क्या मध्यप्रदेश चुनावों में होने वाला है बड़ा उलट फेर?

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मध्यप्रदेश चुनावों में अब बड़ा उलट फेर देखने को मिल सकता है! मध्यप्रदेश में दो महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। इस समय राज्य में सबसे ज्यादा अटकलें सीएम शिवराज सिंह चौहान को लेकर लगाई जा रही हैं। हाल ही में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी कुछ ऐसे बयान दिए हैं जिस कारण से सस्पेंस बढ़ गया है। मध्यप्रदेश की सियासत पर सत्ता में कौन बैठेगा यह जनता को तय करना है, लेकिन बीजेपी इस चुनाव में कई प्रयोग कर रही हैं। इसी बीच पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने तीन ऐसे बयान दिए हैं जिसके बाद से कयासों का दौर एक बार फिर से शुरू हो गया है। कैलाश विजयवर्गीय को बीजेपी ने इस बार इंदौर-1 से उम्मीदवार बनाया है। कैलाश विजयवर्गीय लंबे समय बाद चुनावी मैदान में हैं। इससे पहले वो संगठन के काम में व्यस्त थे। कई राज्यों का प्रभार कैलाश विजयवर्गीय के पास था। विधानसभा चुनाव का टिकट देकर बीजेपी ने चौंका दिया, खुद कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि उन्हें उम्मीद ही नहीं कि पार्टी उन्हें कैंडिडेट बनाएगी।

विधानसभा चुनाव का टिकट मिलने के बाद कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर-1 की जनता से मुलाकात का सिलसिला शुरू किया। इस दौरान कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि मैं सिर्फ विधायक बनने के लिए यहां नहीं आया हूं। उनके इस बयान के बाद सियासी अटकलें तेज हो गईं। लोगों में ये चर्चा शुरू हो गई कि अगर बीजेपी सत्ता में वापसी करती है तो कैलाश विजयवर्गीय मुख्यमंत्री बन सकते हैं।मध्यप्रदेश की सियासत में अटकलों का दौर सीएम शिवराज सिंह चौहान को लेकर लगाया जा रहा है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि राज्य में सत्ता की वापसी होने पर शिवराज सिंह चौहान को सीएम नहीं बनाया जाएगा। सीएम शिवराज भी सीहोर जिले के एक कार्यक्रम में यह कह चुके हैं कि जब मैं चला जाऊंगा तो बहुत याद आऊंगा।

कैलाश विजयवर्गीय के पहले बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में अटकलों का दौरा शुरू हुई इसी बीच उन्होंने दूसरा बयान दे दिया। कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि मैं भोपाल से इशारा करूंगा और यहां काम हो जाएगा। भोपाल से इशारा करने का मतलब है राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद कैलाश विजयवर्गीय को कोई बड़ा पद दिया जा सकता है।

कैलाश विजयवर्गीय ने बड़ी जिम्मेदारी का मिलने का संकेत तभी दिया था जब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की टीम में उन्हें महामंत्री बनाया गया था। कैलाश विजयवर्गीय चौथी बार महामंत्री बने थे। इस दौरान उन्होंने बयान दिया था कि नड्डा ने मुझसे कहा था कि मैं तु्म्हें बड़ी जिम्मेदारी देना चाहता था पर फिलहाल यही दे रहा हूं। इस बयान के बाद भी मध्यप्रदेश की सियासत गर्म हो गई थी। मध्यप्रदेश की सियासत में अटकलों का दौर सीएम शिवराज सिंह चौहान को लेकर लगाया जा रहा है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि राज्य में सत्ता की वापसी होने पर शिवराज सिंह चौहान को सीएम नहीं बनाया जाएगा। सीएम शिवराज भी सीहोर जिले के एक कार्यक्रम में यह कह चुके हैं कि जब मैं चला जाऊंगा तो बहुत याद आऊंगा। बता दें कि निर्वाचन आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव तरीखों का एलान कर दिया। मध्य प्रदेश में एक चरण में 17 नवंबर को मतदान होगा। वहीं नतीजे एक साथ तीन दिसंबर को घोषित होंगे। राज्य विधानसभा का कार्यकाल छह जनवरी को समाप्त हो रहा है।

पांच चुनावी राज्यों में से मध्यप्रदेश अकेला राज्य है, जहां वर्तमान में भाजपा की सरकार है। लिहाजा पार्टी अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए जोर लगाने में जुटी हुई है। कांग्रेस, आप, सपा, बसपा भी चुनाव प्रचार में अपनी ताकत झोक रहे हैं। ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति क्या है? मुख्यमंत्री पद के चेहरे कौन-कौन से हैं? चुनाव प्रचार में बड़े चेहरे कौन-कौन से हैं? चुनाव के बड़े मुद्दे क्या हैं? किन-किन के बीच मुकाबला है? इस बार 2018 के मुकाबले समीकरण कितने अलग हैं? इस चुनाव में भाजपा के सामने अपना किला बचाने की चुनौती होगी। वहीं, कांग्रेस 2020 में सत्ता से बेदखल होने की कसक दूर करना चाहेगी। इससे पहले राज्य में इन दिनों चुनावी सरगर्मी काफी तेज हो चली है। सभी दल चुनाव से ऐन पहले एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इस बीच विधानसभा चुनाव के लिए सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने अब तक 79 उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। वहीं अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी ने भी अपने 39 प्रत्याशी घोषित किए हैं। कांग्रेस ने अब तक कोई सूची नहीं जारी की है।

वर्तमान में मध्यप्रदेश के सियासी समीकरण की बात करें तो 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 127, कांग्रेस के 96, निर्दलीय चार, दो बसपा और एक समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। बता दें कि 2018 के चुनाव के बाद कांग्रेस की 114, भाजपा की 109 सीटें थीं। दो सीटें बसपा, एक सीट सपा और चार निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गई थीं। 2020 में सिंधिया समर्थक विधायकों ने पाला बदल लिया था। इसके बाद नवंबर 2020 में 28 सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें से 19 भाजपा के खाते में गईं। वहीं, नौ सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। इसके बाद नवंबर 2021 में तीन और सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें से दो सीटें भाजपा और एक कांग्रेस ने जीती। 2018 के बाद से इस चुनाव के आने तक प्रदेश की सियासत में बहुत कुछ बदल चुका है। सबसे बड़ा बदलाव ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, जो अबकी बार भाजपा के साथ हैं। पिछली बार जब विधानसभा चुनाव हुए थे तब सिंधिया कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल थे। सिंधिया के साथ ग्वालियर चंबल के कई बड़े नेता और विधायक इस चुनाव में भाजपा का हिस्सा हैं।

वहीं कांग्रेस की बात करें तो इसका कुनबा भी मजबूत हुआ है। पिछले कुछ महीनों में भाजपा के 30 से ज्यादा बड़े नेता कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। इनमें कई सिंधिया समर्थक नेता भी हैं। सबसे बड़े चेहरों की बात करें तो इनमें पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी, शिवपुरी की कोलारस सीट से विधायक वीरेंद्र रघुवंशी, पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत, खरगोन से पूर्व सांसद मलखान सिंह सोलंकी भी शमिल हैं।