क्या दिमनी में नरेंद्र सिंह तोमर के सामने हैं मुश्किलें?

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दिमनी में नरेंद्र सिंह तोमर के सामने कई मुश्किलें आगयी है! बीजेपी चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। उन्हें न केवल राज्य भर में बीजेपी चुनाव अभियान का प्रबंधन करना है, बल्कि दिमनी में एक तगड़ी लड़ाई लड़नी है, जहां कांग्रेस ने 2020 के उपचुनाव में लगभग 55 फीसदी वोट हासिल किए थे। विधानसभा चुनावों में तोमर और अन्य दिग्गजों को मैदान में उतारने के पीछे बीजेपी के अपने लॉजिक हैं। साथ ही इसके अलग-अलग लॉजिक भी हैं। कहा जा रहा है कि बड़े दिग्गज न केवल अपनी सीट जीतेंगे, बल्कि अन्य सीटों को प्रभावित भी करेंगे। हालांकि, इन निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव परिणामों पर एक नजर डालने से पता चलता है कि बीजेपी की राह आसान नहीं है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों की राहें यहां आसान नहीं है। मतदाताओं की अप्रत्याशितता के कारण बीएसपी और जीजीपी ने इन सीटों पर परिणामों को प्रभावित किया है। अंत में, एक तथ्य यह भी है जिसे बीजेपी नजरअंदाज नहीं कर सकी, उसे नरसिंहपुर और सीधी को छोड़कर इन सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। नरसिंहपुर के मौजूदा विधायक जालम सिंह पटेल को टिकट नहीं दिया गया है। टिकट उनके भाई और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल को दिया गया है। सीधी में विधायक केदारनाथ शुक्ला की जगह सांसद रीति पाठक चुनाव लड़ रही हैं।

मुरैना जिले के दिमनी में तोमर को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। यह उन सीटों में से एक है, जहां गिर्राज दंडोतिया के ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने के बाद 2020 में उपचुनाव हुआ था। ऐसा लगता है कि दिमनी के मतदाताओं के भगवा खेमे को सौंपे गए अपने जनादेश को बहुत दयालुता से नहीं लिया। दंडोतिया को 26, 467 मतों से चुनाव हार गए क्योंकि कांग्रेस उम्मीदवार रविंद्र सिंह तोमर को 54.7 फीसदी मत मिले थे।

वहीं, दंडोतिया को 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सीट जीतने के लिए 49.2 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद, कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ गया। 2018 और 2020 के बीच नोटा के वोट लगभग दोगुने हो गए। इसके साथ ही इससे यह आभास हो सकता है कि यह कांग्रेस का गढ़ है लेकिन पूरी तरह से नहीं। 1977 के बाद से, बीजेपी ने सात बार, कांग्रेस ने तीन बार, जनता पार्टी और बसपा ने एक-एक बार इस सीट पर जीत हासिल की है। 1977 से 1990 के बीच, मुंशीलाल ने 1993 में कांग्रेस के रमेश कोरी से हारने से पहले चार बार सीट जीती। उन्होंने इसे 1998 में फिर से जीता। बीजेपी ने अगले दो चुनाव जीते लेकिन 2013 में बीएसपी के बलवीर सिंह दंडोतिया ने जीत हासिल की। 2018 में 2020 में कांग्रेस ने जोरदार वापसी की।

बता दे कि 25 सितंबर को बीजेपी ने अपने 39 प्रत्याशियों की सूची जारी की थी। इस सूची में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का नाम भी शामिल था। नरेंद्र सिंह तोमर को मुरैना की दिमनी विधानसभा सीट से बीजेपी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया है। प्रत्याशी घोषित होने के बावजूद नरेंद्र सिंह तोमर दिमनी विधानसभा में सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं। बीजेपी की दूसरी सूची के 11 दिन हो गए हैं लेकिन नरेंद्र सिंह तोमर अभी तक दिमनी नहीं गए हैं। हालांकि नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना जिले की अन्य जगहों पर पहुंच रहे हैं लेकिन दिमनी विधानसभा से दूरी बना रखी है। पिछले दिनों नरेंद्र सिंह तोमर सबलगढ़ विधानसभा में पहुंचे थे और यहां उन्होंने जनसभा को संबोधित किया था। इसके अलावा नरेंद्र सिंह तोमर बीते रोज मुरैना में पहुंचे और यहां मेडिकल कॉलेज के भूमि पूजन में शामिल हुए। इतना ही नहीं दिमनी से लगी हुई अंबाह विधानसभा के पोरसा इलाके में पहुंचकर नरेंद्र सिंह तोमर ने केंद्रीय विद्यालय के लिए भी भूमि पूजन किया। वह दिमनी विधानसभा को हेलीकॉप्टर से ऊपर से ही देखकर निकल गए।

मुरैना जिले के वरिष्ठ पत्रकार रजनीश दुबे बताते हैं कि नरेंद्र सिंह तोमर ओवर कॉन्फिडेंस में है। रजनीश दुबे का कहना है कि नरेंद्र सिंह तोमर को लगता है कि वे मंच से खड़े होकर जादू की छड़ी घुमाएंगे और उन्हें जनता वोट देकर जिता देगी। रजनीश दुबे ने कहा कि ओवर कॉन्फिडेंस की वजह से नरेंद्र सिंह तोमर अभी दिमनी विधानसभा में नहीं पहुंच रहे हैं। वहीं, नरेंद्र सिंह तोमर के दिमनी विधानसभा में नहीं पहुंचने पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं लेकिन फिलहाल नरेंद्र सिंह तोमर ने इन सवालों पर ही चुप्पी साध रखी है। वे मुरैना जिले में लगातार भ्रमण कर रहे हैं लेकिन दिमनी विधानसभा में उनका कोई मूवमेंट नजर नहीं आ रहा है। दिमनी विधानसभा के बीजेपी कार्यकर्ता और नेता अपने पार्टी के प्रत्याशी का इंतजार कर रहे हैं। अभी तक बीजेपी कार्यकर्ताओं को उनके दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला है। कुल मिलाकर दिमनी विधानसभा से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की दूरी अपने आप में एक बड़ा सवाल है।