क्या लालू परिवार ED से हो चुका है बेखौफ?

0
111

वर्तमान में लालू परिवार ED से बेखौफ हो चुका है! रेलवे में जमीन के बदले नौकरी मामले में तेजस्वी यादव का नाम आने के बाद बिहार की राजनीति में नये सिरे से उफान आ गया है। भाजपा नेताओं ने तो तेजस्वी के खिलाफ हल्ला बोल अभियान ही छेड़ दिया है। बदले हालात में सियासी उलट-फेर की संभावनाएं भी जताई जाने लगी हैं। माना जा रहा है कि आरजेडी नेताओं के हड़काऊ और बेढंगे बोल ने नीतीश को पहले से ही असहज कर दिया था। हालांकि तेजस्वी के उलझने के बाद ऐसे लोगों की नीतीश के खिलाफ फिलहाल बोलती बंद है। अब तो आरजेडी नेता नीतीश से भय भी खाने लगे हैं कि कहीं वे फिर आरजेडी को मंझधार में न छोड़ दें। हालांकि बिहार की सियासत को समझने वाले मानते हैं कि तेजस्वी यादव के खिलाफ सीबीआई एक्शन से उनके वोटरों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बल्कि वे और अधिक ताकतवर होंगे। तेजस्वी यादव सीबीआई की कार्रवाई को क्या हल्के ढंग से ले रहे हैं? आरजेडी को करीब से जानने वालों का मानना है कि यह सब होते-जाते रहता है। इससे डरने की जरूरत नहीं। यह काफी हद तक सच भी है। तेजस्वी और उनके भाई-बहनों ने बचपन से ही घर में सीबीआई, इनकम टैक्स और ईडी के अफसरों को आते-जाते देखा है। इसलिए आम आदमी की तरह तो उन्हें भय नहीं ही लगता होगा। अलबत्ता गंभीरता से सोचने पर उन्हें बुढ़ापे में पिता के जेल जाने और लंबा वक्त जेल में गुजारने का भय जरूर सताता होगा, जिसे वे जाहिर करना नहीं चाहते होंगे। उनकी समझ बस इतने भर की है कि भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता बनाने में आरजेडी नेताओं, खासकर लालू यादव और तेजस्वी की जो भूमिका रही है, उससे भयभीत होकर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ऐसी कार्रवाई कर रही है।

यह भी सच है कि तेजस्वी यादव इस मामले में सीधे आरोपी नहीं हैं। उनका नाम पूरक चार्जशीट में आया है। जिस वक्त का मामला है, उस समय तेजस्वी की उम्र भी उतनी नहीं थी, जिससे उन्हें ज्ञात हो कि उनके नाम पर कौन कितनी जमीन दे रहा है और क्यों दे रहा है। लालू के रेल मंत्री रहते साल 2004 से 2009 के बीच का यह मामला है। तब तेजस्वी की उम्र 14 से 19 साल के बीच रही होगी। वे तब राजनीति का ककहरा भी नहीं जानते थे। घोटाले का दोष अगर सिद्ध भी होगा तो लालू यादव और अधिक से अधिक उनकी पत्नी पूर्व सीएम राबड़ी देवी ही फंसेंगी। तेजस्वी यादव का बाल भी बांका नहीं होगा। तेजस्वी के आत्मविश्वास की वजह भी यही है। सीबीआई की राउज एवेन्यू कोर्ट ने रेलवे में नौकरी के लिए जमीन मामले में लालू यादव, राबड़ी देवी, मीसा भारती और तेजस्वी यादव को 4 अक्तूबर को पेशी के लिए कहा है। लालू, राबड़ी, तेजस्वी, मीसा भारती समेत 17 लोगों को इस मामले में आरोपी बनाया गया है। रेलवे के तीन अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई हो रही है।

भाजपा के राज्यसभा सदस्य और बिहार के पूर्व डेप्युटी सीएम सुशील कुमार मोदी का कहना कि जनता दल यूनाइटेड (JDU) के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष और दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने सबसे पहले तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को इस घोटाले की जानकारी दी थी। उन्होंने इसके पुख्ता प्रमाण भी मनमोहन सिंह को दिए थे और इसकी जांच की मांग की थी। सीबीआई से इसकी जांच कराई गई तो मामला उजागर हुआ। मोदी का कहना है कि जो पुख्ता प्रमाण सीबीआई को उपलब्ध कराए गए हैं, उस पर निश्चित ही कोई बड़ा फैसला आ सकता है। इसके लिए कोर्ट के फैसले का इंतजार करना होगा। अभी तो सीबीआई ने सिर्फ समन भेजा है। आने वाले समय में इसका परिणाम देखने को मिलेगा।

जानकार मानते हैं कि तेजस्वी यादव अपने लोगों को समझाने में कामयाब रहे हैं कि केंद्रीय जांच एजेंसियां राजनीतिक कारणों से उन्हें और उनके परिवार के लोगों को परेशान कर रही हैं। इसलिए यह मानना कि सीबीआई के शिकंजे में आने से तेजस्वी की ताकत घट जाएगी, उचित नहीं होगा। वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि ‘बिहार की राजनीति जाति के आधार पर चलती आई है। लालू यादव ने मंडल कमीशन की सिफारिशों का समर्थन कर इसे और विस्तार दिया। इसका फल भी उन्हें मिला। लगातार 15 साल तक बिहार में लालू परिवार का राज रहा। लालू यादव ने यादव-मुस्लिम का ऐसा समीकरण बनाया, जो आज भी बरकरार है। अलबत्ता पिछड़ी और दलित जातियों में उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं के उभार ने लालू की सियासी धार थोड़ी कुंद जरूर कर दी है, लेकिन इस भरपाई के लिए आरजेडी ने छह दलों का महागठबंधन बना लिया है। इसलिए तेजस्वी की राजनीति को सीबीआई की कार्रवाई से धार ही मिलने की संभावना बनती है। तेजस्वी ने इन आरोपों के बावजूद साल 2020 के विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक सीटें लाकर अपनी क्षमता सिद्ध कर दी है।’