदा की है।

ORF की एक रिपोर्ट बताती है कि पाक फैक्‍टर के अलावा, कनाडा के कुछ गुरुद्वारों पर खालिस्तानियों का मजबूत नियंत्रण है। चूंकि गुरुद्वारे समुदाय का एक आधार हैं, फिर चाहे वह विवाह हो, धार्मिक अनुष्ठान हों, सामाजिक कार्य हों, या आध्यात्मिक गतिविधियां हों, यह उन्हें समुदाय से संबंधित सभी मामलों में एक शक्तिशाली अधिकार देता है। साथ ही दान के माध्यम से इस उद्देश्य के लिए धन मुहैया कराता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पैसा और सिख वोटों पर प्रभाव भी उन्हें राजनीतिक रूप से एक शक्तिशाली ताकत बनाता है।

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